आार्थिक अनुमान बनाम बेकाबू महँगाई

Economic Estimates Vs. Uncontrollable Inflation

अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष (आईएमएफ) ने भारत की आार्थिक वृद्धि दर के अनुमान में लगातार दूसरी बार कटौती की है। आईएमएफ ने वित्त वर्ष 2022-23 के लिए इसे जुलाई में 8.2 प्रतिशत से घटाकर 7.4 प्रतिशत कर दिया था और अब एक बार फिर इसमें कटौती की है। उसने वर्तमान हालात के मद्देनजर अपने पूर्वानुमान को संशोधित करते हुए इसे 6.8 प्रतिशत कर दिया है। भारत की वृद्धि दर के अनुमान में कटौती करने के साथ ही दुनिया में बढ़ते मंदी के खतरे को लेकर भी अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष ने आगाह किया है। रिपोर्ट में कहा गया है कि आार्थिक वृद्धि दर के अनुमान सबसे बड़ी अर्थव्यवस्थाओं में मंदी की ओर इशारा करते हैं। सबसे बुरा दौर अभी आना बाकी है और कई देशों के लिए 2023 मंदी की तरह महसूस होगा।

यह थोड़ा विचित्र लग सकता है कि ऐसे समय, जबकि दुनिया का मंदी की चपेट में आना लगभग तय दिखाई दे रहा है और भारत की आार्थिक वृद्धि दर भी घट रही है, अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष भारत  का स्तुति-गान कर रहा है! भारत खुश हो सकता है कि अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष के मुख्य अर्थशास्त्री पियरे ओलिवर गोरिंचेस कह रहे हैं कि भारत ऐसे वक़्त में एक चमकदार रोशनी की तरह उभरा है, जब दुनिया मंदी के आसन्न संकट का सामना कर रही है। इसका मतलब है कि भारत की वर्तमान आार्थिक नीतियाँ उनके हिसाब से सही दिशा में जा रही हैं। उन्हें लगता है कि भारत की अर्थव्यवस्था की सेहत अगर ठीक-ठाक है, तो इसका श्रेय डिजिटलीकरण को जाता है। उनका मानना है कि यह कदम बहुत बड़ा बदलाव लाने वाला रहा है, क्योंकि इससे भारत की सरकार के लिए ऐसे काम करना संभव हुआ है, जो अन्यथा बेहद कठिन होते। दरअसल, डिजिटलीकरण से वित्तीय समावेश में बड़ी मदद मिली है। भारत जैसे देशों में बड़ी संख्या में ऐसे लोग हैं, जो बैंकिंग प्रणाली से नहीं जुड़े हैं। अब डिजिटल वॉलेट तक पहुँच होने से वे लेन-देन में सक्षम हो पाए हैं। लोगों को अधिक आधुनिक अर्थव्यवस्था में लाने के लिहाज से भी यह बड़ा मददगार है। डिजिटल पहल से ही यह संभव हो सका कि सरकार वितरण प्रणाली को लोगों तक पहुँचा सकी, जो परंपरागत तरीकों से काफी मुश्किल होता।

पियरे ओलिवर गोरिंचेस की यह बात भी ध्यान देने योग्य है कि भारत जैसी अर्थव्यवस्था के लिए अपार संभावना है, लेकिन अपने लक्ष्य को पाने के लिए भारत को अनेक ढाँचागत सुधार करने होंगे। उन्होंने इसे बड़ी उपलब्धि माना है कि भारत की अर्थव्यवस्था 6.8 या 6.1 की ठोस दर के साथ बढ़ रही है, जबकि दुनिया की बाकी अर्थव्यवस्थाएँ, विकसित अर्थव्यवस्थाएँ, उस गति से नहीं बढ़ पा रही हैं।

कहना न होगा कि विकास दर के घटने के लिए रूस-यूक्रेन युद्ध, दुनिया भर के बिगड़ते आार्थिक हालात, पिछले एक दशक में महँगाई दर का सबसे अधिक होना और विश्वमारी कोरोना को ज़िम्मेदार ठहराया जा सकता है। लेकिन किसी भी स्थिति में इस सच से आँख नहीं चुराई जा सकती कि इस समय भारत में महँगाई बेकाबू हो चुकी है। इससे निबटने के लिए सयानों का यह सुझाव ध्यान देने लायक है कि भारत सरकार को एक्साइज़ डयूटी और वैट को कम करना चाहिए। साथ ही गाँवों में रोजगार योजनाओं को बेहतर बनाना होगा और शहरी क्षेत्रों में भी रोजगार की योजनाएँ लानी होंगी।

अंततः यह भी कि भारत के लिए यह काफी नहीं है कि यहाँ मंदी नहीं आएगी, बल्कि देखना यह होगा कि दुनिया में मंदी के दौर में भी भारत में विकास न रुके और अधिक से अधिक गरीबों को गरीबी रेखा से ऊपर लाया जा सके।   

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