सेफ ज़ोन (लघु कथा)

रानी तो रानी थी। उसे देखकर मुहल्ले के लड़के आहें भरते। ऊँचे नितंब, भरी-भरी छातियाँ व दुधिया रंग। अगर मेनका या रँभा भी एक बार उसे देख लें तो वो भी शरमा जाएँ। कुदरत ने रानी को ऊपर से नीचे तक सँवारा था। तमाम खूबसूरती देने के साथ बहुत कुछ छीन भी लिया था। जैसे कोई मुकम्मल आदमी हो, लेकिन हाथ ना हों। पेड़ बनाकर शाखों और पत्तियों से महरूम कर दिया हो। नदी बनाई, लेकिन पानी भरना भूल गया हो।
उसे लोग छेड़ते हुए कहते, ‘रानी! तू छक्का ना होता, तो मैं तुझसे ब्याह कर लेता।’ रानी के अंदर जैसे सैलाब उमड़ पड़ता। उसकी आँखों से आँसू बहने लगते। दूसरों के इस प्रेम और छेड़छाड़ भरी बातें सुनकर उसे भी लगता कि काश! भगवान् ने उसकी हिजड़े की जगह आदमी या औरत बनाया होता! कोई उसके लिए भी चूड़ियाँ, काजल, लिपस्टिक, नथ, पायल, चूड़ा और मँगलसूत्र खरीद लाता! कोई उसे भी खिलाता-पिलाता, घूमाता-फिराता।
“बेचारी रानी”: दया के पीछे छिपी हिकारत और अधूरी ज़िंदगी
कोई तो होता, जिसके साथ वो जीने-मरने की कसमें खाती। जीने के लिए तब बहाना मिल जाता और दिन खुशी-खुशी बीतते। वो भी किसी का घर पर इंतजार करती। देर-सबेर लौटने पर उसको डाँटती। कोई तो होता उसके जीवन में जो उसका अपना होता। जिस पर वो हक जमा सकती थी। उसके ऊपर उसका ख़ुद का अधिकार पा सकती थी। उसको भी कोई बाल-बच्चा होता। वो भी संतान-सुख भोगती।
उसके पास पैसों की कोई कमी नहीं थी। रोज खाने-कमाने भर का हो जाता था। दुकानदार मसखरी करते। उसे माला, लिपस्टिक, काजल, बिंदिया ऐसे ही दे देते थे, फ्री में। माँगने की नौबत नहीं आती थी। मौन और लाचारी की भाषा बहुत गाढ़ी होती है, जिसे लोग पढ़ लेते थे। लोग हाथ पर बिना बोले भी सौ-पचास धर देते थे।
तब लोग दया करके उसे ये सब चीजें देते थे। एक और चीज थी, जो उसे भीतर-ही-भीतर मथती थी और वह थी- लोगों की हिकारत। उसके साथ बहुत से लोग ओछा व्यवहार करते। लोग हमेशा कहते, ‘बेचारी रानी!’ ये ‘बेचारगी’ शब्द उसे अंदर तक बेध देता था। उसे लगता, जैसे वो कोई पँगु आदमी हो, बिना हाथ-पैर की।
‘रानी! समोसे खाएगी?’ राणवीर ने टोका।
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रानी की नजर से: मासूमियत का कत्ल और इंसानियत की हार
रानी ने बेमन से हथेली फैला दी। रणवीर जो अभी-अभी चौक से एक मुड़े – तुड़े अखबार में दो समोसे लेकर आया था, रानी की ओर बढ़ा दिया। बेमन से रानी समोसा तोड़कर खाने लगी। तभी उसकी नज़र उस अखबार के कोने पर पड़ी, जिसमें ख़बर कुछ ऐसी थी कि वह आँख हटा ही नहीं सकी। एक चार साल की लड़की की लाश सूटकेस में बंद मिली। रेप करने के बाद हत्या करके बच्ची की लाश को सूटकेस में छुपाया गया। उसका कातिल उसी का पड़ोसी था।
रानी में अब और ठहरने की गुँजाईश नहीं थी। उसका मन खट्टा हो गया। वह उठकर भारी मन से चौक से होते हुए, अपने घर की तरफ चलने लगी। तभी उसके कानों में कुछ लोगों की बातें पड़ीं, जिनमें से कोई कह रहा था, ‘लड़की ही निकली कातिल! पहले हिल स्टेशन जाने का प्लान बनाया। फिर चाकू से गोदकर लड़के की हत्या कर दी। शादी हुए अभी सप्ताह भर भी नहीं हुआ था। बेचारे लड़के का क्या दोष था? उस लड़के से शादी नहीं करनी थी, तो मना कर देती। हत्या करने की भला क्या जरूरत थी?’

‘छक्का’ कहकर जो हँसे, वही अनजाने में सच बोल गए
तभी आवारा लड़कों को रानी दिख गई। उनमें से एक ने टोका- ‘चलो रानी ही ठीक है। ना आदमी है, ना औरत। ना ही रेप कर सकती है, ना ही हत्या।’ ‘अरे भाई! शादी तो बिल्कुल भी नहीं कर सकती। वह ना तो शादी करेगी और ना ही किसी की हत्या।’
‘रेप करने के लिए भी कुछ चाहिए।’ ‘रानी के पास तो कुछ है ही नहीं।’ कहते हुए वह चुटकी ले रहे थे।
एक ने ताली बजाकर इशारा किया, ‘रानी तो छक्का है…छक्का।’
‘कोई इससे शादी नहीं करेगा।’ ‘नहीं करेगा, तब तो बढ़िया रहेगा। रानी कम- से-कम जीवित तो रहेगी।’
‘हाँ, भाई ठीक कह रहे हो। इस तरह से रानी तो सेफ ज़ोन में है।’
‘ईश्वर का हर फैसला सही होता है, इसीलिए उसने उसे हिजड़ा बनाया। कातिल होने से तो बेहतर है, हिजड़ा होना। वो आदमी या औरत में से कुछ नहीं। चलो अच्छा है, उसकी आत्मा पर कोई बोझ नहीं है, ना!’ ‘आज आदमी और औरत कितने गिर गए हैं? रोज-रोज बच्ची और बूढ़ी औरतों से रेप। कभी ड्रम में तो कभी शर्बत पिलाकर अपने ही पति की हत्या!’
पहली बार उन आवारा लड़कों के शब्द रानी को अच्छे लगे थे। हिजड़ा, जिससे दिल मिले, जिससे हिया जुड़ जाए।
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– महेश केसरी
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