साध्वी सुलक्षणाश्रीजी म.सा. की गुणानुवाद सभा संपन्न

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हैदराबाद, श्री पार्श्व कांतिमणि चातुर्मास समिति अवंती नगर, श्री कोठी जैन संघ, जैन श्री संघ चारकमान, श्री राजस्थानी जैन श्वेतांबर मूर्तिपूजक संघ सिकंदराबाद एवं श्री जैन श्वेतांबर कुशल सूरी दादाजी बाग मंदिर कारवान के संयुक्त तत्वावधान में तपोरत्ना समत्व साधिका साध्वी सुलक्षणाश्रीजी म.सा. के स्वर्गारोहण निमित्ते गुरु गुण कीर्तन गुणानुवाद सभा कारवान दादावाड़ी जैन मंदिर में आयोजित की गई।

भक्तिरत्नसूरीश्वरजी म.सा. आदि ठाणा, राष्ट्र संत ललितप्रभसागरजी म.सा., चन्द्रप्रभजीसागरजी म.सा. अभिनंदनचन्द्र सागरजी म.सा., सुलोचनाश्रीजी म.सा. आदि ठाणा 26, कनप्रभाजी म.सा. आदि ठाणा-6, विशालमाताजी म.सा., प्रियदर्शिताश्रीजी म.सा., भावरत्नाश्रीजी म.सा. प्रियरसाश्रीजी म.सा., चारूदर्शनाश्रीजी म.सा. आदि ठाणा के सान्निध्य में श्री दादा गुरुदेव का पूजन किया गया। गुणानुवाद सभा में ललितप्रभसागरजी म.सा. ने श्रद्धा सुमन अर्पित करते हुए कहा कि साध्वीवर्या सुलक्षणाश्रीजी ने आत्म कल्याण के साथ जगत कल्याण के लिए संपूर्ण जीवन समर्पित किया।

शरीर व्याधि ग्रस्त था, फिर भी चेहरे पर मुस्कान-आनंद, मन में आनंद और चेहरे पर प्रसन्नता का भाव रहा। सभी से प्रेम से मिलती जुलती थीं, ऐसा लगता था कि कितना सरल होता है किसी भी इंसान के लिए बोलना की तन में व्याधि हो तो मन में समाधि रखी जा सकती है। किसी को तन में कष्ट हा। तो मन को कैसे मस्त रखा जाता है। सुलक्षणाश्रीजी म.सा. हम सभी के लिए आदर्श हैं। तन में कष्ट होना पार्ट ऑफ लाइफ है और कष्ट में भी मस्त रहना यह आर्ट ऑफ लाइफ है।

सुलोचनाश्रीजी म.सा. और सुलक्षणाश्रीजी म.सा. की जीवन यात्रा लगभग ऐस जैसी चली। दोनों ही एक ही गुरु के सान्निध्य में रहे। इन्हें कांतिसूरीश्वरजी म.सा. का आशीर्वाद प्राप्त हुआ। उनकी आज्ञा लेकर दोनों बहनें जीवन में आगे बढ़ीं और जब-जब देश में वरिष्ठ साध्वियों का नाम आता है, दोनों म.सा. का नाम जरूर लिया जाता है। म.सा. ने कहा कि संत बनते हैं तो यही कहते थे कि संयम जीवन मोक्ष के लिए लिया है।

साध्वी सुलक्षणाश्रीजी का मोक्षमय जीवन लक्ष्य

सभी साधु-साध्वी से कहा जाता कि दीक्षा क्यों ली, तो उनका यही जवाब होता है मोक्ष में जाना है। संत बनने के 10-20 साल के बाद जब नाम और ख्याति मिल जाती है, तो संत से पूछो तो कहते हैं अहमदाबाद, मुंबई, बेंगलुरू, दिल्ली जाना है, सभी को योजना हो जाती है, लेकिन कोई सुलक्षणाश्रीजी जैसा होता है जो मोक्ष में जाता है। जब व्यक्ति को मोक्ष में जाना है, तो ऐसै उपक्रम करता है कि अंजनशलाका प्रतिष्ठा में जाना होता है, योजना बनाता है, जिसमें मोक्ष पाने का लक्ष्य होता है।

एकमात्र लक्ष्य मोक्ष होता है, दूसरा कोई लक्ष्य नहीं साधता। म.सा. ने कहा कि तकलीफ केवल व्यक्ति के जीवन में नहीं, बल्कि महापुरुषों के जीवन में भी आती है। तीर्थंकरों के जीवन में भी कष्ट आया। अपने से इतना ज्यादा कष्ट आया, जिसकी कोई गणना नहीं है। भगवान महावीर के जीवन में जितने कष्ट आये, उनके हिसाब से तो करोड़ों नहीं, हजारों में से कुछ हिस्सा आये, तो हिल जायेंगे।

कष्ट उनके जीवन में आये हमारे जीवन में आये, परिस्थिति उनकी भी बदली, हमारी भी बदली। जिसकी परिस्थिति बदलती है, उसकी मनोस्थिति प्रभावित होती है। साध्वीश्री के जाने का शोक मत करो, संतोष करो। शोक तब करते हैं, जब कर्म में माया जाल में उलझे रहते हैं। म.सा. ने परम ध्येय को लेकर अपना कर्तव्य पूरा किया। सुलोचनाश्रीजी म.सा. ने कहा कि भावों के साथ आत्मा में रमण करने वाली प्रिय बहन छोड़कर चली गयीं। कभी हमें कुछ नहीं बोला।

साध्वी सुलक्षणाश्रीजी का तप और आध्यात्मिक वैभव

यही खुशी है कि बहन ने आत्मा में रमण करते हुए प्रभु का स्मरण कर प्रयाण किया। यही प्रार्थना करते हैं कि उन्हें सद्गित सद्गति प्राप्त हो। अभिनंदनचन्द्रसागरजी म.सा. ने कहा कि साध्वीवर्या की संयम यात्रा बहुत ही सफल थी। आयंबिल की सेंचुरी पूर्ण करना यह सामान्य बात नहीं है। उनके तप अनुकरणीय रहे। सभी के साथ प्रेम का व्यवहार कर जीवन को आदर्श बनाया। संयमी आत्मा ने गिरनारजी की यात्रा कई बार की। पारणा भी देवदर्शन के बाद ही ग्रहण करतीं थीं।

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स्नेहांजनाश्रीजी म.सा. ने कहा कि परमात्मा महावीर के शासन की महान साध्वीवर्या सुलक्षणाश्रीजी आत्म बल की धनी, जन-जन की वंदनीय थीं। छोटे म.सा. के नाम से विख्यात रहीं। जिन्होंने हमें बोलना सिखाया, उनके लिए क्या बोलें, भावों को शब्दों में बांधा नहीं जा सकता। उनका व्यक्तित्व बहुत महान था। संसारी वैभव तो नेता, अभिनेता, राजनेता सभी के पास है, पर आध्यात्मिक वैभव महान आत्मा के पास होता है।

ऐसा नहीं है कि पुण्य से संसारिक वैभव मिलता है, लेकिन पुरुषार्थ से आध्यात्मिक वैभव मिलता है। इस वैभव को पाने के लिए बचपन से पचपन तक गृहस्थ जीवन से संयमी जीवन तक खूब पुरुषार्थ किया। तप-संयम का वैभव कम नहीं था। प्रियलताश्रीजी म.सा. ने कहा कि कोई रोक ना पाया विधाता की इस मनमानी को। म.सा. ने जिन शासन की गोद में सिर रखकर संपूर्ण समर्पण कर जिन शासन की आन, बान, शान बनाई।

साध्वी सुलक्षणाश्रीजी को संघों ने दी श्रद्धांजलि

जिनशासन में आपने परचम फहराया और आध्यात्म के धरातल पर नव आगाज किया। तपस्या की नई मिसाल स्थापित की। जिन शासन में कदम रखने से पूर्व ही जीवन की शुरुआत जिनशासन से हुई, जिन्होंने पचखान को अपनी परिधि माना और मौन साधना को चिंतामणि रत्न। चारित्र को चिराग माना और स्वाध्याय को हृदय का टुकड़ा माना। वह सांस भी लेतीं थीं, तो जिन शासन के लिए और विश्वास था अपने परमात्मा पर। स्वाध्याय के लिए हृदय को सुवासित किया। ऐसी हमारी जीजी म.सा. थीं, जिन्होंने बचपन से ही गोद में बैठाकर अध्ययन करवाया।

श्री कोठी श्री संघ के शील कुमार जैन ने कहा कि साध्वी सुलक्षणाश्रीजी का 75वाँ अवतरण दिवस उत्साह के मनाया था, उसी दिन नेमीनाथ का जन्म कल्याण भी मनाया। दोनों सहयोग बने थे, सुन्दर माहौल बना था। उसी दिन म.सा. को समत्व साधिका की उपाधि प्रदान की गयी। कल्पना नहीं कर सकते हैं कि साध्वीश्री नहीं रहीं। उनका कोठी श्री संघ पर बहुत उपकार था। बडी म.सा. का चातुर्मास शहर में होता, तो छोटी म.सा. का चातुर्मास कोठी श्री संघ में हुआ। तप का बहुत प्रभाव रहा। अजित पार्श्व युवा संगठन की ओर से श्रद्धांजलि अर्पित की गयी। श्री पार्श्व कांतिमणि चातुर्मास समिति अवंतीनगर चातुर्मास समिति के प्रधान संयोजक अमरचंद श्रीश्रीमाल ने म.सा. का गुणगान किया।

यह भी पढ़ें… पात्र और सुपात्र की करें परख : डॉ. सुमंगलप्रभाजी

जैन संघों व समाजों ने साध्वीजी को दी श्रद्धांजलि

श्री पार्श्व मणि तीर्थ के सदस्य, गुरुवर्या के संसारिक भाई रमेश बैद, चारकमान श्री संघ के प्रितेश बोहरा, श्री महावीर जैन श्वेतांबर संघ चातुर्मास समिति के भरत भंसाली, सुलोचन मंडल, कुलपाक तीर्थ के प्रशांत श्रीश्रीमाल, चेन्नई श्री संघ के मुकेश गोलेच्छा, प्रकाशचंद लूणिया, नेमीचंद बडेर मुथा, नीलम चोरड़िया, पार्श्वमणि तीर्थ ट्रस्ट पेद्दतुकलम, बेंगलुरू खरतरगच्छ संघ, ब्यावर खरतरगच्छ संघ, ज्ञान वाटिका संचालन समिति, खरतरगच्छ समाज दिल्ली, कम्पली संघ, कोपल संघ, सिन्धनूर संघ, आदोनी श्री संघ, रायचूर श्री संघ, बेल्लारी श्री संघ, अखिल भारतीय खरतरगच्छ युवा परिषद, रायपुर श्री संघ, जगदलपुर श्री संघ, फलोदी श्री संघ, सेलंबा श्री संघ, चांदवड श्री संघ, तिरुपति श्री संघ, देवेन्द्र भंसाली (जयपुर), राकेश महेता (जयपुर), विश्वास गोटी (जयपुर), मुंगेली सुरेन्द्र पारख, (गोंदिया, रेणीगुंटा) सहित अन्य ने भाव प्रस्तुत किये।

कार्यक्रम में श्री अजित पार्श्व युवा संगठन एवं श्री शंखेश्वर भक्ति सेवा मंडल ने सहयोग प्रदान किया। गुरु गुण कीर्तन गुणानुवाद सभा का संचालन डॉ. मोहन-मनोज गोलेच्छा (चेन्नई) ने भजन कीर्तन के साथ किया।

अवसर पर नेमीचंद बडेरमुथा, अमरचन्द श्रीश्रीमाल, प्रशान्त श्रीश्रीमाल, गौतमचन्द चोपड़ा ,प्रकाशचन्द चोपड़ा, महावीरचन्द चोपड़ा, महावीर सुराणा, शीलकुमार जैन, पदम कोठारी, राजेन्द्र मुथा, प्रकाशचन्द लूणिया, सुभाष गोलेच्छा, देवेन्द्र कटारिया, अशोक कटारिया, नेमीचंद चोपड़ा, मोतीलाल भलगट, राजेश रांका, प्रितेश बोहरा, किशोर संचेती, अशोक मुथा, भरत भंसाली, अशोक छाजेड़, विक्रम ढढ्ढा, मनीष श्रीश्रीमाल, रितेश भंसाली, महावीर मुणोत, राजीव समदड़िया, मनोज सुराणा, धर्मेन्द्र जैन, संजय जैन, कंवरलाल चोपड़ा, अरुण खिंवसरा, विजय लुणावत, आतिश श्रीश्रीमाल, छाया कांकरिया, अंजू रांका, ममता कोठारी, रेमा जैन, सीमा जैन, प्रीति बाठिया, अल्का पगारिया, प्रभावती देवी, तनीषा जैन, चन्द्रा चोपड़ा, साक्षी श्रीश्रीमाल, सरिता नाहर सहित नगरत्रय के विभिन्न संघों के पदाधिकारी उपस्थित थे। कार्यक्रम के पश्चात स्वामीवात्सल्य का आयोजन किया गया।

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