कलयुग

कर्म किए जाएँ, चिंता न करें
बचपन से सीख यही सुनाई है,
पर बिना फल की इच्छा के,
कर्म की लौ भी बुझ जाती है।

युग ऐसा आया है अब तो,
जहाँ हर कर्म में छुपा है सौदा,
ना हो लाभ, ना मिले परिणाम,
तो समर्पण भी झूठा दिखता है।

रिश्तों में भी अब है सौदेबाजी,
कितना दिया, कितना पाया,
दिल भी लगा हिसाब लगाने में,
स्वार्थ का धागा प्रेम पर है छाया।

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कर्म करने पर फल की रहती आस,
हर सौदे में लाभ की बात खास।
व्यापार में भी ताले लग जाते हैं,
हानि हो तो कोई ना बढ़ाता हाथ।

-मुनीष भाटिया

शायद जीवन की सीख यही है,
कर्म पवित्र कहलाता तब तक,
जब फल की चाह न होकर भी,
मन में सच्चा भाव रहता जगमग।

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