तेलंगाना में गन्ने की खेती में भारी गिरावट

निज़ामाबाद, अनुकूल परिस्थितियों के बावजूद तेलंगाना में गन्ने की खेती में भारी गिरावट आई है। जागरूकता की कमी, कम कीमतों और अनिश्चितता ने किसानों को गन्ने की बजाय धान की खेती की ओर रुख करने पर मजबूर कर दिया है। सदियों से तेलंगाना के किसान गुड़ बनाने या चीनी उत्पादन के लिए गन्ने की खेती करते रहे हैं।

2000 के दशक की शुरुआत में,राज्य में लगभग 10 लाख एकड़ में गन्ना उगाया जाता था। आज यह आँकड़ा घटकर केवल 35,641 एकड़ रह गया है। हालाँकि कृषि विभाग का अनुमान है कि इस वर्ष 59,275 एकड़ में गन्ने की खेती हो सकती है, लेकिन केवल संगारेड्डी ज़िले में ही 27,140 एकड़ में गन्ने की अच्छी खेती होती है।

गन्ना एक ऐसी फसल है, जो अत्यधिक वर्षा और सूखे, दोनों के प्रति संवेदनशील होती है। पूर्ववर्ती निज़ामाबाद, मेदक और करीमनगर ज़िलों के किसान कभी इसे बड़े पैमाने पर उगाते थे। हालाँकि निज़ाम डेक्कन शुगर लिमिटेड (एनडीएसएल) की बोधन स्थित मुख्य इकाई और मेटपल्ली व मेदक स्थित उसकी शाखाओं के बंद होने से खेती में भारी गिरावट आई।

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एनसीएसएफ और निजी मिलों के बंद होने से गन्ने की गिरावट

निज़ामाबाद सहकारी चीनी मिल (एनसीएसएफ) और अन्य निजी मिलों के बंद होने से भी इस गिरावट में योगदान मिला। दिलचस्प बात यह है कि गन्ने से इथेनॉल उत्पादन ने कई अन्य राज्यों में भी इस उद्योग को पुनर्जीवित किया है। इस संदर्भ में राज्य सरकारों द्वारा गन्ने के समर्थन मूल्य की घोषणा किसानों और चीनी मिल संचालकों दोनों के लिए एक बड़ी राहत रही है।

बोधन के एक किसान नवीन ने बताया कि उनका परिवार दशकों से गन्ने की खेती करता आ रहा था, लेकिन एनडीएसएल के बंद होने के बाद उन्होंने धान की खेती शुरू कर दी। उन्होंने याद दिलाया कि पूर्व मुख्यमंत्री के. चंद्रशेखर राव और निज़ामाबाद की पूर्व सांसद कल्वाकुंतला कविता ने निज़ाम शुगर्स को पुनर्जीवित करने का वादा किया था, लेकिन मिल बंद ही रही। नवीन ने सरकारी चीनी मिलों का समर्थन न करने के लिए कुछ निर्वाचित प्रतिनिधियों की आलोचना की। उन्होंने कहा कि किसानों के हित में सहकारी और सरकारी स्वामित्व वाली मिलों को फिर से खोला जाना चाहिए। एक सवाल के जवाब में उन्होंने कहा कि अब किसानों को गन्ने की फसल के लिए प्रति एकड़ लगभग 1 लाख का निवेश करना पड़ता है।

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