श्री सीताराम स्वामी मंदिर की है 1521.13 एकड़ भूमि : उच्च न्यायालय


हैदराबाद, तेलंगाना उच्च न्यायालय में राज्य सरकार की ओर से पेश की गई रिपोर्ट में बताया गया कि मेड़चल मलकाजगिरी ज़िला, शामीरपेट मंडल के देवरयमजाल ग्राम स्थित 1521.13 एकड़ भूमि श्री सीताराम स्वामी मंदिर की है। राजस्व अधिकारियों और निजी व्यक्तियों ने आपस में साँठ-गाँठ कर इस भूमि पर कब्जा किया। साँठ-गाँठ के चलते यह भूमि राजस्व रिकॉर्ड में निजी व्यक्तियों के नाम पर दर्ज की गई। ऐसी स्थिति में इस भूमि को प्रतिबंधित सूची में बनाए रखना ही सबब है।
संबंधित विवरण सुनवाई के दौरान उच्च न्यायालय के न्यायाधीश जस्टिस जूकंटी अनिल कुमार ने रिकॉर्ड किया। सर्वे नं. 688 से 712, 716 स्थित मंदिर से संबंधित भूमि को सीसीएलए की प्रतिबंधित सूची में शामिल करते हुए वर्ष 2014 के दौरान जारी प्रोसिडिंग को रद्द करने का आग्रह करते हुए लगभग 300 से अधिक याचिकाएँ दायर की गई। इन याचिकाओं पर सुनवाई के दौरान सरकारी अधिवक्ता के. मुरलीधर रेड्डी ने दलील देते हुए बताया कि सरकार द्वारा जारी की गई प्रोसिडिंग कानून के तहत ही है।
मुरलीधर रेड्डी ने सवाल उठाया कि धर्मस्व विभाग से संबंधित भूमि पट्टा भूमि में कैसे बदली जा सकती है। इस मामले में भू-कब्जेदारों से सवाल करने पर उन्होंने पट्टा भूमि होने का कोई सबूत पेश नहीं किया। इतना ही नहीं, आरओआर प्रोसिडिंग्स, पट्टा पासबुक भी नहीं दिखाई गई। भूमि से संबंधित सेतवार को भी गलत तरीके से दिखाया जा रहा है। 1925-26 फहानी के अनुसार यह भूमि श्री सीताराम स्वामी मंदिर के नाम पर है।

मंदिर भूमि स्थानांतरण विवाद में उच्च न्यायालय सुनवाई
मंदिर के ट्रस्टी रामुडी पुल्लय्या के नाम पर यह भूमि दर्ज की गई थी। इसके बाद उनके पुत्र रामचंद्रय्या के नाम पर स्थानांतरित की गई। 1354 सेतवारी (1944 के दौरान) में इस भूमि को सरकारी भूमि बताया गया। इसके बाद 1954-55 के दौरान इसे पट्टा भूमि के रूप में दर्शाया गया। इस मामले की सीसीएलए द्वारा जाँच-पड़ताल कर पेश की गई रिपोर्ट में 1,400 एकड़ भूमि मंदिर से संबंधित भूमि बताई गई।
वर्तमान समय तक भी याचिकाकर्ताओं ने सीसीएलए की रिपोर्ट पर अपना मुँह नहीं खोला। इस भूमि पर मालिकाना हक के सबूत भी याचिकाकर्ताओं ने पेश नहीं किए। उन्होंने कहा कि मंदिर के ट्रस्टी या मंदिर के अधिकारी को मंदिर की भूमि स्थानांतरित करने का अधिकार नहीं है। इस मामले के संबंध में श्रीगणपति देव मंदिर ट्रस्ट बनाम बालकृष्णा भट्ट और वासवी हाउसिंग सोसाइटी लिमिटेड के मामले में केंद्र सरकार को सर्वोच्च न्यायालय द्वारा दिए गए निर्देश को लेकर राजस्व रिकॉर्ड में केवल एंट्री कर भूमि को लेकर मालिकाना हक जताना अनुचित है।
धर्मस्व विभाग के अधिवक्ता बुक्या मांगीलाल नायक ने दलील देते हुए बताया कि श्री सीताराम स्वामी मंदिर से संबंधित ट्रस्ट से यह भूमि ट्रस्टी के पुत्र रामचंद्रय्या के नाम पर स्थानांतरित की गई। इसके बाद इस मामले में निजी व्यक्तियों का नाम सामने आया। धर्मस्व अधिनियम के अनुसार इस मामले पर सीधे तौर पर उच्च न्यायालय को सुनवाई करने का अधिकार नहीं है। न्यायाधीश ने दलील सुनने के पश्चात याचिकाकर्ताओं की राय जानने के लिए सुनवाई स्थगित कर दी।
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