सामाजिक एकता है सुख, शांति, उन्नति और सुरक्षा का आधार : भाग्यचंद्रविजयजी

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हैदराबाद, धर्म गौरव, सामाजिक एकता और राष्ट्रप्रेम की भावना को प्रबल बनाए बिना हमारी प्रगति का कोई अर्थ नहीं है। जीवन में एक समय ऐसा आएगा, जब संपत्ति और सुख सुविधाएँ हमारी उपलब्धियों का निर्धारण नहीं करेंगी, बल्कि धर्मनिष्ठा, सेवा भावना और सामाजिक एकता ही हमारे अस्तित्व का निर्धारण करेंगी।

उक्त उद्गार गोशामहल स्थित शंखेश्वर भवन में श्री शंखेश्वर पार्श्वनाथ जैन संघ गोशामहल के तत्वावधान में भाग्यचंद्रविजयजीजी म.सा. ने व्यक्त किये। पूज्यश्री ने कहा कि सामाजिक व धार्मिक उन्नति को सर्वाधिक महत्व दीजिए। उनके समक्ष व्यक्तिगत उपलब्धियाँ गौण समझिए। आचार्य भक्तिरत्न सूरीश्वरजी म.सा.ने कहा कि आधुनिक युग में धर्म, समाज और संस्कृति की गौरवशाली परंपराओं को बचाना अत्यंत आवश्यक है।

इसके लिए घर-घर में इतिहास और ज्ञान की अलख जगाइए, वरना पश्चिम की आँधी, आधुनिक होने की अंतहीन होड़ तथा भोग-उपभोग के इस युग में स्वयं बचना और अपनी नई पीढ़ी को बचाना संभव नहीं होगा। आज परिवार का ताना-बाना टूट रहा है। पढ़ाई, नौकरी और विवाह के लिए समाज महानगरों की ओर भाग रहा है। माँ-बाप और बड़े बुजुर्ग कहीं पीछे छूट रहे हैं। व्यसनों को सामाजिक मान्यता मिल रही है।

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धर्म मर्यादा और समाज संरक्षण पर जैनाचार्य प्रवचन

उद्घाटन वेशभूषा और फूहड़ता समाज में प्रविष्ट हो रही है। इन अनचाहे परिवर्तनों में मध्यम वर्ग पूरी तरह उलझ गया है। ऐसे में समाज का मजबूत संगठन और धर्म की गौरवशाली परंपराएँ ही हमें बचा सकती हैं। अन्यथा वह समय दूर नहीं, जब जैन समाज नाम शेष होने के कगार पर पहुँच कर दुःखी हो जाएगा। जैनाचार्य ने कहा कि मर्यादाएँ महत्वपूर्ण होती हैं। जो मर्यादाओं को पहचानते हैं और उनके अनुसार आगे बढ़ते हैं, वह परिवार में सुखी-समृद्ध बनाते हैं और सामाजिक उन्नति के साथ उसे सुरक्षित रखने में सफल होते हैं।

इसलिए यह आवश्यक है कि हम नीति-नियमों में पूरी निष्ठा रखें। स्वच्छंदी न बनें। हित की बातों को सुनें और उन्हें अपनाएँ।प्रचार संयोजक जसराज देवड़ा धोका ने बताया कि आज की प्रभावना का लाभ चंपालाल देवीचंद भंडारी परिवार ने लिया। दोपहर में पद्मावती माता की चुनरी कार्यक्रम के अंतर्गत गरबा व डांडिया का आयोजन किया गया, जिसका लाभ अमीचंद ढेलड़िया परिवार ने लिया। संघ अध्यक्ष चंपालाल भंडारी व चातुर्मास संयोजक संयोजक बाबूलाल सालेचा ने सकल संघ से प्रवचन का अधिक से अधिक लाभ उठाने का आग्रह किया।

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