ग्रुप-1 पर एकल न्यायाधीश के फैसले पर रोक


हैदराबाद, तेलंगाना उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश जस्टिस अपरेश कुमार सिंह और जस्टिस जी.एम. मोहियुद्दीन की खण्डपीठ ने ग्रुप-1 परीक्षा के संबंध में उच्च न्यायालय के एकल सदस्य न्यायाधीश की खण्डपीठ द्वारा दिए गए फैसले पर रोक लगाते हुए अंतरिम आदेश जारी किए। गौरतलब है कि इस मामले पर इसके पूर्व ग्रुप-1 परीक्षा पुनः आयोजित करने अथवा उत्तर पुस्तिकाओं का पुनर्मूल्यांकन करने के आदेश दिए गए।
एकल खण्डपीठ के फैसले को लेकर टीजीपीएससी समेत मुख्य परीक्षा में सफल रहने वाले उम्मीदवारों ने अलग-अलग रूप से अपील याचिकाएँ दायर की थी। इन याचिकाओं पर मुख्य न्यायाधीश के नेतृत्व वाली खण्डपीठ ने सुनवाई करते हुए फैसले को लेकर सवाल उठाए। खण्डपीठ ने स्पष्ट करते हुए कहा कि ग्रुप-1 को लेकर जो कुछ भी भर्तियाँ होगी, वह इस मामले के अंतिम फैसले के तहत होगी।
गौरतलब है कि ग्रुप-1 परीक्षा का संचालन टीजीपीएससी द्वारा पारदर्शितापूर्ण तरीके से न करवाने, मूल्यांकन में अनियमितता होने के अलावा परीक्षा केंद्र, परीक्षा के दौरान नकल होने का हवाला देते हुए याचिकाएँ दायर की गई। इन याचिकाओं पर सुनवाई करते हुए एकल सदस्य न्यायाधीश की खण्डपीठ ने अपना फैसला सुनाया था। मुख्य न्यायाधीश की खण्डपीठ ने सुनवाई के दौरान स्पष्ट करते हुए कहा कि याचिकाकर्ताओं ने ग्रुप-1 परीक्षा को लेकर जो कुछ भी आरोप लगाए, उनके संबंध में सबूत पेश नहीं किए।
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ग्रुप-1 परीक्षा में अनियमितता पर सबूत की मांग
बड़े पैमाने पर अनियमितता होने की बात कही गई, लेकिन रिकॉर्ड में कोई सबूत नहीं दिखाए गए। प्रश्न-पत्र लीक होने, पक्षपातपूर्ण व्यवहार करने जैसे मामलों पर दोनों पक्षों की ओर से स्पष्टता दिखाई जानी चाहिए। उन्होंने यह भी कहा कि अदालत यह कैसे कह सकती है कि परीक्षा के लिए विद्यार्थियों ने 11 से 12 घंटे पढ़ाई की और केवल अनुमान के आधार पर फैसला लेना सही नहीं है। इसके लिए रिकॉर्ड में सबूत पेश किए जाने चाहिए।

सुनवाई के दौरान महाधिवक्ता ए. सुदर्शन रेड्डी व अन्य अधिवक्ताओं ने दलील देते हुए कहा कि उत्तर पुस्तिकाओं के पुनर्मूल्यांकन के लिए कोई नियम नहीं है। केवल उत्तर पुस्तिकाओं की रिकाउंटिंग करवाई जा सकती है। उम्मीदवारों के साथ अन्याय हुआ है, यह कहा जा रहा है, लेकिन इसके संबंध में कोई सबूत पेश नहीं किए गए। उन्होंने बताया कि वर्ष 2011 में आखिरी बार ग्रुप-1 की परीक्षा आयोजित की गई और वर्ष 2022 में संपन्न परीक्षा को उच्च न्यायालय के आदेश पर रद्द कर दिया गया था।
तेलंगाना राज्य के गठन के पश्चात वर्तमान समय तक ग्रुप-1 परीक्षा का आयोजन नहीं किया गया। इस दौरान खण्डपीठ ने हस्तक्षेप कर कहा कि बड़े पैमाने पर अनियमितता बर्ती जाने, प्रोसिजर को अमल में न लाने, परीक्षा केंद्रों के चयन में पक्षपातपूर्ण व्यवहार करने के संबंध में कोई सबूत उपलब्ध है क्या, इस पर महाधिवक्ता ने जवाब देते हुए कहा कि जो भी आरोप लगाए गए हैं, उसके संबंध में कोई सबूत पेश नहीं किए गए।
टीजीपीएससी परीक्षा विवाद पर हाई कोर्ट का अंतरिम आदेश
परीक्षा केंद्रों की संख्या 45 से बढ़ाकर 46 करने पर आयोग की ओर से स्पष्ट विवरण दिया गया, लेकिन इस पर कोई ध्यान नहीं दिया गया। दिव्यांग उम्मीदवारों को ध्यान में रखते हुए उन्हें उनकी सुविधा के अनुसार परीक्षा केंद्र उपलब्ध करवाया गया। चयनित उम्मीदवारों की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता डी. प्रकाश रेड्डी, डॉ. के. लक्ष्मी नरसिम्हा ने दलील देते हुए कहा कि कई उम्मीदवारों ने अपनी नौकरी से त्याग-पत्र देकर ग्रुप-1 परीक्षा लिखी है।
वर्तमान स्थिति में पुनर्मूल्यांकन करवाने पर और नए विवाद खड़े हो सकते हैं। वहीं अन्य याचिकाकर्ताओं की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता जी. विद्यासागर, सुरेन्दर राव, रचना रेड्डी ने दलील देते हुए बताया कि टीजीपीएससी ने परीक्षा के आयोजन में अपने स्वयं के नियमों का पालन नहीं किया। उन्होंने बताया कि जारी अधिसूचना में कहीं पर भी पुनर्मूल्यांकन का जिक्र तक नहीं किया गया। इतना ही नहीं, दो हॉल टिकट जारी करने का भी खुलासा नहीं किया गया।
परीक्षा संबंधी सभी तथ्यों को वेब नोट पर रखने की बात कही गई, लेकिन इसका भी पालन नहीं किया गया। दलील सुनने के पश्चात खण्डपीठ ने एकल न्यायाधीश की खण्डपीठ द्वारा दिए गए फैसले पर रोक लगाते हुए अंतरिम आदेश जारी किए और स्पष्ट किया कि टीजीपीएससी यदि कुछ नियुक्तियाँ करती हैं, तो वह इस मामले के अंतिम फैसले के अधीन रहेगी।
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