छांगुर बाबा उर्फ जमालुद्दीन का छल
उत्तर प्रदेश के बलरामपुर में छांगुर बाबा उर्फ जमालुद्दीन का प्रकरण सामाजिक एकता और राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए गंभीर चुनौती बनकर उभरा है। सांस्कृतिक और धार्मिक विविधता भारतीय समाज की ताकत रही है। संगठित धर्मांतरण के ऐसे षड्यंत्र उसके ताने-बाने को छिन्न-भिन्न कर सकते हैं। यह तो पता नहीं कि छली छांगुर के किसी हाथ में छह अंगुलियाँ हैं कि नहीं, लेकिन इस विचित्र उपनाम और साधारण पृष्ठभूमिवाले जीव ने कथित तौर पर एक संगठित धर्मांतरण नेटवर्क खड़ा कर रखा है।
उत्तर प्रदेश एटीएस की जाँच के अनुसार, इसका जाल उत्तर प्रदेश से लेकर महाराष्ट्र, कर्नाटक, बिहार और नेपाल तक फैला हुआ है। इसने आर्थिक रूप से कमजोर हिंदू परिवारों – खासकर युवतियों – को निशाना बनाया। प्रलोभन, दबाव और धोखाधड़ी के जरिए धर्मांतरण कराया। चौंकाने वाली बात यह कि इस रैकेट को विदेशी फंडिंग का समर्थन प्राप्त था। जाँच में सामने आया कि छांगुर के खातों में 100 से 500 करोड़ रुपये तक का लेन-देन हुआ। पाकिस्तान, सऊदी अरब, तुर्की और यूएई जैसे देशों से धनराशि आई। नेपाल के रास्ते हवाला के जरिए भी पैसा आया गया।
छांगुर का नेटवर्क: धर्मांतरण से स्लीपर सेल तक
कहना न होगा कि इस अकूत धन का उपयोग धर्मांतरण के साथ-साथ संपत्ति अर्जन और सामाजिक प्रभाव बढ़ाने में हुआ।सयाने बता रहे हैं कि इस साज़िश की पृष्ठभूमि गहरी और सुनियोजित है। छांगुर बाबा ने स्थानीय स्तर पर अपनी छवि एक प्रभावशाली व्यक्ति के रूप में बनाई। वह कभी ग्राम प्रधान था और प्रॉपर्टी डीलिंग जैसे कार्यों से जुड़ा था। उसने ट्रस्टों और फर्जी संस्थाओं के जरिए धन जमा किया और धार्मिक सभाओं का आयोजन कर हिंदू धर्म की आलोचना और इस्लाम का प्रचार किया।
मिट्टी पलटना (धर्मांतरण) और प्रोजेक्ट (लड़कियों को निशाना बनाना) जिस कोड-वर्डों के सहारे अपने नेटवर्क को गोपनीय रखा। यह न केवल धार्मिक, बल्कि सामाजिक और राजनीतिक प्रभाव स्थापित करने की रणनीति थी, जिसका एक प्रयोजन क्षेत्रीय आबादी के अनुपात को उलटना भी था। इस साज़िश के विदेशी संबंध और भी चिंताजनक हैं। अचरज नहीं कि छांगुर बाबा का संपर्क पाकिस्तान की खुफिया एजेंसी आईएसआई से था।
नेपाल के काठमांडू में पाकिस्तानी दूतावास के जरिए संपर्क स्थापित करने की कोशिशें हुईं। यह नेटवर्क केवल धर्मांतरण तक सीमित नहीं था, बल्कि इसमें जासूसी और स्लीपर सेल तैयार करने जैसे राष्ट्रविरोधी तत्व भी शामिल थे। ऐसी गतिविधियाँ भारत की आंतरिक सुरक्षा के लिए खतरा हैं। साफ है कि इनका मकसद भारत के सामाजिक ताने-बाने को कमजोर करना और सांप्रदायिक तनाव को बढ़ावा देना है।
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धर्मांतरण षड्यंत्र: सामाजिक एकता पर खतरा
यह और भी चिंताजनक है कि ऐसी और भी साज़िशें सामने आती दिख रही हैं। इनके प्रभाव और खतरे बहुआयामी हैं। इनका पहला शिकार है सामाजिक एकता। धर्मांतरण के लिए हिंदू धर्म की आलोचना (निंदा) और अन्य धर्मों की प्रशंसा से समुदायों के बीच अविश्वास बढ़ता है। इसके अलावा, आर्थिक प्रलोभन और जबरदस्ती से कमजोर वर्गों का शोषण होता है, तो विदेशी फंडिंग और आईएसआई जैसे तत्वों का शामिल होना राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए खतरा है।
यह नेटवर्क न केवल धार्मिक, बल्कि सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक स्थिरता को नुकसान पहुँचा सकता है। ऐसे में, छांगुर बाबा और उसके सहयोगियों की गिरफ्तारी, उसकी अवैध कोठी पर बुलडोजर कार्रवाई और ईडी द्वारा मनी लॉन्ड्रिंग की जाँच जैसी कठोर कार्रवाइयाँ ज़रूरी तो हैं, पर काफी नहीं हैं। हमें समाज को भी जागरूक करना होगा। धार्मिक नेताओं और सामाजिक संगठनों को सक्रिय करना होगा।
साथ ही, ऐसी अवांछनीय गतिविधियों पर नज़र रखने के लिए प्रभावी कानूनी ढाँचे की भी ज़रूरत है। क्योंकि किसी को भी देश के सामाजिक-धार्मिक सद्भाव और संतुलन को तोड़ने की इजाज़त नहीं दी जा सकती। अंतत, छांगुर बाबा जैसे लोगों को बेऩकाब करने के लिए हर ज़िम्मेदार नागरिक को सतर्क रहना होगा। ब़कौल निदा फ़ाज़ली-
हर आदमी में होते हैं दस बीस आदमी;
जिस को भी देखना हो कई बार देखना!
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