अमेरिका और यूरोप के जंजाल में फंसा यूक्रेन


(रूस और यूक्रेन के मध्य चले आ रहे युद्ध के लिए जितने दोषी दोनों देश हैं, उतनी ही दोषी अमेरिका से लेकर मजबूत यूरोपीय देशों की सरकारें भी हैं, जो यूक्रेन के खनिज पदार्थों तक पहुंच बनाने के लिए कभी उसे यूरोपीय संघ की संघटनात्मक शक्ति से जोड़ने, कभी उसे नाटो सेना में सम्मिलित कराने तो कभी रूस के विरुद्ध युद्ध में शक्तिसंपन्न होकर डटे रहने के लिए अत्याधुनिक अस्त्र-शस्त्र देने का प्रलोभन दे रही हैं। अमेरिकी नेतृत्व में ट्रंप इस अमानवीय अभ्यास को रोकने का प्रयास तो कर रहे हैं, किंतु पोनी राष्ट्रपति राष्ट्र प्रमुख बनने से पूर्व की अपनी स्टैंड अप कॉमेडियन की भूमिका से बाहर निकलने को तैयार नहीं हैं। उन्होंने युद्ध, युद्ध में सैनिकों और लोगों की मौतों, पोनियों के विस्थापन, पलायन और मूलभूत आवश्यकताओं के लिए उनके दैनिक संघर्ष, इत्यादि सभी मानवीय पक्षों को ाढरतापूर्ण ढंग से विस्मृत कर दिया है।)
ट्रंप-जेलेंस्की मुलाकात: शांति प्रयासों में विघ्न
शुक्रवार 28 फरवरी को वाशिंगटन में ट्रंप और जेलेंस्की की भेंट अप्रत्याशित तनाव और विवाद में उलझकर रह गई। रूस और यूक्रेन के मध्य तीन वर्ष से हो रहे युद्ध के विराम हेतु प्रयासरत अमेरिकी राष्ट्रपति ने सोचा नहीं होगा कि वोलोदिमिर मनमानी पर उतर आयेंगे तथा वैश्विक कल्याण के दृष्टिगत आयोजित पारस्परिक भेंटवार्ता को निकृष्ट बनाकर असभ्यतापूर्वक विवाद करने लगेंगे।
ट्रंप की एक भी बात का समुचित उत्तर न देकर व्यर्थ हठ पर अड़े रहे जेलेंस्की को अमेरिकी उप-राष्ट्रपति जेडी वेंस ने अभद्रता दिखाने के लिए कोसा और ओवल कार्यालय छोड़ने के लिये कह दिया। औपचारिक अभिवादन के बाद जेलेंस्की इस बात पर अड़ गये कि रूस के साथ युद्ध-समाप्ति के समझौते पर वे तब ही सहमत होंगे जब अमेरिका भविष्य में उन्हें रूस के किसी भी सैन्य-असैन्य आक्रमण से पूर्ण सुरक्षा देने का समर्थन करे और इस आशय का वचनपत्र सौंपे। साथ ही उन्होंने रूसी राष्ट्रपति पुतिन को आतंकवादी बोल दिया और ट्रंप से कहा कि पोन व दुनिया को ऐसे आतंकी, हत्यारे के साथ कोई समझौता नहीं करना चाहिये।
ट्रंप ने कहा कि अमेरिकी नवशासन रूस-यूक्रेन युद्ध समाप्त करने का प्रयास कर रहा है और आप लाखों लोगों के जीवन से खेल रहे हैं, आप तृतीय विश्व युद्ध का वातावरण बना रहे हैं, आप जो कर रहे हैं वो अपमानजनक है, अमेरिका ने आपकी सर्वाधिक सहायता की है, अमेरिका चाहता है कि इस युद्ध में हो रही मौतें बंद हों और यूक्रेन के लिए आवंटित होनेवाला धन उसके पुनर्निर्माण के कार्यों में लगे।
जेलेंस्की की मूर्खता: शांति समझौते में रुकावट
संपूर्ण विश्व में शांति के समर्थक लोगों में इस बात का हर्ष था कि चलो ट्रंप के साथ जेलेंस्की की वार्ता के बाद पोन और रूस के मध्य युद्ध-समाप्ति के लिए समझौता होगा और इन देशों के युद्ध से अभिशप्त दुनिया को एक नवशांत वातावरण देखने को मिलेगा, किंतु जेलेंस्की की मूर्खता और अभिमान ने शांति समझौते के मार्ग में बाधा उत्पन्न कर दी है।
ट्रंप और जेलेंस्की की विवादास्पद भेंटवार्ता को दुनिया के वामपंथी और दक्षिणपंथी लोग अपनी-अपनी दृष्टि से देखते हुए ही प्रतिािढया दे रहे हैं। लोग ही नहीं वैश्विक मीडिया भी वाम और दक्षिण पंथ के दो ध्रुवों में विभाजित होकर विवादित वार्ता के अपने-अपने अर्थ व अभिप्राय निकाल रहा है। वैश्विक समाचार संकलनकर्ता एजेंसियों में वामपंथियों की भरमार है।
इसीलिए विश्वभर के समाचारपत्रों और मीडिया चैनलों को इस प्रसंग पर प्रेस सूचना के नाम पर जो सूचना-सामग्री प्राप्त हुई है, उसमें जेलेंस्की के दुस्साहसी आचरण और असभ्य व्यवहार को गुप्त रखते हुये उन्हें पीड़ित राष्ट्रपति के रूप में विचारित-प्रदर्शित किया गया है।
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यूक्रेन युद्ध: शांति और स्वार्थ की राजनीति
जहां वामपंथी लोग जेलेंस्की का पक्ष लेते हुए यह कह, लिख और प्रचारित कर रहे हैं कि ट्रंप और जेडी वेंस उन पर भड़क गये वहां दक्षिणपंथी लोग भलीभांति समझ रहे हैं कि दुनिया के बड़े हिस्से पर काबिज वामपंथी मानसिकता इस बैठक के बाद ट्रंप पर नकारात्मक व पक्षपाती होने का आरोप लगाने को तैयार बैठी हुई है।
हालांकि यह सत्य है कि अमेरिका युद्धरत दोनों देशों के मध्य युद्धविराम कराने के लिए स्वार्थ भी पोषित करना चाहता है, किंतु इस संदर्भ में यह भी एक ध्रुवसत्य है कि जहां पिछली अमेरिकी सरकार इन दोनों देशों के मध्य युद्ध को आरंभ करवाकर, उकसाकर, भड़काकर और युद्ध में मृत्यु का तांडव कराकर अपना स्वार्थ साधती रही थी, वहीं विद्यमान अमेरिकी सरकार युद्ध रोककर और शांति समझौता करवाकर अमेरिकी हित साधना चाहती है।

संभवत दुनिया के किसी भी सकारात्मक और समुचित अर्थों में विचारशील मनुष्य को ऐसा शांति समझौता ही उपयुक्त लगेगा। किंतु जेलेंस्की को ऐसा करना उपयुक्त नहीं लग रहा है। वह अमेरिका, इंग्लैंड, जर्मनी, पोलैंड, बेलारूस, हंगरी और अन्य यूरोपीय देशों के डीप स्टेट्स के उकसावे में पोन का बड़ा विनाश तो पहले ही करवा चुके हैं और अब भी चेतनाशून्य ही प्रतीत होते हैं।
यूक्रेन: युद्ध, विस्थापन और ऐतिहासिक संघर्ष की कहानी
उन्हें याद करना चाहिए कि फरवरी 2022 में रूस के पहले हमले के बाद से लेकर अब तक दोनों ओर कुल लाखों सैनिकों और लोगों की मौतें हो चुकी हैं। लाखों लोग विस्थापित हो चुके हैं, मूलभूत आवश्यकताओं से वंचित हैं और पोन छोड़कर जा चुके हैं।
आज चाहे अमेरिका के स्तर पर भीतरी-बाहरी समस्यायें हों या किसी भी अन्य देश की आंतरिक-बाह्य कठिनाइयां सत्तर, अस्सी और नब्बे के दशक में यूरोपीय संघ द्वारा संपूर्ण यूरोप को स्थानीय ग्राम और विश्व को वैश्विक ग्राम में परिवर्तित करने की नीतियों के क्रियान्वयन के पश्चात ही आरंभ हो गई थीं।
पूर्वी यूरोप का हिस्सा यूक्रेन पिछली कई शताब्दियों से अपने चारों ओर स्थित यूरोपीय देशों की राजनीतिक, सामाजिक, आर्थिक और वैज्ञानिक गतिविधियों से प्रभावित व पीड़ित रहा है। दुनिया में कम क्षेत्रफल और जनसंख्या के साथ विद्यमान अधिसंख्य देशों की यही दशा-दिशा रही है। इस स्थिति में यूक्रेन भी जनसंख्या, संसाधनों और आर्थिक आधार पर एक वास्तविक स्वायत्त देश नहीं बन सका।
यूक्रेन में जनांदोलन और रूस-यूक्रेन संघर्ष की शुरुआत
कभी यहां पोलैंड, कभी बेलारूस, कभी जर्मनी, कभी किसी अन्य यूरोपीय देश तो कभी पड़ोसी रूस का व्यापक प्रभाव रहा है। इसी कारण नवंबर 2012 में उस समय तत्कालीन राष्ट्रपति विक्टर यानुकोविच के विरोध में एक बड़ा जनांदोलन यूक्रेन में उठ खड़ा हुआ, जब उन्होंने यूरोपीय संघ के साथ एक बड़ा व्यापार समझौता निरस्त कर दिया और रूस के साथ एकीकृत होने का निर्णय लिया।
इसके विरोध में तत्कालीन अमेरिकी शासन सहित लगभग सभी यूरोपीय देश एकत्र हो गये। यूक्रेनयों को यानुकोविच के विरोध में भड़काया गया और राजधानी कीव में बड़ा जनांदोलन आरंभ हो गया। यानुकोविच पर षड्यंत्रपूर्वक महाभियोग भी चलवाया गया।
अंतत जब पोनी जनता उनके विरोध में हो गई और रूस को लगा कि पोन उसके हाथ से निकल जायेगा तो उसने यूक्रेन के क्रीमिया में, जहां रूसी लोगों की बड़ी जनसंख्या थी, सैन्यबल द्वारा कब्जा करना आरंभ करवा दिया। इसके बाद यूक्रेन और रूस के मध्य सैन्य टकराव होने आरंभ हो गये।
यूक्रेन-रूस युद्ध: शक्ति संघर्ष और शांति की संभावना
रूस और यूक्रेन के मध्य चले आ रहे युद्ध के लिए जितने दोषी दोनों देश हैं, उतनी ही दोषी अमेरिका से लेकर मजबूत यूरोपीय देशों की सरकारें भी हैं, जो यूक्रेन के खनिज पदार्थों तक पहुंच बनाने के लिए कभी उसे यूरोपीय संघ की संघटनात्मक शक्ति से जोड़ने, कभी उसे नाटो सेना में सम्मिलित कराने तो कभी रूस के विरुद्ध युद्ध में शक्तिसंपन्न होकर डटे रहने के लिए अत्याधुनिक अस्त्र-शस्त्र देने का प्रलोभन दे रही हैं।
अमेरिकी नेतृत्व में ट्रंप इस अमानवीय अभ्यास को रोकने का प्रयास तो कर रहे हैं, किंतु पोनी राष्ट्रपति राष्ट्र प्रमुख बनने से पूर्व की अपनी स्टैंड अप कॉमेडियन की भूमिका से बाहर निकलने को तैयार नहीं हैं। उन्होंने युद्ध, युद्ध में सैनिकों और लोगों की मौतों, पोनियों के विस्थापन, पलायन और मूलभूत आवश्यकताओं के लिए उनके दैनिक संघर्ष, इत्यादि सभी मानवीय पक्षों को क्रूरतापूर्ण ढंग से विस्मृत कर दिया है।
आगामी दिवसों में यही आशा की जा सकती है कि वे व्यर्थ हठवृत्ति छोड़ युद्धविराम के समझौते को प्रतिकूल शर्तों के आधार पर भी स्वीकार करें, क्योंकि अब उनके पास अपने लोगों की रक्षा का एकमात्र यही उपाय शेष है।
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