पद पर काम को प्राथमिकता


हिन्दी मिलाप के संस्थापक एवं स्वतंत्रता सेनानी युद्धवीर जी मूल रूप से ऐसे पत्रकार थे, जिनके लिए देश और समाज सबसे पहले था। एक स्वतंत्रता सेनानी के रूप में जहाँ उन्होंने देश के लिए संघर्ष किया, वहीं आज़ादी के बाद पत्रकार के रूप में उसी तरह का जुझारूपन उनके व्यक्तित्व में रहा। काम उनके लिए महत्वपूर्ण था, पद को उन्होंने कभी प्राथमिकता नहीं दी, बल्कि अक्सर यह हुआ कि पूरा काम करने के बाद किसी दूसरे व्यक्ति का नाम पद के लिए आगे कर दिया।
चाहे वह बैसाखी मेला हो, शिक्षण संस्थाओं का गठन हो या फिर हिन्दी अकादमी या हिन्दी प्रचार सभा के काम हों, युद्ववीर जी न केवल खुद काम करते, बल्कि लोगों को इसके लिए प्रोत्साहित करते हुए पत्रकारिता धर्म निभाते। दक्षिण में हिन्दी के प्रसिद्ध प्रचारक वेमुरी आंजनेय शर्मा ने अपने संस्मरण में लिखा है कि जब हैदराबाद में दक्षिण भारत हिन्दी प्रचार सभा के उच्च शिक्षा एवं शोध संस्थान को नया आयाम देने की बात चली तो युद्धवीर जी और अन्य मित्रों ने हिन्दी प्रचार सम्मेलन बुलाने का निर्णय लिया।

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आंजनेय शर्मा ने सोचा कि इस सम्मेलन की स्वागत समिति के अध्यक्ष युद्धवीर जी होंगे, लेकिन युद्धवीर जी ने आंजनेय शर्मा का नाम ही स्वागत समिति के अध्यक्ष के रूप में प्रस्तावित किया। युद्धवीर जी का स्वभाव ही ऐसा था कि सब काम वे स्वयं करते थे और जहाँ पद आदि की बात आती, तो पीछे हट जाते थे। काम करने में सदा आगे रहते थे। वही सिद्धांत मिलाप अख़बार की बुनियादों में भी रच बस गया। आंदोलन चाहे भाषा का हो या लोकतांत्रिक संस्थाओं की रक्षा का, मिलाप इसके लिए सदा आगे रहा।
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