बलूचिस्तान ट्रेन हमला यानी ख़तरे की घंटी


बलूच लिबरेशन आर्मी द्वारा बलूचिस्तान के बोलान जिले में जाफर एक्सप्रेस के अपहरण ने एक बार फिर पाकिस्तान के दक्षिण-पश्चिमी प्रांत में लंबे समय से चले आ रहे विद्रोह की जटिलता को उजागर कर दिया है। यह दुस्साहसी हमला, जिसमें कई लोग हताहत हुए और एक तनावपूर्ण बंधक स्थिति उत्पन्न हुई, क्षेत्र की अस्थिरता को रेखांकित करता है और भविष्य में बलूचिस्तान के संघर्ष की दिशा को लेकर गंभीर सवाल खड़े करता है।
खबर है कि 11 मार्च, 2025 को क्वेटा से पेशावर जा रही जाफर एक्सप्रेस पर बलूच लिबरेशन आर्मी के उग्रवादियों ने घात लगाकर हमला किया। आतंकियों ने पहले रेलवे ट्रैक पर विस्फोट कर ट्रेन को सुरंग के पास रोक दिया। इसके बाद आतंकियों ने ट्रेन में मौजूद सुरक्षा बलों पर गोलियाँ चलाईं, जिसमें कई लोग मारे गए। हमलावरों ने 100 से अधिक यात्रियों को बंधक बना लिया, जिनमें कुछ सैन्य और पुलिसकर्मी भी शामिल थे।
बलूच लिबरेशन आर्मी: विद्रोह, रणनीति और बढ़ता खतरा
उग्रवादियों ने अपने कैदियों की रिहाई की माँग करते हुए बंधकों को जान से मारने की धमकी दी। इस टिप्पणी के लिखे जाने तक स्थिति अस्पष्ट और अनिश्चित बनी हुई है। यहाँ ठहरकर इस हमले के ऐतिहासिक संदर्भ को समझना ज़रूरी है। दरअसल, बलूच लिबरेशन आर्मी पिछले दो दशकों से बलूचिस्तान में एक कम तीव्रता वाला विद्रोह चला रही है, जिसका उद्देश्य प्रांत के प्राकृतिक संसाधनों पर अधिक नियंत्रण और स्वायत्तता प्राप्त करना है।
पारंपरिक तौर पर बलूच लिबरेशन आर्मी गुरिल्ला रणनीति अपनाती थी, लेकिन 2018 के बाद उनके हमले अधिक योजनाबद्ध और घातक होते गए हैं। जाफर एक्सप्रेस पहले भी कई बार उनके निशाने पर रही है, खासतौर पर इसलिए कि इसमें सुरक्षा कर्मियों का सफर करना आम बात है। अब अगर इस हालिया हमले के प्रभाव की बात करें, तो सबसे पहले तो यह अपहरण कांड इस विद्रोही संगठन की रणनीति में बदलाव का सूचक है।
साथ ही, इस घटना से स्पष्ट है कि बलूच लिबरेशन आर्मी अब अधिक संगठित और उन्नत हमले करने में सक्षम है। यह पाकिस्तान की आतंकवाद-रोधी रणनीति के लिए एक गंभीर चुनौती है और भविष्य में बुनियादी ढाँचे को निशाना बनाए जाने की आशंका को बढ़ाता है। कहना न होगा कि इस घटना में निर्दोष यात्रियों को बंधक बनाकर आतंकियों ने अंतरराष्ट्रीय मानवाधिकार मानकों का घोर उल्लंघन किया है।

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पाकिस्तान के लिए चेतावनी: बलूच संघर्ष और समाधान
ऐसे हमले आम नागरिकों में भय और असुरक्षा का माहौल गहराते हैं, और किसी भी स्तर पर इनका समर्थन नहीं किया जाना चाहिए। सयाने बता रहे हैं कि बलूचिस्तान की अशांति का खासतौर पर चीन-पाकिस्तान आर्थिक गलियारे- सीपेक- पर दूरगामी असर हो सकता है। बलूच लिबरेशन आर्मी पहले भी चीनी नागरिकों और अहम बुनियादी ढाँचा परियोजनाओं को निशाना बनाती रही है।
कहना न होगा कि यह आतंकी हमला पाकिस्तान के लिए खतरे की ज़ोरदार घंटी है। इस सच्चाई के मद्देनज़र अगर पाकिस्तान सरकार ने वक़्त रहते व्यापक राजनीतिक संवाद शुरू न किया, तो परिणाम और भी घातक हो सकते हैं। उसे समझना होगा कि बलूचिस्तान के संघर्ष का समाधान केवल सैन्य कार्रवाई से संभव नहीं है।
इसके लिए पाकिस्तान सरकार को बलूच समुदाय के राजनैतिक और आर्थिक अधिकारों को मान्यता देते हुए सार्थक संवाद स्थापित करना होगा। परिवहन नेटवर्क और अन्य संवेदनशील बुनियादी ढाँचे की सुरक्षा के लिए गहन खुफिया तंत्र, सामुदायिक निगरानी और आधुनिक तकनीक का उपयोग अनिवार्य है, सो अलग।
इसके अलावा, चूँकि इस संघर्ष के तार अंतरराष्ट्रीय परियोजनाओं तक फैले हुए हैं, इसलिए खुफिया जानकारी साझा करने, आर्थिक विकास में सहयोग और कूटनीतिक प्रयासों के माध्यम से क्षेत्रीय स्थिरता सुनिश्चित करने के लिए वैश्विक सहयोग भी ज़रूरी है। अंतत, इतना और कि अब जब ख़ुद के घर में आग लग रही है, तो पाकिस्तान को आतंकवाद से तौबा कर लेनी चाहिए!
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