ओवैसी के गुजरात प्रवेश से असमंजस में मतदाता

 Voters confused by Owaisi's Gujarat entry
हैदराबाद, किसी ज़माने में केवल हैदराबाद के पुराने शहर तक सीमित मजलिस इत्तेहादुल मुस्लिमीन पार्टी अपने नाम के साथ जुड़े अखिल भारतीय स्वरूप को साकार करने के लिए हैदराबाद से निकलकर देश के विभिन्न राज्यों में दम खम आज़मा चुकी है और कुछ नये राज्यों में प्रवेश की ज़ोरों से तैयारियाँ चल रही हैं। पार्टी ने वर्षांत में होने वाले गुजरात विधानसभा चुनावों में जोर आजमाइश करने की घोषणा की है और पार्टी अध्यक्ष असदुद्दीन ओवैसी ने अहमदाबाद का दौरा भी किया। इस दौरे से भले ही मजलिस पार्टी में जोश है, लेकिन स्थानीय मुस्लिम असमंजस की स्थिति में हैं कि क्या करें। दबे शब्दों में चर्चा गर्म है कि ओवैसी बिहार और यूपी की तरह गुजरात में भी भाजपा को लाभ पहुँचाने का ही काम करेंगे।

मजलिस पार्टी गुजरात के विधानसभा चुनावों में किस्मत आजमाने की घोषणा पहले ही कर चुकी है। कहा जा रहा है कि अहमदाबाद के मुस्लिम बहुल इलाकों पर आधारित दरियापुर, दानिलिमदा, जमालपुर, बापूनगर और वेजलपुर से पार्टी अपने उम्मीदवार खड़े करेगी। वर्तमान में इनमें से सिर्फ वेजलपुर सीट भाजपा के पास है, जबकि अन्य चार सीटें कांग्रेस पार्टी के पास हैं। स्पष्ट है कि मजलिस के इन सीटों पर चुनाव लड़ने से कांग्रेस समर्थक मुस्लिम वोट कट सकता है। इस संवाददाता ने अहमदाबाद के दौरे के दौरान कुछ स्थानीय नेताओं और स्थानीय पत्रकारों से ओवैसी के गुजरात प्रवेश पर प्रतिक्रिया जानीं। अधिकतर लोगों का मानना यही है कि मजलिस पार्टी के उम्मीदवार जीत हासिल नहीं कर पाएंगे, लेकिन वे कांग्रेस को नुकसान पहुँचाकर भाजपा को लाभ पहुँचाएंगे।
 
राजनीतिक गतिविधियों में रुचि रखने वाले एक व्यापारी यूसुफ ने बताया कि हालाँकि गुजरात में लंबे अरसे से भाजपा की सरकार है, लेकिन मुस्लिम बहुल इलाकों में कांग्रेस ने अपना वोटबैंक बनाए रखा है। 2017 के चुनावों में भी अहमदाबाद में कांग्रेस ने अच्छा प्रदर्शन किया था, लेकिन इस बार राजनीतिक समीकरण कुछ अलग है। एक ओर ओवैसी ने चुनाव में अपने उम्मीदवार खड़े करने की घोषणा की है तो दूसरी ओर आम आदमी पार्टी भी सक्रिय हो गयी है। इन परिस्थितियों में मुस्लिम असमंजस में हैं कि उनका वोट किसे लाभ और किसे नुकसान पहुँचाएगा। हालाँकि अभी स्थिति स्पष्ट नहीं हो पायी है, लेकिन लोग इस मुद्दे पर भी चर्चा कर रहे हैं कि मजलिस के यूपी और बिहार में प्रवेश के परिणाम क्या रहे हैं।

एक पत्रकार इरफान का मानना है कि मजलिस का अहमदाबाद में प्रवेश अधिक प्रभावशाली नहीं रहेगा। जिन नेताओं को जल्दी जल्दी में पार्टी की जिम्मेदारी दी गयी है, उसे देखकर तो लगता है कि यह अहमदाबाद में मजलिस की इमरजेंसी लैंडिंग है। जो मुस्लिम नेता राजनीति में सक्रिय हैं, वे कांग्रेस के वफादार रहे हैं, इसलिए उनका पार्टी छोड़कर मजलिस की ओर जाना मुमकिन नहीं है। चूँकि मजलिस का रवैया पूरी तरह कांग्रेस विरोधी है, इसलिए कांग्रेस समर्थक मतदाताओं द्वारा मजलिस का समर्थन करने की संभावना कम है। जिस तरह मजलिस ने बिहार और यूपी में स्थानीय दलित पाार्टियों के साथ मंच बनाया था, गुजरात में ऐसी संभावनाएं भी कम हैं। इसके बावजूद मजलिस यदि अपना प्रचार अभियान आक्रामक रूप से करती है तो कांग्रेस का खेल तो बिगाड़ ही सकती है।

एक और सामाजिक कार्यकर्ता उस्मान भाई का मानना है कि गुजरात में ओवैसी ने चुनावी मैदान में प्रवेश की घोषणा तो की है, लेकिन अभी यह स्पष्ट नहीं हुआ है कि कौन से मुद्दे उसके पास हैं और किन मुद्दों पर वह भाजपा व कांग्रेस से समान रूप से मुकाबला करेगी। उन्होंने कहा कि चाहे मजलिस हैदराबाद में सफल रही हो, लेकिन बिहार में चुनावी जीत के बाद जो हार उसे मिली है, उससे पार्टी की छवि बुरी तरह प्रभावित हुई है। इन परिस्थितियों में मुसलमानों का समर्थन मजलिस को मिलेगा ही, यह कहा नहीं जा सकता।
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