मेरी लंबी आयु का रहस्य योग है-104 वर्षीय योगाचार्य रतनलाल जाजू

तेलंगाना के सभी योग साधक जानते हैं कि श्री रतनलाल जाजू की उम्र 104 वर्ष में प्रवेश हो गई है। वह ‘दादाजी योगा ग्रुप’ के माध्यम से लोगों को नि :शुल्क योग सिखाते हैं और स्वास्थ्य तथा दीर्घायु के लिए उपाय बताते हैं।
श्री रतनलाल जाजू का जन्म उस्मानाबाद जिले के लातूर तहसील के छोटे-से गांव कलम में सन् 1922 में हुआ था। बचपन में ही वह आर्य समाज संघ से जुड़कर उसकी गतिविधियों में बढ़-चढ़कर भाग लेने लगे। कलम में स्थित आर्य समाज मंदिर में प्रतिदिन आयोजित होने वाले यज्ञ में सम्मिलित होते हैं। आर्यवीर दल में सम्मिलीत होने से प्रात: एवं सायं शारीरिक व्यायाम, लठ चलाना, भाला चलाना आदि में व्यस्त हो गए।
हैदराबाद मुक्ति संग्राम में जाजू जी की भूमिका और शिक्षा यात्रा
भारतीय परतंत्रता के समय हैदराबाद की जनता विशेषकर हिन्दू समाज को निजाम शासन के दौरान भयंकर अत्याचारों से प्रताड़ित किया जाने लगा। ऐसे में श्री रतनलाल जाजू आर्य समाज से जुड़ गए और हैदराबाद को निजाम शासन से मुक्त करने के लिए प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष रूप से निरंतर अपना योगदान देते रहे।
क़लम में आयोजित किए जाने वाले आर्य समाज के सम्मेलनों में स्वयंसेवी के रूप में भाग लेने लगे। उस समय बैरिस्टर विनायकराव विद्यालंकार, तेज़ तर्रार युवा क्रांतिकारी नेता पंडित गंगाराम, पंडित नरेंद्र आदि महापुरुषों की ओजस्वी वाणी से प्रभावित होकर आर्य शिवरों द्वारा आयोजित प्रशिक्षण केंद्रों में भाग लेने लगे। इस दौरान समाज सेवा के लिए नवयुवकों के साथ संगठन को मजबूत करते रहे।
बालक रतनलाल ने प्राथमिक पढ़ाई क़लम से करने के उपरांत परली और अम्बाजोगाई से आगे की पढ़ाई की। हैदराबाद के सिटी कॉलेज से स्नातकोत्तर की पढ़ाई की। उस समय आठवीं कक्षा तक पढ़ाई कर चुका विद्यार्थी वकालत कर सकता था।
हिंदी सेवा, समाज उत्थान और हैदराबाद में पत्रकारिता का योगदान
उस समय पुराने शहर में स्थित बटन फैक्ट्री में काम करने लगे। इस दौरान उन्हें दूरस्थ स्थानों पर जाने का अवसर मिला, जिसका उन्होंने भरपूर लाभ उठाते हुए देश के विभिन्न हिस्सों से संबंधित आर्थिक, सामाजिक एवं राजनीति परिस्थितियों की जानकारी प्राप्त की।
इनका विवाह प्रसिद्ध आर्य समाजी, समाज-सेवी तथा हैदराबाद मुक्ति आंदोलन में अहम भूमिका निभाने वाले श्री मोहनलाल बलदेवा की दोहिती और घनश्याम दास एवं राधा बाई अठासनिया की सुपुत्री शांता देवी से सन् 1944 में हुआ। इस दंपत्ति ने निरंतर आर्य समाज के उत्थान तथा आर्य सत्याग्रहियों की सेवा करने में कोई कसर नहीं छोड़ी।
भारत स्वतंत्र तो हुआ, लेकिन हैदराबाद से निजाम शासन का अंत नहीं हुआ था। अत: इन्होंने निजाम शासन के दौरान हैदराबाद के चारमीनार क्षेत्र में ‘शान्ति प्रिंटर्स’ के नाम से हिंदी प्रिंटिंग प्रेस आरंभ की, जो आज भी सक्रिय है। इस तरह महर्षि दयानंद सरस्वती के बताए हिंदी सेवा के मार्ग पर चलते हुए हिंदी का प्रचार-प्रसार किया।
योग, शिक्षा और सेवा से प्रेरित रतनलाल जाजू का पारिवारिक जीवन
आर्य समाज और महर्षि दयानंद से प्रभावित होने के कारण इन्होंने अपने पांच सुपुत्रियों वसुंधरा, अरुणा, सुषमा, मंजुला और माधुरी को उच्च शिक्षा प्रदान की। इनकी दो पुत्रियाँ डॉक्टर और दो पुत्रियाँ वैज्ञानिक हैं, जो विदेशों में देश का डंका बजा रही हैं। दोनों सुपुत्रों प्रदीप और गिरीश व्यवसाय में संलग्न हैं।
श्री रतनलाल जाजू ने स्वास्थ्य और मोक्ष प्राप्ति के लिए योग पर ध्यान केंद्रित किया। बाबा रामदेव द्वारा आयोजित हैदराबाद योग शिविर, प्रथम से अपनी योग यात्रा शुरु की। हरिद्वार में एक महीने का योग प्रशिक्षण प्राप्त किया। उसके बाद शहर के मलकपेट में स्थित पामेंटम गार्डन में नि:शुल्क योग केंद्र की स्थापित की। सुबह और शाम निरंतर कक्षाएं लेने लगे। इसमें लगभग 100 से अधिक साधक लाभांवित हुए, जिससे इनका हौसला बढ़ा।
अपने जीवन के 103 वर्ष पूर्ण होने के पश्चात भी नि: शुल्क योग प्रशिक्षण देने से पीछे नहीं हटे। प्रतिदिन प्रात: अपने निवास स्थान काचीगुड़ा में स्थित कुत्बीगुड़ा पर ‘दादाजी योगा ग्रुप संघ’ के माध्यम से लोगों को नि:शुल्क योग प्रशिक्षण देते हैं।
इस दंपत्ति ने विदेशों में अपने प्रवास के दौरान जनसाधारण को योग का प्रशिक्षण दिया। आज भी अपने साधकों से संपर्क में हैं। इन्होंने अमेरिका में 8 दिन का प्रशिक्षण शिविर आयोजित करके अनेक साधकों को योग सिखाया है। इनकी धर्मपत्नी शान्ता देवी जाजू ने भी अपने प्रवास के दौरान लंदन में स्थित बर्मिंघम में योग की कक्षाएं लीं, जिससे कई साधक योग के प्रति प्रभावित हुए।
आज 11वें विश्व योग दिवस पर श्री रतनलाल जाजू लोगों को यह संदेश देते हैं कि कम से कम एक घंटा अपने स्वास्थ्य के लिए योग-साधना में लगाओ और सात्विक आहार तथा साधारण जीवन जियो। इसी में सुखी और स्वस्थ तथा लंबी आयु का रहस्य छिपा है।
– भक्त राम
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