महिलाओं की अदम्य शक्ति का उत्सव
अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस की बधाई! महिला शक्ति की उपलब्धियों और संभावनाओं के इस उत्सव के लिए इस वर्ष का बीजवाक्य कार्रवाई में तेजी लाएँ (एक्सेलरेट एक्शन) विशेष महत्व रखता है। क्योंकि दुनिया भर के सयाने ढिंढोरा पीट-पीट कर बता रहे हैं कि वर्तमान गति से तो स्त्रा-पुरुष समानता का लक्ष्य पाने में अभी कम से कम 5 पीढ़ियाँ और खप जाएँगी!
भारत जैसे देश के लिए यह और भी मानीख़ेज़ है। यहाँ महिला सशक्तीकरण, हमेशा से, चुनौती और उपलब्धि दोनों रहा है। इस वर्ष, जब हम अब तक की प्रगति और आगे के स़फर पर नजर डालते हैं, तो उन भारतीय महिलाओं के साहस और संकल्प का जश्न मनाना ज़रूरी हो जाता है, जिन्होंने हर बाधा को पार कर समाज को अधिक समावेशी और प्रगतिशील बनाने में योगदान दिया है और यह साबित किया है कि महिलाओं की भूमिका देश के विकास की रीढ़ है।
सयाने याद दिला रहे हैं कि अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस हर साल 8 मार्च को दुनियाभर में महिलाओं की सामाजिक, आर्थिक, सांस्कृतिक और राजनीतिक उपलब्धियों के सम्मान में मनाया जाता है। यह भी कि इसका इतिहास 1900 के दशक के शुरूआती वर्षों तक जाता है। सार्वभौमिक महिला मताधिकार आंदोलन से प्रेरित यह दिन दुनिया भर में लैंगिक समानता, प्रजनन अधिकार और महिलाओं के खिलाफ हिंसा और दुर्व्यवहार जैसे मुद्दों पर ध्यान केंद्रित करता है।
महिला सशक्तीकरण की योजनाएँ और सामाजिक बदलाव
1977 में संयुक्त राष्ट्र ने इसे विधिवत मान्यता प्रदान की। 2025 के इसके बीजवाक्य का मुख्य उद्देश्य भी यही है कि अब बदलाव की गति को और तेज किया जाए। दुनिया देख रही है कि आज भारतीय महिलाएँ विज्ञान और तकनीक से लेकर खेल तक तथा कॉरपोरेट नेतृत्व से लेकर सामाजिक आंदोलनों तक हर क्षेत्र में अग्रणी हैं।
सार्वजनिक जीवन में अनेक प्रेरणादायी नेत्रियों ने नई पीढ़ी के लिए रास्ते बनाए हैं। लेकिन, इन सफलताओं के बावजूद ज़मीनी ह़क़ीकत यह है कि वेतन असमानता, नेतृत्व में कम प्रतिनिधित्व, स्वास्थ्य सेवाओं की सीमित पहुँच और लैंगिक हिंसा जैसे मुद्दे आज भी महिलाओं की प्रगति में बाधा बने हुए हैं। यहाँ यह दोहराना अप्रासंगिक न होगा कि इन चुनौतियों को समझते हुए भारत सरकार ने महिलाओं के सशक्तीकरण के लिए कई योजनाएँ शुरू की हैं।
बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ, महिला शक्ति केंद्र और प्रधानमंत्री मातृ वंदना योजना जैसी पहलें, शिक्षा, स्वास्थ्य और आर्थिक भागीदारी के क्षेत्र में महिलाओं को सशक्त बनाने का काम कर रही हैं। ये केवल कल्याणकारी योजनाएँ नहीं हैं, बल्कि ऐसे कदम हैं जो महिलाओं को आत्मनिर्भर बनाने के लिए आवश्यक माहौल तैयार कर रहे हैं। हालाँकि, इस दिशा में असली क्रांति लाने के लिए, नीति से ज़्यादा ज़रूरी है- सामाजिक बदलाव।
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महिला स्वास्थ्य नवाचार और समानता की दिशा में कदम
स्वास्थ्य नवाचार के क्षेत्र में भी महिलाओं के लिए भारत ने सराहनीय प्रगति की है। दूरदराज की महिलाओं तक टेलीमेडिसिन सेवाएँ पहुँचाना हो या मातृ स्वास्थ्य पर हो रहा अनुसंधान, भारत महिला-केंद्रित स्वास्थ्य समाधानों में नए कीर्तिमान स्थापित कर रहा है। ये नवाचार न केवल जीवन बचाते हैं, बल्कि महिलाओं को समाज और अर्थव्यवस्था में अपनी पूरी भागीदारी निभाने का अवसर भी देते हैं।
इस वर्ष का महिला दिवस हमें यही संदेश देता है कि कार्रवाई में तेजी लाएँ – न केवल नीति के स्तर पर, बल्कि सामाजिक इच्छाशक्ति के माध्यम से भी। हमें ऐसा माहौल बनाना होगा जहाँ महिलाओं के योगदान को सम्मान मिले, उनकी आवाज सुनी जाए। कंपनियों को समान अवसर देने की प्रतिबद्धता निभानी होगी, शैक्षणिक संस्थानों को लैंगिक पक्षपात ख़त्म करना होगा और समाज को महिलाओं की गरिमा और सुरक्षा की जिम्मेदारी उठानी होगी।
आज जब हम अंतरराष्ट्रीय मंच पर भारतीय महिलाओं की उपलब्धियों का जश्न मना रहे हैं, तब यह याद रखना भी ज़रूरी है कि असली समानता अभी बाकी है। हमें उन तमाम बाधाओं को खत्म करने की ज़रूरत है, जो महिलाओं को आगे बढ़ने से रोकती हैं। यह केवल महिलाओं का मुद्दा नहीं है, बल्कि पूरे समाज का विकास इसी पर निर्भर करता है।
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