साहित्य प्रोत्साहन की अनोखी परंपरा
हिन्दी पत्रकारिता की जड़ों को मज़बूत करने में जिस तरह साहित्य का अमूल्य योगदान रहा है, उसी तरह साहित्य और साहित्यकारों को प्रोत्साहित करने, बल्कि साहित्यकारों को पैदा करने में पत्रकारिता की अद्वितीय भूमिका रही है।मिलाप अख़बार को इस संबंध में अनोखी परंपराओं के निर्माण और उन परंपराओं को सींचने-संवारने का श्रेय जाता है।
आज मिलाप देश और दुनिया का अकेला ऐसा समाचार पत्र है, जिसमें हर दिन साहित्यिक कहानी का प्रकाशन होता है। यह परंपरा युद्धवीरजी ने मिलाप के प्रारंभ से ही शुरू की थी।उर्दू मिलाप की दूर-दूर तक शोहरत इसके साप्ताहिक साहित्यिक अंक को लेकर फैली थी। जो लोग अख़बार नहीं खरीद पाते थे, वे पाठक भी होटलों और रेस्तराओं में घंटों बैठकर मिलाप पढ़ा करते।
पहले ईस्टमैन कलर और बाद में रंगीन तस्वीरों के साथ रचनाओं के प्रकाशन द्वारा मिलाप ने हज़ारों रचनाकारों का उत्साह बढ़ाया।उर्दू के प्रसिद्ध दैनिक ‘मुंसिफ़’ के संस्थापक संपादक महमूद अंसारी ने अपने जीवन की एक घटना का उल्लेख किया है कि मोज्जम जाही मार्केट स्थित स्टार कंपनी की पत्र-पत्रिकाओं की दुकान पर वे पत्रिकाएं खरीदने आया करते थे। तब उनकी उम्र केवल दस-ग्यारह वर्ष की थी।
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उनकी रुचि देखकर मिलाप ने उन्हें कहानियाँ लिखने के लिए प्रोत्साहित किया और देखते-देखते वह एक विद्यार्थी बाल-साहित्यकार बन गए।इस सिलसिले को आगे बढ़ाते हुए मिलाप ने बाद में साहित्यिक प्रतियोगिताओं का क्रम शुरू किया, जो दक्षिण में अपनी तरह की पहली परंपरा है। यह परंपरा अब साल में कई बार आयोजित की जा रही है।
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