हैदराबाद, आहार का विवेक अवश्य रखना चाहिए। इससे शरीर और मन शुद्ध व पवित्र पावन रहता है। अधिक भोजन से मन भटकता रहता है। उक्त उद्गार सिकंदराबाद स्थित मारुति विधि जैन स्थानक में श्री वर्धमान स्थानकवासी जैन श्रावक संघ सिकंदराबाद द्वारा आयोजित चातुर्मासिक धर्मसभा को संबोधित करते हुए साध्वी डॉ. सुमंगलप्रभाजी म.सा. आदि ठाणा ने दिये। म.सा. ने कहा कि स्वाद के चक्कर में तेजस्वी सद्गुरु विराधक बन गये।
वे यक्ष योनि में आये, इसलिए जीने के लिए या संयम के लिए ही खाना चाहिए। जब भी आहार की अधिकता हो, उस समय शरीर में रक्त मांस चर्बी की वृद्धि हो जाए तो उसके लिए साधक को आहार का त्याग कर छोटे छोटे तप करना चाहिए। आहार त्याग के कई लाभ हैं। आहार त्याग करने से बिना दवा के रोगों की चिकित्सा हो जाती है। आहार जितना अधिक करेंगे, उतने ही प्रमादी बनेंगे। कभी भी ठूस ठूस कर भोजन नहीं करना चाहिए। पूरे विवेक के साथ भोजन ग्रहण करना चाहिए।
यह भी पढ़े: आत्मा के कल्याण के लिए विनय गुण आवश्यक : डॉ. सुमंगलप्रभाजी
सभा का संचालन करते हुए संघ के महामंत्री सुरेन्द्र कटारिया ने बताया कि 5 घंटे का नवकार महामंत्र का जाप कल पूर्ण होगा। अवसर पर कलश के लाभार्थी को कलश प्रदान किया जाएगा। अध्यक्ष गौतमचंद गुगलिया ने बताया कि रविवार 2 नवंबर को बधाई विदाई समारोह एवं वीर लोकाशाह जयंती का आयोजन होगा। गुरुवार 6 नवंबर को सुबह 7.01 बजे विहार करके श्रद्धेय गुरु भगवंत न्यू भोईगुड़ा पधारेंगे। आज डॉ. सुवृद्धिजी म.सा के सांसारिक मामा पारसमल अरविंद मेहता, अहमदाबाद निवासी की ओर से सामूहिक प्रभावना दी गई।
