जो बदलता है, वह धर्म नहीं : विजयलताजी


हैदराबाद, दशवैकालिक सूत्र में धर्म की आराधना करनी चाहिए और धर्म की परिभाषा अलग-अलग बताई गई है। धर्म शुद्ध आत्मा में रहता है। उसके लिए स्थान, क्षेत्र का अच्छा होने के साथ आत्म शुद्धि हो। परमात्मा ने बताया कि धर्म शाश्वत है, जो कभी बदलता नहीं। जो बदलता है, वह धर्म नहीं है। भगवान महावीर ने कहा कि वस्तु का स्वभाव ही धर्म है। हर वस्तु अपने स्वभाव में रहती है और वह अपने गुण के बिना जी नहीं सकता। पानी का गुण शीतल और अग्नि का वास्तविकता गुण ऊष्णता है। यदि यह दोनों अपने गुण त्याग दें, तो फिर पानी व अग्नि नहीं कहलायेंगे। हर वस्तु अपने गुण में स्थापित होती है। केवल मनुष्य ही दुर्गुण होता है, जो अपने गुण में स्थिर नहीं रहता। मनुष्य हर प्रकार से किसी के सद्गुणों को नहीं, बल्कि दुर्गुणों को ही देखता है। जो स्वयं के दुर्गुण पर विचार नहीं करता, वह धर्मी नहीं होता।
उक्त उद्गार सिकंदराबाद स्थित मारुति विधि जैन स्थानक में विजयलताजी म.सा. आदि ठाणा-3 ने चातुर्मास प्रवचन श्रृंखला के अन्तर्गत व्यक्त किए। पूज्यश्री ने कहा कि धर्म के विभिन्न रूप है। धर्म आज्ञा में है। बुजुर्गों को प्रणाम करना, उनकी सेवा कर आज्ञा का पालना करना धर्म है। आज हम सभी अनाज्ञावर्तन करते हैं। आज के बाद दस वर्षों में धर्म बचेगा या नहीं, पालन करने वाले होंगे या नहीं शंका है। पर यह बात तो सुनिश्चित है कि दुनिया में एक आद तो होगा, जो आज्ञा में वस्तु के स्वभाव को आत्मा में रमण करने वाला होगा। शरीर की आवश्यकता है कि हम धर्म की साधना करें, जिसके लिए शुद्ध आहार लें। दस दिन तक सभी साथ रहने के बाद ग्यारहवें दिन अलग होने पर याद आती है, यह व्यक्ति का स्वाभाविक धर्म है। आगामी महाधिराज पर्युषण पर्व में कम से कम एक संवत्सरी के दिन उपवास करें। 364 दिन आहार के साथ रहें, एक बार आहार से अलग करने की इच्छा करें। आत्मा की अवस्था अनाहार वाली है। उपवास करने से कितने लाभ हैं, नवकारसी करने से 100 वर्ष के नारकी के कर्म क्षय होते हैं। इसी प्रकार पोर्षी करने से एक और बिन्दी बढ़ाते रहो, लेकिन एक घड़ी, घड़ी के पचखान करें, तो एक उपवास से भी ज्यादा लाभ देता है। शुद्ध आहार करते हुए खाते-पीते जाना है, तो रात्रि भोजन एवं अभक्ष भोजन से दूर रहें। आहार शुद्धि नहीं तो शरीर की भी शुद्धि नहीं होती। शुद्ध आहार करते हैं, तो शरीर से सुंगध ही सुंगध निकलती है। खाते खाते मोक्ष जाने के भी उदाहरण हैं। महाभारत के कितने ही पात्र मोक्ष में गय। पाँचों पांडव मोक्ष में गये। जैन धर्म में त्याग की विशेष प्रधानता है। त्याग पचखान जैन धर्म में होते हैं, पर आज लोग नियम से ही डरते हैं। जब तक नियम नहीं लेंगे, तब तक न नंदन वन मिलेगा, न जीवन में पुष्प खिलेंगे।

प्रज्ञाश्रीजी म.सा. ने कहा कि अमावस्या का अंधकार एक सूरज की किरण को प्राप्त करते ही भाग जाता है। आचार्य मानतुंग ने भगवान आदिनाथ की स्तुति करते हुए कहा कि आत्मा के संकट मिट जायेंगे, इसलिए वितराग परमात्मा की स्तुति कर रहे हैं। रागी होकर वितरागी की स्तुति कर रहे हैं। संसारी होकर सिद्धत्व की स्तुति करते हैं। परमात्मा के स्तवन से करोड़ भव के करोड़ों पाप क्षय हो जाते हैं।
कार्यक्रम का संचालन करते हुए कोषाध्यक्ष विजयराज डूंगरवाल ने बताया कि आज आनपूर्वी जाप के लाभार्थी हीरालाल शांतिलाल गौतमचंद गुलेच्छा परिवार थे। तपस्या की कड़ी में आज राजेश जीवराज गुगलिया ने सात उपवास के पचकान लिए। संघ की और से तपस्वी का बहुमान किया गया। कार्याध्यक्ष शांतिलाल बोहरा ने बताया कि शनिवार, 25 अगस्त को दोपहर 12.30 बजे से अरिहंत नवयुवक मंडल द्वारा ज्ञान प्रशन मंच सीजन-4 का आयोजन किया जाएगा, जिसमे त्रय नगर की टीमें हिस्सा लेंगी। सभी को सांत्वना पुरस्कार व उत्तीर्ण होने वाली टीमों को प्रभावना के रूप में बहुमान किया जाएगा। कार्यक्रम के पश्चात संघ को और से अल्पाहार की व्यवस्था रहेगी।
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