कौन-से धन का रस हमें देता है शाश्वत प्रकाश


समुद्र-मंथन के समय अमृत कलश हाथ में लेकर प्रकट हुए, धन्वंतरि महाराज की जयंती के रूप में धनतेरस का पर्व मनाया जाता है। केवल अमृत धन ही शाश्वत है, शेष सभी नश्वर। संसार में मुख्य रूप से दो प्रकार के धन होते हैं- भौतिक धन और आध्यात्मिक धन। भौतिक धन के अंतर्गत पद-प्रतिष्ठा, धन-दौलत, दुकान-मकान, संपत्ति, स्वास्थ्य, सौंदर्य, बल, नाम, यश आदि आते हैं।
आध्यात्मिक धन के अंतर्गत उच्च विचार व उच्च भावनाएं, सद् व्यवहार, सहजता, सजगता और गुरु ज्ञान आदि। धन कोई भी हो, उसकी यह खासियत है कि उसके साथ मद यानी अहंकार बिना किसी प्रयास के ही हमारे पास आ जाता है और यही हमारे पतन का कारण बनता है। भौतिक धन हमारी सांसारिक प्रगति में सहायक होता है, लेकिन इससे हम अध्यात्म के मार्ग पर आगे नहीं बढ़ सकते हैं।
गुरु का ज्ञान ही है सच्चा धन
कई बार अत्यधिक धन-संपदा या पद-प्रतिष्ठा हमारे आध्यात्मिक विकास में बाधक बन जाती है। भौतिक उन्नति भी हमारे आध्यात्मिक विकास में सहायक हो, इसके लिए सबसे अच्छा उपाय है कि हम जितनी जल्दी हो सके उतनी जल्दी किसी गुरु, संत या ज्ञानी की शरणागति में चले जाएं। परम धन का रस तो हमें गुरु के ज्ञान और सान्निध्य में प्राप्त होता है, क्योंकि गुरु के सत्संग में गुरु अपने ज्ञान के अमृत कलश को सभी साधकों पर उंडेलते हैं।
उनके ज्ञान का अमृत गंगाजल की तरह तरल होता है, इसीलिए वह हमारे रोम-रोम से रास्ता बनाकर खुद भीतर उतर जाता है।ज्ञान अमृत का धन हमारा शारीरिक, मानसिक, भावनात्मक और आध्यात्मिक स्वास्थ्य आदि हमारे भौतिक धन तथा आध्यात्मिक धन के आनंद रस में हमें सदा के स्थित लिए करता है।

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इस परमानंद रूपी धन का रस कभी फीका नहीं पड़ता, यह शाश्वत है। आत्मज्ञान धन सर्वश्रेष्ठ है, क्योंकि इसमें अन्य सभी प्रकार के धनों को अपनी ओर आकर्षित करने की शक्ति है और यह सर्व कल्याणकारी है। हर प्रकार के धन में उस परम के ही रस को महसूस करें और धनतेरस मनाएं। आत्मज्ञान से आत्मप्रकाश में स्थित हो प्रकाश पर्व मनाएं।
-सद्गुरु रमेश
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