विकृतियों का त्याग है विनिवर्तना : डॉ. सुमंगलप्रभाजी

हैदराबाद, विनिवर्तना यानी विषय वासनाओं से निवृत्त होना है। विषय वासना का त्याग करें और दूर हटें अपनी आत्मा की पहचान करें। विकृतियों का त्याग करना ही विनिवर्तना है। आत्मा तीन प्रकार से अपना जीवन जीती है। बहिरात्मा वह है, जिसमें व्यक्ति विषय वासनाओं में आसक्त रहता है। अंतरात्मा यानी विषय वासना से निर्लिप्त बन इसका त्याग कर देता है। परमात्मा पद वही प्राप्त कर सकता है, जो विषय वासना से अलिप्तता को धारण कर उससे विमुक्त बन गया है।
उक्त उद्गार सिकंदराबाद मारुति विधि जैन स्थानक में श्री वर्धमान स्थानकवासी जैन श्रावक संघ सिकंदराबाद द्वारा आयोजित चातुर्मासिक धर्म सभा को संबोधित करते हुए साध्वी डॉ. सुमंगलप्रभाजी म.सा. आदि ठाणा ने व्यक्त किये। म.सा. ने कहा कि विनिवर्तना से जीव पाप क्रियाओं से बचे रहने के उद्यम करता है, यह पूर्व बंध कर्म की बेड़िया को तोड़कर कर्मों की श्रृंखला को निर्जरित करने का कार्य करता है। विनिवर्तना एक छोटा सा शब्द है, जिसमें वि यानी विषय वासनाओं से निवृत्त होना है।
विचारों की पवित्रता और जीवन सुधार पर म.सा. के विचार
म.सा. ने कहा कि मानव जीवन के भीतर कितने विचारों की धाराएँ बहती है। जिस प्रकार सागर में उठती लहरें को कोई गिन नहीं सकता, वैसे ही मानव के मन मस्तिष्क की विचारधारा को गिनना कठिन है। हमारे विचार को हम स्वयं नहीं गिन पाते तो दूसरे के सामने रखे विचार धाराओं को भला कैसे गिना जा सकता है। म.सा. ने कहा कि जिसके विचार उत्तम होते हैं, उसका उच्चारण भी उत्तम होगा, जिसका उच्चारण उत्तम होगा, उसका आचार सदाचार और जीवन उन्नत होगा।
मानव जीवन मिला है, तो क्या हम जीवन को कैसे जीना चाहिए, इस पर चिंतन करें। म.सा. ने कहा कि विचार तीन प्रकार के तामसिक, राजसिक और सात्विक होते हैं। मानव को बनाने वाले विचार ही उसके सच्चे विचार होते हैं। उसकी भावना ही जीवन को बना सकती है और जीवन जीने की कला की शुरुआत हो सकती है। विचारों की पवित्रता बनती है, तो उसके कर्म भी पवित्र बन जाते हैं। कर्म निर्जरा होगी, तभी जीवन जीने लायक बनेगा, अन्यथा पशु व मानव भी जीते हैं।

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विनिवर्तना और जीवन सुधार पर धर्मसभा में विचारधारा
पशु को पता नहीं कि उसे कब खाना है, कब सोना है। केवल मानव को पता है कि कब खाना कब सोना है। जीवन में जिंदगी को कैसे जीना है, यह मानव सोच सकता है। मानव अपनी प्रवृत्ति व धारा नहीं बदलेगा, तो मानव जीवन में परिवर्तन कहाँ से होगा। भीतर से परिवर्तन का भाव बदलना होगा। मानव बनने के बाद भी यदि सच्चे मानव नहीं बन पाये, तो पशु और मानव में कोई फर्क नहीं रहेगा। इस पर चिंतन करें।
म.सा. ने कहा कि शिकारी को हम दयालु नहीं कह सकते हैं, क्योंकि उसकी क्रिया में दया के भाव नहीं होते, उसे पक्षी को जाल डालकर पकड़ना ही होता है। आज व्यक्ति केवल अपने नाम व यश कीर्ति के लिए बिना भाव से दान देते हैं, तो उसका कोई महत्व नहीं है। दान भाव से दिया जाता है, चाहे आपके पास थोड़ा ही है, पर भावना शुद्ध होनी चाहिए। तभी वह फलित होता है। विनिवर्तना विषय वासना से मुक्त करता है और जीवन में परिवर्तन लाता है। जीवन को अच्छे से जिएँगे, तो 84 लाख योनि का भटकाव नहीं होगा।
सभा का संचालन महामंत्री सुरेन्द्र कटारिया ने किया। धर्म सभा में गुड़गांव से आनंद कोठारी परिवार, जोधपुर से भीमराज नाहर, पुणे से अनिल बेदके एवं चेन्नई से कपूरचंद चोरड़िया परिवार के साथ पधारे, जिनका श्री संघ की ओर से अभिनंदन किया गया। कुमारी मीराया कोठारी ने गीतिका प्रस्तुत की। कार्याध्यक्ष शांतिलाल बोहरा ने बताया कि गणेशलालजी म.सा. की 146वीं जन्म जयंती एवं मनोहरकंवरजी म.सा. के 64वें दीक्षा दिवस के उपलक्ष्य में आयोजित किए जाने वाले तीन दिवसीय कार्यक्रम के अंतर्गत शनिवार, 25 अत्तूबर को सामयिक बेला दिवस के रूप में मनाया जाएगा।
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