धर्म की शरण ही है श्रेष्ठ : भक्तिदर्शनविजयजी

हैदराबाद, धर्म हमारी रक्षा करता है और धर्म की शरण ही श्रेष्ठ शरण है। वैराग्य की भावना संसार के सुख में हमें भटकाती नहीं है। उक्त उद्गार गोशामहल स्थित शंखेश्वर भवन में श्री शंखेश्वर पार्श्वनाथ जैन संघ के तत्वावधान में आयोजित प्रवचन सभा को संबोधित करते हुए भक्तिदर्शनविजयजी म.सा. ने व्यक्त किये।
म.सा. ने कहा कि श्रद्धा संकल्प को जन्म देती है। जीवन यात्रा में पग पग पर परिषह आते हैं। यदि जीवन में धर्म पर दृढ़ श्रद्धा नहीं हो, तो हम विचलित होकर सबसे पहले धर्म ही छोड़ देते हैं। आत्मा के सुख के लिए ही हमें चिंतन करना चाहिए। आत्मा को भूल गए तो फिर हम चौरासी के चक्कर में ही भटकते रहेंगे। प्रवचन के प्रारंभ में साध्वी ऋद्धिप्रभाजी ने कहा कि धर्म उत्कृष्ट मंगल है। धर्म सजावट, आडंबर और मात्र जयकारों में नहीं है।

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धर्म तो हमारे रोम रोम में बस जाना चाहिए, क्योंकि धर्म ही हमें दुर्गति से बचा सकता है। मिले हुए अवसर का लाभ उठाने वाला साधक होता है। प्रचार संयोजक जसराज देवड़ा धोका ने बताया कि आज धर्म सभा में पारसमल ढेलड़िया, किशन लुंकड़, बाबूलाल, राजू वेद मुथा, दिनेश छतरगोता, कांतिलाल भंडारी, बाबूलाल सालेचा व अन्य उपस्थित थे।
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