आध्यात्मिकता से बदलती है आंतरिक स्थिति : रमेशजी
हैदराबाद, सृष्टि में एकमात्र चेतना के दर्शन करने से मन के भेदभाव समाप्त हो जाते हैं और हम हर पल एकं सुखं के आनंद में रहते हैं।
उक्त उद्गार सद्गुरु रमेशजी ने आज क्वालिटी इन रेजीडेंसी में आयोजित सत्संग में व्यक्त किए। उन्होंने कहा कि ध्यान, ज्ञान, भक्ति, कर्म, सेवा से अधिक श्रेष्ठ है निदिध्यासन। इससे हम चौबीस घंटे ध्यान में रह सकते हैं। अपने बाहर-भीतर हर एक दृश्य, कार्य, व्यवहार जड़-चेतन में सदा चेतना की अनुभूति करना निदिध्यासन है। इसका अर्थ है आपके द्वारा और सभी के द्वारा जो कुछ भी हो रहा है, वह केवल ईश्वरीय शक्ति कर रही है।

बाहरी तौर पर दिखाई देने वाले व्यक्ति, वस्तु परिस्थिति केवल माध्यम हैं। निदिध्यासन के ज्ञान को अपनाने से आत्मा-परमात्मा का योग होता है, आनंद की अनुभूति होती है, ज्यादा विचारों से हम बच जाते हैं और भक्ति व प्रेम की पराकाष्ठा बहती है।
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चेतना के भाव में रहकर जीवन मुक्ति का संदेश
रमेशजी ने कहा कि आध्यात्मिकता में हमें गुरु, संत या साधु की संगत और शरणागति से शुद्ध ब्रह्म ज्ञान प्राप्त होता है। ज्ञान को जीवन में उतारने पर हमें सारी सृष्टि उस चेतना का ही परिवर्तित रूप महसूस होती है और हम जब उसी के अनुसार यानी चेतना ही चेतना से व्यवहार कर रही है इस भाव में स्थित रहकर जीवन जीते हैं, तो हम जीवित रहते ही मुक्त हो जाते हैं।
गुरु माँ ने कहा कि जैसे विदेशी लोगों के लिए ज्ञान को हम दूसरी भाषा में अनुवाद करते हैं, उसी प्रकार गुरु परमात्मा के भाव को ज्ञान, ध्यान, भक्ति भजन आदि के माध्यम से परिवर्तित कर अंतर्मन में स्थापित करते हैं। उन्होंने कथाओं और उद्धरणों के माध्यम से स्पष्ट किया कि जैसे हार, चूड़ी, कंगन, अंगूठी, झुमके गहनों के नाम और रूप में अलग होने पर भी सब का आधार स्वर्ण ही है, उसी तरह ब्रह्मांड में स्थित सृष्टि का आधार ब्रह्म ही है। संसार में कुछ भी हो, लेकिन भीतर से यदि हम ब्रह्म भाव में स्थित हैं, तो हमें संसार ब्रह्ममय नजर आता है।
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