फिल्म समीक्षा- इंटरनेट पर पायरेसी वाली हिन्दी फिल्में देखने वालों के लिए फिल्म `सीता रामम' ट्रोलिंग का एक नया बहाना हो सकती है। सीता और राम की आदर्श महागाथा के तार दक्षिण भारत के एक निर्माता और निर्देशक ने छेड़े हैं।
फिल्म की कहानी भारत-पाकिस्तान के बीच 1971 में हुए युद्ध के सात साल पहले की है। अपने सपनों की दुनिया बसाने को इकट्ठा की गई अपनी सारी बचत एक फौजी जब वेश्यालय में मिली अपनी मुंहबोली बहन और उसकी सभी संगिनियों को आज़ाद कराने में खर्च करता है तो समझ आता है कि धर्म का असली मतलब क्या है! फिल्म दो कालखंडों में एक साथ चलती है। 1964 में शुरु हुई कहानी एक प्रेम-कहानी है जिसमें रेडियो पर एक एकाकी लेफ्टिनेंट राम की वीरता के बारे में सुनकर देश भर के लोग उसे चिट्ठियां लिखने लगते हैं। इसी में एक चिट्ठी सीतालक्ष्मी की होती है, जो राम को अपना पति मानती है।
एक और कहानी 1984 में लंदन से शुरू होती है। अपने बाबा की विरासत हासिल करने से पहले लंदन में पढ़ी पाकिस्तानी युवती उनकी अंतिम इच्छा पूरी करने के लिए भारत आती है। उसके पास एक चिट्ठी है, जो उसे सीतालक्ष्मी को देनी है। सीतालक्ष्मी की असल पहचान का खुलासा होने के साथ ही फिल्म का पूरा ग्राफ बदल जाता है। कहानी समाज, दस्तूरों और परिवार की तंग गलियों से होकर गुजरती है। हर नुक्कड़ पर एक नया मोड़ है, एक नया किरदार है, एक नया एहसास है और है, एक नया सिनेमा।
निर्देशन
निर्देशक हनु राघवपुड़ी ने फिल्म को वैसे ही कैनवास पर बनाया है, जैसे कभी मणिरत्नम ने `रोजा' रची थी। इस फिल्म को हनु राघवपुडी ने कुनैन की गोली को रसगुल्ले में छिपाकर खिलाया है। खाने वाला भले उसे गुठली समझकर थूक दे, लेकिन सामाजिक सौहार्द्र की असल दवाई यही है। पी एस विनोद और श्रेयस की सिनेमैटोग्राफी देखने वाले को हौले-हौले सहलाती चलती है।
अभिनय
दुलकर और मृणाल को देखकर लगता है कि राम और सीता की इससे बेहतर अदाकारी भला और कौन कर सकता है? एक युवा फौजी की दृढ़ता, एक मासूम प्रेमी की निश्छलता और एक अनाथ की परिवार पाने की उत्कंठा, सबको दुलकर ने इस फिल्म में जिया है। अच्छा हुआ कि ये फिल्म हिन्दी में डब होकर रिलीज की गई। नहीं तो एक बढ़िया फिल्म देखने से हिन्दी सिनेमा के दर्शक जरूर चूक जाते। टीनू आनंद, सचिन खेडेकर, जीशु सेनगुप्ता, भूमिका चावला, प्रकाश राज सब छोटे, लेकिन ठोस किरदारों में नजर आए। फिल्म का संगीत तेलुगु में भले सुपरहिट रहा हो, लेकिन हिन्दी में कोई खास नहीं बन पाया है। सुस्त संपादन फिल्म की एक और कमजोरी है।