मन के पार है मुक्ति का द्वार

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शास्त्रों में कहा गया है कि मन ही मनुष्य के बंधन और मुक्ति का कारण है और मनुष्य मन के अनुसार चलने से ही जन्म-मृत्यु के चक्कर में घूमता रहता है। वास्तव में मन भी चेतना का ही अंश है, लेकिन उसे अपने यथार्थ स्वरूप की विस्मृति हो गई है, क्योंकि उसने द्वैत और द्वंदों को सच मान लिया है। अब जब हमें संसार में विविधता दिखाई देती है, सुनाई देती है, समझ में आती है, तो उसे कैसे नकारा जा सकता है और उसमें कैसे अद्वैत का भाव लाया जा सकता है।

मन से परे जाकर हम सही-गलत, पाप-पुण्य, अच्छा-बुरा, ऊंच-नीच आदि के द्वैत भाव से छुटकारा पा सकते हैं। इसके लिए शुरुआत में हमें हर चीज, घटना, स्थिति और व्यक्ति को गहराई और ईमानदारी से देखना होगा। आमतौर पर मन हमेशा यही देखता है कि क्या हो रहा है, जबकि ध्यानपूर्वक देखने पर पता चलता है कि ऐसा क्यों हो रहा है? ध्यान से देखने से हमारे जीवन का दृष्टिकोण बदल सकता है, जैसे- महावीर और बुद्ध का जीवन के प्रति दृष्टिकोण बदला।

चेतनता से शांति और संतुलन पाएँ

मन हमेशा हर चीज के लिए तुरंत प्रतिक्रिया करता है, जबकि ध्यान से देखने पर हमें सोचने-समझने और प्रतिक्रिया करने का समय मिल जाता है। नए दृष्टिकोण से जब हम किसी चीज को देखते हैं तो हमें सामने वाले की मजबूरी भी समझ में आती है और उसके प्रति हमारे मन में करुणा या सहानुभूति उमड़ने लगती है। जब मन हम पर हावी रहता है तब हमें अपनी बुद्धि का उपयोग करके स्वतंत्रत शक्ति का उपयोग करने का समय ही नहीं मिल पाता।

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इसके विपरीत जब हम किसी चीज को ध्यान से देखते हैं और मन से परे जाते हैं तब हमें सोचकर अपनी बुद्धि का उपयोग करने और निर्णय लेने का समय मिलता है। तुरंत प्रतिक्रिया देने से कभी सामने वाले का नुकसान होता है तो कभी हमारा, जबकि यदि हम सोच-समझ कर कोई कार्य करते हैं तो उसमें सबका भला छुपा होता है।

-सद्गुरु रमेश

मन से पार जाने के लिए सबसे अच्छा मार्ग है- चेतन भाव में स्थित हो जाना। जीवन में ठहराव लाकर मन की धुन पर नाचने से बच सकते हैं। चेतन भाव में हमें सब कुछ आनंदमय प्रतीत होता है और आनंद की अवस्था में हमारा मन हमें परेशान करने की क्षमता देता है। सौहार्द, सद्भावना और खुशहाली से भरा जीवन जीने के लिए हमें विवेक व बुद्धि को मन से अधिक महत्व देना होगा। गुरु की शरणागति, विवेक बुद्धि और ज्ञान हमें मन के पार ले जाते हैं जिससे हमारा बेड़ा पार हो जाता है। मन के परे की स्थिति मुक्ति की अवस्था है। इस स्थिति में हम सदा सहज आनंद में रहते हैं।

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