प्रवचन: कहे नंद सचेत रहो

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कर्म का सिद्धांत एक नैतिक और आध्यात्मिक नियम है, जो हमें अपने कार्यों के प्रति जागरूक रहने और अच्छे कर्म करने के लिए प्रेरित करता है, ताकि हम अपने जीवन को बेहतर बना सकें और आध्यात्मिक विकास की ओर अग्रसर हो सकें। वेदों में कर्म सिद्धांत एक महत्वपूर्ण अवधारणा है, जो कर्मों के अनुसार फल मिलने के नियम को दर्शाती है। इसका अर्थ है कि मनुष्य जैसा कर्म करता है, उसे वैसा ही फल भोगना पड़ता है, चाहे वह इस जीवन में हो या अगले जीवन में। वेदों में निहित कर्म सिद्धांत को इस प्रकार समझा जा सकता है।

कर्म- मनुष्य के सभी कार्य, हाव-भाव, विचार और शब्द कर्म कहलाते हैं। कर्मफल- कर्मों के अनुसार मिलने वाले परिणाम को कर्मफल कहते हैं। शुभ व अशुभ कर्म- अच्छे कर्मों को शुभ और बुरे कर्मों अशुभ माना गया है।कर्म का फल- अच्छे कर्मों का फल सुख, समृद्धि, यश, शांति और मोक्ष के रूप में मिलता है, जबकि बुरे कर्मों का फल दुःख, पीड़ा, कष्ट, रोग, दरिद्रता और जीवन-मरण बंधन माने गये हैं। कर्म सिद्धांत का महत्व- कर्म सिद्धांत मनुष्य को जीवन का उद्देश्य समझाता है। यह मनुष्य को उसके कर्मों के प्रति जिम्मेदार बनाता है।

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शुभ व अशुभ कर्म और उनके फल का विवरण

यह सुख और दुःख के कारणों को स्पष्ट करता है और मोक्ष प्राप्त करने का मार्ग भी दर्शाता है। कर्म सिद्धांत को विभिन्न उपनिषदों और पुराणों में भी विस्तार से समझाया गया है। यह एक ऐसा सिद्धांत है, जो न केवल हिंदू धर्म में, बल्कि बौद्ध धर्म और जैन धर्म आदि में भी महत्वपूर्ण माना जाता है। इसलिए तो किसी ने क्या खूब कहा है-

नियम से कोई तरे न पत्थर, ज़ीना नीचे जाए। कुदरत के कानून में, राम न आड़े आए।तुम्हारे कर्म के अनुसार, तुम तैरोगे या डूबोगे। धरती को क्या बीज से नाता, जैसा बोया जाता, वही स्वभाव-गुण लेकर, कड़ुवा-मीठा फल बनता।कुदरत का कानून है धरती, कर्म तुम्हारे बीज, एक बीज के फल हज़ार है, हज़ारों फलों के लाखों बीज। कहे नंद नहीं कोई स्वर्ग को देने वाला, नरक-स्वर्ग हम स्वयं रचते।। पल-पल जैसा बीज बो डाला, वह आहार-व्यवहार विचार से। हर पल बीज जो बोये, पल-पल फल बनता जाए। अचानक कुछ न होय।।कहे नंद जागे रहो, सचेत रहो। श्रीकृष्ण ने गीता में कहा है- सरल व्यक्ति के साथ किया गया छल आपके विनाश के द्वार खोल सकता है। चाहे आप कितने ही बड़े शतरंज के खिलड़ी क्यो न हो!!

पवन गुरू

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