अब आई हूं इस देश का भविष्य बनकर
मैं आई थी जन्म लेकर इस धरती पर,
मैंने लिए कई रूप इस धरती पर
फिर क्यों मैं जिऊँ हर रूप में घुट-घुट कर?
मत दो मुझे इज्जत माता या देवी समझकर,
पर यूँ मत मारो मुझे बोझ समझकर
लिया मैंने तुमसे रक्षा का वादा,
लेकिन क्या ज़मीन-जायदाद ही तुम्हारा इरादा?
बहन-भाई का रिश्ता है बहुत अनमोल
फिर क्यों हो गया भैया यह झोल?
फिर आई मेरे सात वचन निभाने की बारी
जिस अग्नि के सामने तुमने मुझे वचन दिया
उसी में तुमने मुझे फेंक दिया?
फिर लिया मैंने रूप एक माँ का
सबसे प्यारा सबसे न्यारा
करती थी तुम्हारी कामयाबी का इंतजार
फिर पल भर में ही क्यों कर दिया पराया?
अब बस वक्त आ गया
जहां मैंने अपना अहम अपनी इज्जत
अपना रुतबा दाँव पर लगा दिया।
अब आई हूं इस देश का भविष्य बनकर
सब मंज़िलें छू लूंगी मेहनत करके
मैंने तो अब आसमान छू लिया
इस दौड़ में सबको पीछे छोड़ दिया
मैं…मैं…हूँ एक औरत…हाँ, एक औरत!
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-भलगट लता जैन
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