शिव ही भक्ति है और शिव ही मुक्ति
सत्य, धर्म, निष्ठा और सहिष्णुता के मार्ग पर चलने के लिए जीवन में शिव नियम और संयम का पालन नितांत आवश्यक है। शिव जहाँ-जहाँ हैं, वहाँ सुमति है, सद्गति है, सन्मति है और जीवन में गति है। शिव ही सृष्टि, शिव ही दृष्टि और शिव ही अमृत वृष्टि हैं। शिव कर्ता, शिव विघ्नहर्ता हैं।
शिव का धैर्य और संयम अद्वितीय है। सत्य ही शिव है और शिव ही सुंदर है। परमपिता का साक्षात स्वरूप है शिव। बुराइयों से मुक्ति का मार्ग है शिव और पाप विनाशक है शिव। शिव ही शक्ति है, शिव ही भक्ति है और शिव ही मुक्ति है। शिव ही वेद है, शिव ही पुराण है और धर्मग्रंथों का सार भी शिव है।
शिव को जानने के लिए अंतर्मन के तमस को दूर करना होगा। मन को पवित्र और शुद्ध करना शिवत्व है। शिव के तीनों नेत्र अलग-अलग गुणों के प्रतीक हैं। महादेव के दायें नेत्र को सत्व, बायें नेत्र को रज और तीसरे नेत्र को तमो गुण से युक्त बताया जाता है। भगवान शिव की दो आंखें भौतिक जगत की सक्रियता पर नजर रखती हैं और तीसरी आंख पापियों पर रहती है।
शिव तांडव: नटराज रूप और प्रतीकों का अर्थ
कहते हैं कि भगवान शिव दो स्थिति में तांडव नृत्य करते हैं- क्रोधित होते हैं ते बिना डमरू के तांडव नृत्य करते हैं और आनंदित होते हैं तो डमरू बजाते हुए तांडव करते हैं। इसका अर्थ है कि प्रकृति में आनंद की बारिश हो रही है। नटराज, भगवान शिव का ही रूप है। शिव तांडव करते हैं तो नटराज कहलाते हैं।
शिव ने जगत के कल्याण के लिए विष ग्रहण किया और नीलकंठ कहलाए। शिव के शीश पर चंद्र विराजते हैं, जो शीतलता, धैर्य और समरसता का प्रतीक है। सिर पर विराजी गंगा नियम और संयम की सूचक है और दर्शाती है कि शिव हर अभिमान से परे हैं। त्रिशूल तम, अरज और असर का प्रतीक है और असुरों-पापियों का विनाशक भी है।
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सृष्टि के संतुलन के लिए शिव ने अपने हाथ में डमरू धारण किया है, जो नीरस जीवन को संगीत के सप्तक सुरों से सुसज्जित करता है। गले में लिपटे सर्प प्रेम और भक्ति का पर्याय है। शिवजी तन पर भस्म लगाकर संसार को यह संदेश देते हैं कि हमारा शरीर नश्वर है।
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