गजब के हैं हमारे पौराणिक शिव

वैदिक ग्रंथों में सर्वत्र एकेश्वरवाद का समर्थन करते हुए, ईश्वर के अनगिनत गुण होने के कारण, असंख्य नामों में से एक नाम शिव भी बताया गया है। वेद में रूद्र, जो कालांतर में शिव के रूप में प्रसिद्ध हुए, का निराकार रूप में वर्णन करते हुए, इस निराकार शिव की स्तुति, प्रार्थना एवं उपासना करना श्रेयस्कर बताया गया है। पौराणिक ग्रंथों में शिव को परम योगी और परम ईश्वर भक्त बताया गया है।

वे एक निराकार ईश्वर ॐ की उपासना करते थे। कैलाशपति शिव वीतरागी महान राजा थे। उनकी राजधानी कैलाश थी। वे हिमालय के शासक थे। हरिद्वार से उनकी सीमा आरंभ होती थी। वे राजा होकर भी वैरागी थे। उनकी पत्नी का नाम पार्वती था, जो राजा दक्ष की कन्या थी। उनकी पत्नी ने गौरीकुंड (उत्तराखंड) में तपस्या की थी। उनके पुत्र गणपति और कार्तिकेय थे। उनके राज्य में सब सुखी थे।

पौराणिक ग्रंथों में शिव को त्रिदेवों में से एक माना गया। इनके नाम अनेक हैं, जैसे- भोलेनाथ, शंकर, महेश, रुद्र, पशुपतिनाथ, गंगाधर, नटराज, त्रिनेत्र, रुद्रशिव, कैलाशी, गंगाधार आदि। शिव महापुराण में देवों के देव महादेव का विस्तृत वर्णन अंकित है। शिव पुराण में शिव लीलाओं और उनके जीवन की घटनाओं का विस्तार है। शिव पुराण में प्रमुख रूप से बारह संहिताएं हैं।

एकत्व के प्रतीक शिव : विरोधाभासों में भी संतुलन

शिव पुराण के अनुसार समुद्र-मंथन के समय विष को धारण करने के बाद से इन्हें नीलकंठ और देवों के देव महादेव भी कहा जाता है। तंत्र साधना में इन्हें भैरव के नाम से भी जाना जाता है। वेद में इनका नाम रुद्र है। यह व्यक्ति की चेतना के अन्तर्यामी हैं। इनकी अर्धांगिनी का नाम पार्वती है। इनके पुत्र कार्तिकेय और गणेश तथा पुत्री अशोक सुंदरी हैं। शिव को अधिकांश चित्रों में योगी के रूप में प्रदर्शित किया जाता है।

उनकी पूजा शिव लिंग तथा मूर्ति रूपों में की जाती है। शिव के गले में नाग देवता, हाथों में डमरू तथा त्रिशूल है। कैलाश में इनका वास है। कुछ कथाओं में कैलाश सरोवर को शिव का निवास स्थान माना जाता है। सृष्टि की उत्पत्ति, स्थिति एवं संहार के अधिपति शिव हैं। कश्यप ऋषि, लंकेश रावण, सूर्य पुत्र शनि आदि इनके भक्त हुए हैं। गजब के हैं हमारे पौराणिक शिव, उनमें परस्पर विरोधी भावों का सामंजस्य देखने को मिलता है।

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उनके मस्तक पर चंद्र, गले में महाविषधर सर्प है। वे अर्द्धनारीश्वर होते हुए भी कामजित हैं। गृहस्थ होते हुए भी श्मशानवासी, वीतरागी हैं। सौम्य, आशुतोष होते हुए भी भयंकर रुद्र हैं। उनके परिवार में भूत-प्रेत, नंदी, सिंह, सर्प, मयूर व मूषक सभी समभाव देखने को मिलता है। भगवान शिव को अनेक नामों से सम्बोधित किये जाने के भी अपने विशिष्ट कारण हैं।

दुष्टों को दंड देने वाले, दुःखों का नाश करने के कारण रूद्र हैं, तो पशु -पक्षियों व जीव आत्माओं के स्वामी होने के कारन पशुपतिनाथ हैं। शिव और शक्ति के मिलन से अर्द्धनारीश्वर तो महान ईश्वरीय शक्ति होने से महादेव हैं। कोमल हृदय, दयालु व आसानी से क्षमा करने वाले भोलेनाथ हैं। लिंगम रूप में ब्रह्मांड का प्रतीक हैं। तांडव नृत्य के देवता नटराज भी हैं। समय के देवता महाकाल हैं।

अशोक प्रवृद्ध

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