हैदराबाद हाउस से उठती कूटनीति की गूंज , पुतिन की भारत यात्रा – वैश्विक राजनीति को देगी नई दिशा
रूस के राष्ट्रपति पुतिन की इस यात्रा ने यह स्पष्ट कर दिया है कि भारत किसी का साइलेंट पार्टनर नहीं, बल्कि शांतिपक्ष का मुखर नेतृत्व कर रहा है। उसकी विदेश नीति न दबाव में झुकती है, न अवसरों में विचलित होती है। यही भारत की कूटनीतिक शक्ति है, यही उसकी विश्वसनीयता का आधार है और यही आने वाले वर्षों में वैश्विक राजनीति को दिशा देने वाला सिद्धांत भी होगा। यह यात्रा सिर्फ कूटनीति का अध्याय नहीं, बल्कि एक नया संकेत है। भारत अब वैश्विक संवाद का केंद्रीय स्तंभ बन चुका है।
हैदराबाद हाउस में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन की मुलाकात सिर्फ दो राष्ट्राधिकारियों का औपचारिक संवाद नहीं था, बल्कि एक ऐसे वक्त में हुई ऐतिहासिक बैठक थी जब वैश्विक राजनीति कई मोर्चों पर तीव्र परिवर्तन से गुजर रही है। विश्व व्यवस्था के बदलते समीकरण, यूक्रेन युद्ध की पृष्ठभूमि, अमेरिका और पश्चिमी शक्तियों का बढ़ता दबाव, एशिया की नई रणनीतिक प्राथमिकताएँ आदि। इन सबके बीच पुतिन का भारत आना और भारत द्वारा अपनी कूटनीतिक स्थिति स्पष्ट रूप से दुनिया के सामने रखना बेहद महत्वपूर्ण है।
इस उच्चस्तरीय मुलाकात में भारत ने यह दो टूक कहा कि वह न्यूट्रल नहीं है, बल्कि शांति के पक्ष में है। यह बयान अपने आपमें भारत की परिपक्व, आत्मविश्वासी और स्वतंत्र विदेश नीति का परिचायक है। भारत ने दुनिया को संकेत दिया कि वह किसी खेमे की राजनीति में नहीं बँधने वाला, बल्कि उसकी प्राथमिकता वैश्विक शांति, स्थिरता और संवाद है। यही भारतीय विदेश नीति की वह धारा है जिसने दशकों से भारत को वैश्विक मंच पर विश्वसनीय, संतुलित और दूरदर्शी राष्ट्र के रूप में स्थापित किया है।
यही कारण है कि पुतिन ने खुलकर कहा कि भारत खुशकिस्मत है कि उसके पास मोदी जैसे नेता हैं और उन्होंने यूक्रेन संकट में भारत की शांति कोशिशों की भी सराहना की। पुतिन का यह औपचारिक आभार न केवल हिंद-रूसी रिश्तों की मजबूती को दर्शाता है, बल्कि यह भी बताता है कि भारत आज उस स्थिति में है जहाँ विश्व की प्रमुख शक्तियाँ उसकी मध्यस्थता, उसके संवाद और उसके रुख को गंभीरता से सुनती हैं। भारत के राष्ट्रपति भवन में पुतिन को 21 तोपों की सलामी दी गई।
वैश्विक दबावों के बीच भारत ने दृढ़ और आत्मविश्वासी विदेश नीति दिखाई
यह सम्मान उस गहरे द्विपक्षीय भरोसे और परंपरा का प्रतीक है जिसने दोनों देशों को दशकों से जोड़ा हुआ है। पुतिन ने राजघाट जाकर महात्मा गांधी को श्रद्धांजलि भी अर्पित की। यह कदम न केवल भारत की महान सांस्कृतिक विरासत को सम्मान देता है, बल्कि यह संदेश भी देता है कि वैश्विक संघर्षों के बीच गांधी के सत्य और अहिंसा के सिद्धांत आज भी समाधान का मार्ग हो सकते हैं। प्रधानमंत्री मोदी ने पुतिन की इस यात्रा को ऐतिहासिक बताया।
यह शब्द केवल एक औपचारिकता नहीं, बल्कि एक कूटनीतिक संदेश है। ऐसे समय में जब पश्चिमी देशों में रूस के साथ संवाद सीमित हो गया है, भारत का यह रुख उसकी रणनीतिक स्वायत्तता का प्रमाण है। यह भारत की उस भूमिका को भी रेखांकित करता है जो वह वैश्विक शांति के लिए निभा सकता है। भारत न तो टकराव का पक्षधर है, न ही एकतरफा दबावों का, बल्कि भारत का लक्ष्य है संवाद, सहयोग और संतुलन की नीति।
पुतिन का यह दौरा अमेरिकी और पश्चिमी देशों के बढ़ते दबावों के बीच हुआ है। लेकिन भारत ने जिस सहजता, गरिमा और स्पष्टता के साथ अपनी स्थिति रखी, वह उसके आत्मविश्वास को दर्शाता है। भारत ने यह भी दिखाया कि वह किसी भी वैश्विक शक्ति के दबाव में अपनी राष्ट्रीय हितों और स्वतंत्र कूटनीति से समझौता नहीं करेगा। यही भारतीय डिप्लोमेसी की सबसे बड़ी मजबूती है। भारत के दबाव में भी दृढ़ता है और उसके संवाद में भी लचीलापन है।
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ऊर्जा, रक्षा और वैश्विक मुद्दों पर भारत-रूस की गहन रणनीतिक चर्चा
पुतिन की इस ऐतिहासिक यात्रा का एक अनोखा और सांस्कृतिक पहलू वह उपहार था जो प्रधानमंत्री मोदी ने पुतिन को दिया है। पीएम मोदी ने राष्ट्रपित पुतिन को रूसी भाषा में लिखी भगवद् गीता भेंट की है। यह सिर्फ एक पुस्तक नहीं, बल्कि भारतीय दर्शन, अध्यात्म और नेतृत्व मूल्यों का प्रतीक है। गीता जीवन के संघर्षों, कर्तव्य और नैतिकता की शिक्षा देती है। इसे रूसी भाषा में भेंट करना एक सशक्त संदेश था। भारत अपने मित्र देशों से केवल रणनीतिक संबंध नहीं रखता, बल्कि सांस्कृतिक और बौद्धिक आदान-प्रदान को भी उतना ही महत्व देता है।
हैदराबाद हाउस की इस बैठक में भारत और रूस के बीच ऊर्जा, रक्षा, व्यापार, प्रौद्योगिकी और वैश्विक मुद्दों पर गहन चर्चा हुई। भारत ने शांति स्थापना पर अपना दृढ़ रुख दोहराया और रूस ने भी भारत की मध्यस्थता और उसकी कोशिशों को असाधारण बताया। यह उस विश्वास की नींव है जिस पर भारत-रूस संबंध दशकों से खड़े हैं। चाहे वह शीतयुद्ध के दौर की वैश्विक राजनीति रही हो या वर्तमान बहुध्रुवीय विश्व।
भारत की यह नीति कि वह शांति के पक्ष में है – विश्व को एक नया संदेश देता है। यह संदेश बताता है कि भारत न तो किसी युद्ध का समर्थक है और न ही किसी एकतरफा कठोर निर्णय का। भारत की प्राथमिकता है कि दुनिया संवाद के रास्ते पर चले और समस्याओं का समाधान कूटनीति के माध्यम से खोजा जाए। यही भारत का वैश्विक दक्षिण के नेता के रूप में उभरता हुआ स्वरूप है, जहाँ वह विकासशील देशों की आवाज बनकर सामने आ रहा है। पुतिन की इस यात्रा ने एक और महत्वपूर्ण तथ्य उजागर किया।
पुतिन यात्रा ने भारत के स्वतंत्र विदेश नीति मॉडल की पुष्टि की
भारत की वैश्विक भूमिका अब केवल क्षेत्रीय शक्ति की नहीं है, बल्कि वह बड़े वैश्विक संकटों पर भी निर्णायक राय रखने वाला राष्ट्र बन चुका है। रूस जैसे बड़े राष्ट्र का भारत की शांति पहल पर विश्वास जताना इस बदलती वास्तविकता का ही प्रमाण है।
भारतीय कूटनीति आज एक नए मोड़ पर है जहाँ वह संतुलन रखते हुए भी निर्णायक भूमिका निभा रही है। जहाँ वह मित्रता निभाते हुए भी अपने राष्ट्रीय हित को सर्वोच्च रख रही है और जहाँ वह वैश्विक संघर्षों के बीच भी शांति का मार्ग दिखा रही है।
हैदराबाद हाउस में हुई यह मुलाकात इसलिए ऐतिहासिक है, क्योंकि इसने वैश्विक राजनीति को यह दिखाया कि भारत का उदय न केवल आर्थिक शक्ति के रूप में हुआ है, बल्कि एक विश्वासपात्र, स्थिर और शांति-समर्थक राष्ट्र के रूप में भी हो रहा है। पुतिन ने इसे स्वीकार किया, भारत ने इसे दोहराया और दुनिया ने इसे ध्यान से देखा।

रूस के राष्ट्रपति पुतिन की इस यात्रा ने यह स्पष्ट कर दिया है कि भारत किसी का साइलेंट पार्टनर नहीं, बल्कि शांतिपक्ष का मुखर नेतृत्व कर रहा है। उसकी विदेश नीति न दबाव में झुकती है, न अवसरों में विचलित होती है। यही भारत की कूटनीतिक शक्ति है, यही उसकी विश्वसनीयता का आधार है और यही आने वाले वर्षों में वैश्विक राजनीति को दिशा देने वाला सिद्धांत भी होगा। यह यात्रा सिर्फ कूटनीति का अध्याय नहीं, बल्कि एक नया संकेत है। भारत अब वैश्विक संवाद का केंद्रीय स्तंभ बन चुका है।
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