मीठी जुबान से होती है जीवन की शोभा : ललितप्रभजी
हैदराबाद, जो व्यक्ति बोलने की कला जानता है, वह जीवन में विकास भी करता है और सब लोग उसे पसंद भी करते हैं। हमारी वाणी में अमृत और जहर भी है। इसी से आदमी रिश्तों को बनाता और बिगाड़ता है। जो लोग अपनी जुबान का सही इस्तेमाल करते हैं, वह वक्त आने पर हारी हुई बाजी जीतने में सफल हो जाते हैं। रावण को मिठास से बोलना नहीं आता था, इसलिए उसने अपना सगा भाई खो दिया था, पर राम ने सम्मान भरी भाषा का प्रयोग कर दुश्मन के भाई को अपना दोस्त बना लिया।
उत्तु उद्गार श्री जैन संघ, निजामाबाद के तत्वावधान में माहेश्वरी भवन में आयोजित सीखे मधुर बोलने की कला विषय पर प्रवचन देते हुए राष्ट्र संत ललितप्रभजी म.सा. ने व्यक्त किये। आज प्रदीप सुराणा द्वारा जारी प्रेस विज्ञप्ति के अनुसार, संत प्रवर ने कहा कि यह आदमी की वाणी की ही ताकत है कि भगवान महावीर ने चंडकौशिक जैसे विषधर साँप को भी शांत कर दिया था। बुद्ध के वचनों से प्रभावित होकर अंगुलीमार डाकू संत बन गया। सुभाषचंद्र बोस ने तुम मुझे खून दो, मैं तुम्हें आजादी दूँगा जैसी जोश भरी आवाज उठाकर पूरी सेना बना ली। महात्मा गांधी ने अंग्रेजों भारत छोड़ो की आवाज उठाकर देश को आजादी का सूकून दिया था।
संतप्रवर ने कहा कि हाथ की शोभा कंगन से होती है और गले की शोभा सोने की चैन से, पर जीवन की शोभा मीठी जुबान से होती है। वाणी को शिष्ट, मिष्ट और इष्ट रखने की प्रेरणा देते हुए उन्होंने कहा कि हमें कभी भी गाली-गलौच नहीं करनी चाहिए। शालीन भाषा का उपयोग करना श्रेष्ठ व्यक्तित्व की निशानी है। राष्ट्र संत ने कहा कि हम जब भी बोलें, आत्मविश्वास के साथ बोलें। अगर कभी भी मंच पर बोलने का अवसर मिल जाए, तो घबराना नहीं चाहिए।
भीतर की शांति पर ध्यान दें, दुनिया की चिंता कम करें
संतप्रवर ने कहा हम जब भी बोलें मुस्कुराकर बोलें। मुँह चढ़ाकर बोलने से अच्छे शब्दों की कीमत भी कम हो जाती है। अगर हम अपने बच्चों के साथ भी प्रोत्साहन की भाषा का इस्तेमाल करेंगे, तो वह जीवन में आगे बढ़ने के लिए उत्साहित होंगे।
डॉ. मुनि शांतिप्रियसागरजी म.सा. ने कहा कि सदाबहार खुश रहने का मंत्र है हर हाल में मुस्कुराइए। अनुकूलता में हर कोई मुस्कुरा लेता है, पर जो प्रतिकूलता में भी मुस्कुराना सीख जाता है, वह धरती का सबसे सुखी इंसान बन जाता है।
चाहे लाभ हो या घाटा, कोई मान दे या अपमान, कोई कहना माने या ना माने हमारा तो एक ही सिद्धांत हो कि हर हाल में आनंद, हर पल आनंद। उत्सव हमारी जाति बन जाए और आनंद हमारा गोत्र। म.सा. ने कहा कि हम भीतर की शांति और आनंद के बारे में कम सोचते हैं, दुनियावालों की ज्यादा चिंता करते हैं। लोगों का तो नियम है टीका-टिप्पणी करना। यहाँ सहयोग करने वाले कम हैं, टक्कर देने वाले ज्यादा हैं।
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आगे बढ़ने की शुभकामनाएँ देने वाले कम हैं और नीचे गिराने वाले ज्यादा। इसलिए जब तक जिएँ गुलाब के फूल बनकर जिएँ। मरने के बाद हमें स्वर्ग मिलेगा कि नरक इसका तो पता नहीं, पर जो हर समय व्यस्त और हर हाल में मस्त रहना सीख जाते हैं, उनके लिए यही संसार बैकुंठ धाम बन जाता है।
अवसर पर विधायक सत्यनारायण, हैदराबाद, कामारेड्डी, धर्माबाद के श्रद्धालुओं का श्री जैन संघ द्वारा माला पहनाकर अभिनंदन किया गया। प्रवचन और सत्संग शनिवार 22 नवंबर तक सुबह 9.30 से 11.30 बजे तक माहेश्वरी भवन, धर्माबाद में रहेगा।
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