ग़ाज़ा शांति समझौता : आँसुओं में भीगी नई सुबह

Ad

शर्म अल शेख की रेतीली धरती पर 13 अक्तूबर, 2025 को इतिहास ने एक करुणापूर्ण मोड़ लिया। अमेरिकी राष्ट्रपति डोनल्ड ट्रंप, मिस्र के राष्ट्रपति अब्देल फतह अल-सीसी, कतर के अमीर तमीम बिन हमद अल थानी और तुर्की के राष्ट्रपति रेसेप तैयप अर्दोगन ने ग़ाज़ा शांति समझौते पर हस्ताक्षर कर दो वर्षों के रक्तरंजित संघर्ष को विराम दिया। यह क्षण उन लाखों फिलिस्तीनियों और इजराइलियों के लिए राहत की साँस लेकर आया, जिन्होंने इस संकट के दौरान अपनों को खोया है। हालाँकि यह तो वक़्त ही बताएगा कि यह स्थायी शांति है या मात्र थकान का साया!

सयाने बता रहे हैं कि यह समझौता बहुआयामी है। राजनीतिक स्तर पर, इजराइल-हमास के बीच युद्धविराम को सुनिश्चित करता है। हमास ने 20 जीवित इजराइली बंधकों को रिहा किया। बदले में इजराइल ने 250 आजीवन कैदियों सहित 1,950 फिलिस्तीनी मुक्त किए। इजराइली सेनाओं की 70 प्रतिशत निकासी और डिमिलिटराइजेशन -हथियार नष्ट करना, सुरंगें ध्वस्त करना – दो-राज्य समाधान की दिशा में प्रस्थान-बिंदु बन सकते हैं।

सैन्य थकान और आर्थिक दबाव से बनी शांति राह

आर्थिक रूप से, इस समझौते में ग़ाज़ा के पुनर्निर्माण के लिए 120 अरब डॉलर की सहायता और 300 अरब डॉलर निवेश का वादा शामिल है। रफाह क्रॉसिंग खुलने से अब पानी, बिजली और चिकित्सा सहायता बेरोक-टोक पहुँचेगी। सामाजिक रूप से, अंतरराष्ट्रीय स्थिरीकरण बल (इंटरनेशनल स्टेबिलाइजेशन फोर्स -आईएसएफ) सुरक्षा देगा, जिसमें ब्रिटिश और इंडोनेशियाई सेनाएँ शामिल होंगी। इस तरह शायद यह समझौता उन निर्दोष माताओं के घावों पर मरहम लगा सके जिन्होंने इस दुर्भाग्यपूर्ण संघर्ष में अपने बच्चे खोए हैं!

एक और बात। युद्ध के उन्माद में पगलाए दोनों पक्ष इस समझौते के लिए आसानी से राज़ी नहीं हुए हैं। उन्हें वार्ता के लिए प्रेरित करने में प्रमुख रही सैन्य थकान। इजराइल के फिलाडेल्फी कॉरिडोर पर कब्जे से हमास की आपूर्ति कटी। ग़ाज़ा में अराजकता -भोजन की कमी और अपराध की वृद्धि -ने हमास पर आंतरिक दबाव डाला। इजराइल में भी युद्ध की लंबाई से राजनीतिक असंतोष बढ़ा। दूसरे, कतर ने हमास नेताओं को निष्कासित करने की धमकी दी।

अमेरिका ने समय-सीमाएँ लगाईं। मिस्र ने क्षेत्रीय खतरों की चेतावनी दी। संयुक्त राष्ट्र की नरसंहार घोषणा और फिलिस्तीन की मान्यता ने इजराइल को बाध्य किया। आर्थिक-मानवीय संकट – विस्थापन और मौत -ने दोनों पक्षों को मजबूर किया कि वे सहायता और अदला-बदली पर सहमत हों। देखना यह होगा कि दोनों इस तरह ज़बरन कितनी देर तक अच्छे बच्चे बने रह पाएँगे!

Ad

यह भी पढ़ें… जब युद्धवीरजी के सामने मौन हो गये रफी साहब

जन आंदोलनों से संभव हुआ ग़ाज़ा शांति समझौता

गौरतलब है कि युद्धरत पक्षों और उनके समर्थकों को समझौते के लिए बाध्य करने में जन आंदोलनों की भूमिका की भी अनदेखी नहीं की जा सकती। इजराइल में हजारों लोगों ने तेल अवीव में प्रदर्शन कर बंधकों की रिहाई माँगी। रेड लाइन फॉर ग़ाज़ा मार्च ने नागरिक मौतों को रोकने की अपील की। वैश्विक स्तर पर, अमेरिका, ब्रिटेन, फ्रांस, जर्मनी, स्पेन और इंडोनेशिया में लाखों लोग सड़कों पर उतरे।

4-5 अक्तूबर, 2025 को स्टॉप आर्मिंग जेनोसाइड के नारे गूँजे। जून 2025 के ग्लोबल मार्च टू ग़ाज़ा में 54 देशों से 10,000 कार्यकर्ता शामिल हुए। ट्यूनीशिया के स्टेडफास्टनेस कन्वॉय में 7,000 लोग थे। ब्रिटेन में पैलेस्टाइन ऐक्शन बैन और जर्मनी-बेल्जियम में बंदरगाह ब्लॉक जैसे आंदोलनों ने डिप्लोमैटिक प्रेशर बनाया। तब जाकर कहीं शर्म अल शेख समिट संभव हुआ। काश, यह समझौता रक्त से लिखी इस कहानी का अंतिम अध्याय हो और – बक़ौल साहिर लुधियानवी – दुनिया यह समझ सके कि-

जंग तो ख़ुद ही एक मसअला है, जंग क्या मसअलों का हल देगी?
आग और ख़ून आज बख़्शेगी, भूख और एहतियाज कल देगी!
इसलिए, ऐ शऱीफ इंसानों! जंग टलती रहे तो बेहतर है!
आप और हम सभी के आँगन में, शमा जलती रहे तो बेहतर है!

अब आपके लिए डेली हिंदी मिलाप द्वारा हर दिन ताज़ा समाचार और सूचनाओं की जानकारी के लिए हमारे सोशल मीडिया हैंडल की सेवाएं प्रस्तुत हैं। हमें फॉलो करने के लिए लिए Facebook , Instagram और Twitter पर क्लिक करें।

Ad

Related Articles

प्रातिक्रिया दे

आपका ईमेल पता प्रकाशित नहीं किया जाएगा. आवश्यक फ़ील्ड चिह्नित हैं *

Back to top button