सच्ची जीत के लिए करें क्रोध को पराजित : भक्तिदर्शनजी

हैदराबाद, सच्ची जीत प्राप्त करने के लिए क्रोध को पराजित करना चाहिए। जो अपने मन पर विजय प्राप्त कर लेता है, वही संसार पर विजय पा सकता है। उक्त उद्गार गोशामहल स्थित शंखेश्वर भवन में श्री शंखेश्वर पार्श्वनाथ जैन संघ के तत्वावधान में आचार्य श्री भक्तिरत्न सूरीश्वरजी के सुशिष्य श्री भक्तिदर्शन विजयजी म.सा. ने दिये। म.सा. ने कहा कि मानव-जीवन का सौंदर्य उसकी शांति, प्रेम और करुणा में निहित है, परंतु जब हृदय में क्रोध की चिंगारी प्रज्वलित होती है, तो वही चिंगारी पलभर में अग्नि बनकर जीवन के सौंदर्य को भस्म कर देती है।

क्रोध केवल एक भावना नहीं, विनाश का दूत है, जो मन से शांति छीन लेता है, संबंधों में जहर घोल देता है और आत्मा की ज्योति को धुंधला कर देता है। क्रोध में मनुष्य का मूल स्वभाव ही बदल जाता है। शांत मन अशांत हो जाता है, क्षमाशीलता नष्ट हो जाती है और प्रेमपूर्ण वाणी कठोरता में बदल जाती है। बोले हुए शब्द भले ही हवा में खो जाएँ, लेकिन उनका घाव हृदय में लंबे समय तक जहरीली प्रतिध्वनि की तरह गूंजता रहता है। यह घाव रिश्तों को खा जाता है और व्यक्ति को अपनी ही बनाई दीवारों में कैद कर देता है।

म.सा. ने कहा कि क्रोध का एक ही प्रहार सौम्यता के भवन को धराशायी कर देता है। परिवार की मधुर सरगम टूट जाती है, प्रेम की हल्की हवा तूफान में बदल जाती है। जहाँ समाधि का मार्ग खुलने वाला था, वहाँ अंधकार छा जाता है। क्रोध व्यक्ति की आध्यात्मिक यात्रा को रोक देता है, सद्गति के द्वार बंद कर देता है और परम पद को दूर कर देता है।
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क्रोध पर नियंत्रण से परिवार और जीवन में शांति
क्रोध विनाशकारी है, क्योंकि यह हृदय में बैर और शत्रुता के बीज बोता है, जो धीरे-धीरे वृक्ष बनकर जीवन को काँटों से भर देते हैं। बुद्धि अंधकारमय हो जाती है, चेतना क्षीण हो जाती है और परिणामस्वरूप व्यक्ति अपने आसपास के लोगों का विश्वास खो देता है। प्रेम के बंधन टूट जाते हैं और हृदय के मधुर भाव सदा के लिए दब जाते हैं।

म.सा. ने कहा कि जो व्यक्ति बार-बार क्रोध में जीता है, वह अपने ही हाथों अपने जीवन का विनाश करता है। उसे अपयश मिलता है, संबंध टूटते हैं, मानसिक तनाव बढ़ता है और उसकी अंत शक्ति धीरे-धीरे समाप्त हो जाती है। क्रोध क्षणिक भावना नहीं, यह कर्म बंधन का कारण है, जो नफरत और द्वेष से जन्म-जन्मांतर के बंधनों को और गहरा कर देता है। परिवार में तो क्रोध विष के समान सिद्ध होता है। सदस्यों में असहयोग बढ़ता है, पत्नी प्रेमपूर्वक बुलाना छोड़ देती है, पुत्र विमुख हो जाते हैं, स्वजन अपमानित अनुभव करते हैं और मित्र मौन धारण कर लेते हैं।
जो घर पहले शांति और सुख का मंदिर था, वह नर्क समान बन जाता है। सच्ची शक्ति तो क्रोध पर नियंत्रण करने में है। जो व्यक्ति क्रोध की अग्नि को बुझाकर शांति का दीप प्रज्वलित कर सके, वही वास्तव में विजयी है। प्रचार संयोजक जसराज देवड़ा धोका ने बताया कि ज्ञान पंचमी का आयोजन रविवार 26 अत्तूबर को किया जाएगा जिसमें माँ सरस्वती साधना पूजन अनुष्ठान होंगे। संघ के अध्यक्ष चंपालाल भंडारी एवं मंत्री फतेहराज श्रीश्रीमाल ने सभी से कार्यक्रम में भाग लेने का आग्रह किया।
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