उपवास में रखें सेहत का ख्याल


उपवास हिंदू धर्म का अभिन्न अंग है और हिंदू धर्म की पहचान भी। न जाने कितने ही दिन ऐसे आते हैं, जिस दिन हिंदू धर्मशास्त्रों में उपवास का विधान बताया गया है, जैसे प्रतिमास आने वाली एकादशी को एकादशी व्रत का उपवास, मंगलवार और शनिवार को हनुमान जी का उपवास, पावार को माता संतोषी व्रत का उपवास, विशेष मनौतियों को मनाने के लिए किया गया उपवास और नवरात्रि के उपवास।
इस तरह से यदि सभी देवी-देवताओं के दिन का ख्याल करें तो हफ्ते में चार दिन तो अनिवार्य रूप से आ ही जाते हैं। इसके बाद करवा चौथ, संतान सातें, भाई दूज, नवरात्र और भी न जाने कितने ही त्योहार आते हैं जिनमें उपवास किया जाता है। इन सब उपवासों का जिम्मा लेती हैं, घर की महिलाएं क्योंकि वे घर की मालकिन हैं।
उपवास ज़रूरी, लेकिन स्वास्थ्य के अनुसार ही हो समझदारी
घर के सभी सदस्यों का सुख व भला चाहती है जिसके लिए वे उपवास रखकर भगवान से प्रार्थना करती हैं, किंतु अधिक से अधिक उन्नति, अधिक से अधिक सुख और अधिक से अधिक पुण्य कमाने के लालच में जब वे अपने स्वास्थ्य की अवहेलना करते हुए उपवास पर उपवास करती जाती हैं तो किसका भला हो पाता है।
जरा कल्पना कीजिए, हफ्ते में चार-पांच दिन बिना खाना खाए, बिना पानी के रहना पड़े और साथ ही साथ घर का सारा काम भी देखना पड़े तो घर की मालकिन के स्वास्थ्य का क्या होगा? ऐसे में यह कतई नहीं कहा जा सकता कि गृहलक्ष्मी के द्वारा किया गया उपवास परिवार वालों के हित के लिए है।
जाहिर है इस तरह के लगातार के उपवासों से महिलाएं कुपोषण का शिकार भी होंगी जिससे शरीर कमजोर होगा और वे स्वयं दूसरों को सहारा देने के बजाय उन पर आश्रित होती जाएंगी जो निश्चित रूप से किसी भी परिवार के लिए फायदे की बात नहीं होगी, क्योंकि आमतौर पर यह कहा जाता है कि यदि घर की मालकिन चुस्त-दुरूस्त है तो पूरा परिवार चुस्त व दुरूस्त रहता है।
स्वस्थ उपवास के लिए लें पौष्टिक आहार और पूरी नींद
यह नहीं कह रहे हैं कि उपवास न करें, क्योंकि उपवास का धार्मिक महत्त्व के अलावा शारीरिक महत्त्व भी है। इससे चित्त शांत होता है और पेट की कई बीमारियां भी ठीक हो जाती हैं। इसके अलावा इससे आत्मा का शुद्धिकरण भी होता है और इस दौरान किए गए हवन-यज्ञ आदि से पूरा घर आनंदमय हो जाता है, इसलिए उपवास अवश्य करें किन्तु अपने सामर्थ्य एवं शारीरिक क्षमताओं को ध्यान में रखकर करें।
उपवास के दौरान अपने स्वास्थ्य का भी ख्याल करें, क्योंकि यदि आपका स्वास्थ्य सही-सलामत है तो आगे और भी कितने ही उपवास किये जा सकते हैं। इसलिए उपवास के दौरान अधिक से अधिक पोषक तत्वों से भरपूर विटामिन युक्त फलाहार को प्राथमिकता दें, जैसे- सेब, केला, पपीता, अनार इत्यादि।

मौसमी फलों का जूस लें, ताजगी आएगी व थकान दूर होगी। उपवास के दौरान आमतौर पर भूखे पेट रहने के कारण नींद नहीं आती है जो मानसिक तनाव का एक कारण बनता है, इसलिए उपवास के दौरान भरपूर नींद लेने की कोशिश करें। नवरात्रि में उपवास के लिए क्या तरीका अपनाया जाए, जो हमारे शरीर और मन के अनुकूल हो, इसके लिए प्रस्तुत है कुछ सुझाव –
नवरात्रि के नौ दिन उपवास की योजना प्रथम से तीसरे दिन
फल का आहार अपनाएँ। आप मीठे फल, जैसे कि सेब, केला, चीकू, पपीता, तरबूज और अंगूर इत्यादि खा सकते हैं। इसके अतिरिक्त आप आँवले का जूस, लौकी का जूस, और नारियल का पानी भी पी सकते हैं।

चौथे से छटे दिन
अगले तीन दिन आप दिन में एक बार नवरात्रि का परम्परागत आहार (नीचे दिए विवरण अनुसार) ले सकते हैं और बाकी समय में फलों का जूस, छाछ तथा दूध भी पी सकते हैं।

सातवें से नौवें दिन
अंतिम तीन दिन आप पारम्परिक नवरात्रि आहार ले सकते हैं। यदि आपको स्वास्थ्य संबंधी कोई समस्या है तो उपवास से पहले अपने डाक्टर से परामर्श अवश्य कर लें और उतना ही करें जितना आपके लिए सुविधाजनक हो।

पारंपरिक नवरात्रि आहार
नवरात्रि उपवास के लिए पारंपरिक आहार ऐसा होता है जो हमारी जठराग्नि को शांत करता है। यह निम्नलिखित सामग्रियों में से कोई मिश्रण हो सकता है:

- कुट्टू के आटे की रोटी, समक के चावल, उन से बना डोसा, साबूदाने से बने व्यंजन, सिंघाड़े का आटा, रामदाना (राजगीरा या चौलाई के बीज), रतालू (जिमीकंद), अरबी, उबली हुई शकरकंद, आदि।
- घी, दूध व छाछ। यह सब शरीर को ठंडक प्रदान करते हैं।
- लौकी और कद्दू के साथ दही।
- प्रचुर मात्रा में तरल पदार्थ, जैसे कि नारियल का पानी, फलों के जूस, सब्जियों के सूप आदि। यह शरीर को ऊर्जा प्रदान करने के अतिरिक्त शरीर में पानी की कमी से हमारा बचाव करते हैं तथा वत में निकलने वाले विषैले तत्वों को शरीर से बाहर निकालने में भी सहायता करते हैं।
–विश्वनाथ चौधरी
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