चातुर्मास्य के अनुशासन पर्व को समझें आज के युवा

भारत के पारंपरिक सांस्कृतिक जीवन का चातुर्मास्य शुरु हो चुका है। वास्तव में यह धार्मिक दृष्टि से भगवान विष्णु की योग निद्रा के चार महीनों की अवधि है। इस साल यह अवधि 118 दिनों की है। चातुर्मास्य के चार महीनों में किसी तरह के मंगल कार्य का कोई मुहूर्त नहीं होता है। ये चार महीने पूजा-पाठ, जप-तप तथा सत्संग के होते हैं।
सवाल है, भारतीय पारंपरिक सांस्कृतिक जीवन की इस अवधि को आज के युवा कैसे समझें? भारतीय संस्कृति के इस जीवन-ढंग को समझे बिना भारतीयता के सार तत्व को समझ पाना असंभव है। चार महीने का यह समय धार्मिक, सामाजिक, मानसिक और शारीरिक अनुशासन का होता है। आज के युवा संपन्न भारतीय जीवन पद्धति को गहराई से आत्मसात करना चाहते हैं, तो उन्हें इस चातुर्मास्य की अवधि को इस प्रकार समझना चाहिए।
साधारण जीवन-शैली की ताकत
चातुर्मास्य वास्तव में सादा जीवन और संयमित खान-पान की अनुशासित जीवनचर्या का एक बड़ा उदाहरण है। आज के युवा अगर इस चातुर्मास्य को इस तरह ही समझ लें कि उन्हें इन चार महीनों में फास्ट फूड नहीं खाना, अनियमित नींद की जिंदगी नहीं बितानी और डिजिटल ओवर लोड से दूरी बनाकर रखनी है, तो अपने आपमें यह सीख बहुत सार्थक हो सकती है। वास्तव में पारंपरिक भारतीय चातुर्मास्य का अनुशासन मिनिमलिज्म और डिजिटल डिटॉक्स की आधुनिक जीवनशैली का लाभदायक अनुशासन साबित हो सकता है। बशर्ते हम पारंपरिक जीवन-ढंग का मजाक उड़ाना छोड़कर उसकी गहराई को आधुनिक संदर्भों से समझना होगा।
मानसिक और आत्मिक शुद्धि की समयावधि
हम पारंपरिक चातुर्मास्य के जीवन ढंग की अवधि को पारंपरिक जप, तप, व्रत और सत्संग की जगह आज के युवा के लिए तनाव, डिप्रेशन, आत्मसंदेह जैसी स्थितियों से संघर्ष की अवधि मानें, तो ये चार महीने आज के युवाओं के लिए अपने आपकी खोज के यानी स्व-अवलोकन और आत्म-संवाद की प्रेरक अवधि साबित हो सकती है। यह अवधि उनके लिए मानसिक शांति की कुंजी बन सकती है। चातुर्मास्य के दौरान शुद्ध और सात्विक आहार का जीवन जीना होता है। भारतीय युवा इसे दकियानूसी की जगह अपने ‘गट हेल्थ’ के लिए जरूरी डिसिप्लिन मानते हुए चार महीने बिताएं, तो ये महीने उनकी हेल्थ के लिए वरदान साबित हो सकते हैं।
धैर्य और प्रतीक्षा की नई संस्कृति
आज की युवा पीढ़ी इंस्टेंट ग्रैटिफिकेशन की शिकार है, जिसका मतलब होता है कि उन्हें हर चीज उसी वक्त चाहिए। अगर ये चातुर्मास्य की अवधि का सार समझते हुए इसे धैर्य की अवधि की ट्रेनिंग मानें, तो उन्हें यह चातुर्मास्य की ट्रेनिंग बहुत कुछ सिखा सकती है। धैर्य से प्रतीक्षा करने का सुख क्या होता है, वे इस चातुर्मास्य की अवधि को जीते हुए महसूस कर सकते हैं। खुद को सीमित करना और आनंद को लगभग ठहरा देना, यही आत्मविकास का हिस्सा है और चार महीने के चातुर्मास्य से इसी जीवन का अनुभव किया जाता है। अगर युवा इस प्रयोग के हिस्सेदार बनें, तो उन्हें समझ में आ सकता है कि जिंदगी को ऊर्जा से लबरेज और उत्साह से भरपूर कैसे बनाये रखें।
निष्क्रियता का आनंद
निष्क्रिय हमारे जीवन में कितनी प्रभावी ऊर्जा साबित हो सकती है, चातुर्मास्य का जीवन अनुसरण इसका प्रायोगिक उदाहरण है। पारंपरिक चातुर्मास्य में यात्राओं और निर्माण की आपा-धापी को स्थगित करके रखा जाता है। यह परंपरा हमें सिखाती है कि प्रकृति के साथ संतुलन बनाकर चलना कितना जीवंत और कितना सरस होता है।

हर ऋतु का उसके गुणों के मुताबिक सम्मान करना चाहिए। आज जब हम इंसानों की अत्याधिक सक्रियता और उपभोग से पर्यावरण के विनाश की महास्थिति पैदा हो चुकी है, तब हम अगर चार महीने अपनी सक्रिय गतिविधियों को रोक दें, हर पल के निर्माण कार्य की आपाधापी को छुट्टी दे दें, तो इससे दुनिया ठहरेगी नहीं, दुनिया मजबूत बनेगी, खूबसूरत बनेगी और उसमें जीते हुए आनंद आएगा। इस चातुर्मास्य को अगर आज के युवा इस नजरिये से अपनी जीवनशैली की रफ्तार को कुछ दिनों के लिए स्थगित करने का महत्व समझें, तो चातुर्मास्य का आधुनिक संदर्भ समझा जा सकता है।
स्व-अनुशासन और पारिवारिक जुड़ाव का महत्व
चातुर्मास्य के दौरान हर तरह की गतिविधियां स्थगित कर दी जाती हैं। हर तरह यात्राएं, हर तरह की आपा-धापी, हर तरह के निर्माण-कार्य और हर तरह की सक्रियता को विराम देकर परिवार के साथ सहज और सात्विक ढंग से रहने का निर्देश है। अगर आज के हर समय व्यस्त और बेचैन रहने वाले युवा इस निष्क्रिय जीवनशैली के चार महीनों का महत्व समझें तो उनकी जिंदगी में जो कुछ शारीरिक और मानसिक क्षति हुई है, वह इस विश्राम और बिना तनाव के चार महीनों में बिल्कुल स्वस्थ व समृद्ध हो सकती है।
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अगर युवा समझें कि इन चार महीनों में स्वयं के लिए उठाए गये अवकाश से अपनी मानसिक, शारीरिक और भावनात्मक थकान को उतारकर खुद को तरोताजा करें, तो बाकी के आठ महीनों में वो उत्साह और ऊर्जा से लबरेज सौ फीसदी की बजाय तीन सौ फीसदी का जोश-खरोश पूर्ण जीवन जीएंगे। अत: आधुनिक संदर्भों में युवा अगर इस चातुर्मास्य को अपने व्यक्तित्व को स्वस्थ और समृद्ध बनाने के लिए करें तो यह इस सांस्कृतिक पर्व की शानदार समझ साबित हो सकती है।
दिव्यज्योति नंदन
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