शुभांशु शुक्ला के प्रयोगों से अब स्पेस मिशनों को मिलेगी नई रफ्तार
वैश्विक अंतरिक्ष विज्ञान में देश को एक नई पहचान देने वाला यह ऐतिहासिक मिशन एक साथ कई उद्देश्यों की पूर्ति करता है। यह मिशन गगनयान अभियान के लिये मददगार होने के अलावा भारतीय अंतरिक्ष क्षेत्र के लिये तमाम तरह से लाभप्रद एवं आने वाली पीढ़ियों के लिए प्रेरणा का स्रोत रहेगा।
अंतरराष्ट्रीय अंतरिक्ष स्टेशन पर विभिन्न प्रयोग करने वाले पहले भारतीय शुभांशु शुक्ला का धरती पर स्वागत है। अब ज़रूरत इस बात की है कि हम इस यात्रा और उसके दौरान अंतरराष्ट्रीय अंतरिक्ष स्टेशन पर किए गये वैज्ञानिक प्रयोगों के हासिल पर बात करें और विज्ञान तथा तकनीक के क्षेत्र विशेष में इन प्रयोगों के महत्वपूर्ण और विस्तृत प्रतिफलनों, उन प्रेक्षणों, परिणामों का विश्लेषण करके यह जानें कि अंतरिक्ष क्षेत्र के क्रिया-कलापों, उसके वैश्विक बाज़ार और इस मामले में इसरो तथा देश की साख पर उनका कितना सकारात्मक प्रभाव पड़ेगा?
इसके साथ ही इस यात्रा से मिलने वाली व्यावहारिक और व्यक्तिगत सीख तथा अनुभव इत्यादि की चर्चा एवं संभावित उपलब्धि का आंकलन भी अत्यावश्यक है। भारत ने इस चौथे एक्सिओम स्पेस मिशन का हिस्सा बनने और ड्रैगन ाढ में शुभांशु शुक्ला को अंतरिक्ष में भेजने के लिए तकरीबन सात करोड़ में एक सीट खरीदने के साथ कुल 550 करोड़ रुपये खर्चे, इसी सात करोड़ी सीट पर लगभग 85,33,82,00,000 रुपये का स्पेस सूट पहनकर शुभांशु शुक्ला बतौर पायलट स्पेस में अंतरराष्ट्रीय अंतरिक्ष स्टेशन पहुंचे।
शुभांशु की अंतरिक्ष यात्रा: परिणामों की प्रतीक्षा
गगनयान के लिए चुने व्योमनॉट्स में से एक पर इतना खर्च तो वाजिब है; लेकिन मिशन के पूरे होने के बाद इस सवाल के बेहतर जवाब मिल सकेंगे कि इतने खर्चीले अभियान से क्या मिला? शुभांशु को इस चौथे एक्सिओम स्पेस मिशन अभियान में भेजने के पीछे इसरो तथा भारत सरकार का जो मूल उद्देश्य था, उसमें वह किस हद तक कामयाब रहा? पोलैंड और हंगरी ने अपने जिन वैज्ञानिकों को इस मिशन में भेजा उनकी सरकारों के सामने इस प्रकार की अपेक्षाओं की पूर्ति का प्रश्न शायद न हों, क्योंकि वहां इसरो जैसी गगनयान का कोई महत्वाकांक्षी अभियान जारी नहीं है, पर भारतीय आमजन में यह प्रश्न अवश्य होगा कि आगामी गगनयान अभियान के लिए यात्रा किन स्तरों पर, किस प्रकार, कितनी सहायक होगी?
अंतरिक्ष यात्रियों के साथ करीब पौने तीन सौ किलो सामान आया है, जिसमें सबसे महत्वपूर्ण अंतरराष्ट्रीय अंतरिक्ष स्टेशन पर किए गये प्रयोगों के आंकड़े हैं। अंतरिक्ष से आये प्रयोगों के प्रेक्षण और आंकड़े यह कहने का संभवत बहुत मजबूत आधार बनेंगे कि शुभांशु की यात्रा भारत के अंतरिक्ष कार्यक्रम को नई ऊंचाइयों तक ले जाएगी और वैश्विक मंच पर देश की वैज्ञानिक क्षमता को मजबूती देगी।
परंतु इससे पहले उनके प्रयोगों के प्रेक्षणों, परिणामों पर राष्ट्रीय, अंतरराष्ट्रीय वैज्ञानिक जगत की सम्मति, सहमति मिलनी होगी। शुभांशु शुक्ला को अभी चिकित्सकीय जांच और पुनर्वास प्रक्रिया से गुजरने में महीनाभर लगेगा लेकिन उन्होंने वहां जो 60 से अधिक वैज्ञानिक प्रयोग किए हैं, जिनमें 7 भारतीय और 5 नासा के एक्सपेरिमेंट भी शामिल हैं, धरती पर आये उनके आंकड़ों का विश्लेषण जारी रहेगा। महीनेभर बाद शुभांशु शुक्ला प्रयोगों के दौरान हुए अपने अनुभव साझा करेंगे।
माइक्रोग्रैविटी में जैविक प्रयोगों की दिशा में प्रगति
यह भी कम रोचक और प्रेरक नहीं होगा। पर संभव है कि इससे पहले इसरो इस बात की आधिकारिक घोषणा करे कि शुभांशु की अंतरिक्ष यात्रा को लेकर उसने जो दूरंदेशी उद्देश्य तय किए थे, उनकी पूर्ति के बारे में उसका क्या आंकलन है। यह भी कि उनकी कारगुजारियों से भारत बाकी दुनिया, अंतरिक्ष विज्ञान, आम जीवन तथा इसरो को क्या खास मिला? 2030 तक वर्तमान अंतरराष्ट्रीय स्टेशन के ध्वस्त होने और अपना अंतरिक्ष स्टेशन बन जाने से पहले, अपने अंतरिक्ष विज्ञानियों, पायलटों को वहां का अनुभव देने में कितनी कामयाबी मिली, ताकि जब 2035 तक भारतीय अंतरिक्ष स्टेशन आरंभ हो तो व्यावहारिक अनुभव वाले कुछ ाढ सदस्य उसके पास मौजूद हों।
निस्संदेह यह यात्रा इस दूरगामी सोच को भी दर्शाती है। माइक्रोग्रैविटी में जैविक प्रक्रियाओं को समझने के लिए इसरो ने इस बार अत्यल्प गुरुत्वाकर्षण में कई जैविक प्रयोगों में हिस्सा लिया। इसरो, नासा और रेडवायर के सहयोग से स्पेस माइाढा एल्गी प्रोजेक्ट पर यहां किया काम कैसा रहा पता चलेगा। ये शैवाल अपनी प्रोटीन प्रचुरता, लिपिड और बायोएक्टिव घटकों के चलते लंबे स्पेस मिशनों के लिए स्थायी भोजन बनेंगे।
यह एक्स्पेरिमेंट शैवालों के विकास, मेटाबॉलिज्म और आनुवांशिक हरकतों पर माइक्रोग्रैविटी के असर को बताएगा। इसके अलावा यूरोपीय अंतरिक्ष संगठन और इसरो ने मिलकर दो तरह के जलीय बैक्टीरिया में वृद्धि दर, कोशकीय प्रतिक्रिया तथा जैव रासायनिक गतिविधि को समझने की जो कोशिश की है, उसके नतीजे भी मिलेंगे। देखना होगा कि इसरो, नासा और बायोसर्व स्पेस टेक्नोलॉजीज ने मिलकर अंतरिक्ष में सलाद बीज अंकुरण की जो कोशिश की वह कितना सफल हुआ।
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अंतरिक्ष प्रयोगों से भविष्य की खेती और चिकित्सा में मदद
शुभांशु ने अंतरिक्ष में मूंग और मेथी के जो बीज उगाए उनका अध्ययन पृथ्वी पर होगा। प्रयोग सफल हुआ तो भविष्य में चंद्रमा या मंगल पर खेती और अंतरिक्ष यात्रियों के लिए विश्वसनीय खाद्य स्रोत सुनिश्चित होंगे। इस बार मिले आंकड़े यह भी बताएंगे कि अंतरिक्ष यात्रियों की मांसपेशियों में आने वाली शिथिलता, लंबे अभियानों के दौरान अंतरिक्ष यात्रियों के मांसपेशी क्षय की वजह क्या है? पता लगा तो धरती पर ऐसे लक्षणों वाली बीमारी के इलाज में यह तजुर्बा मददगार होगा।
इसरो के अलावा नासा और वायजर ने खौलते पानी से लेकर बर्फ तक की चरम स्थितियों में जिंदा रहने की क्षमता वाले टार्डिग्रेड्स नामक छोटे जीव पर जो प्रयोग किए हैं, वह अंतरिक्षीय और धरती पर कठिन परिस्थितियों में जीवन कैसे बचे, इसके लिए जैव प्रौद्योगिकी अनुप्रयोगों को बढ़ावा देगा। एक प्रयोग का परिणाम बताएगा कि भविष्य के अंतरिक्षयानों के लिए अत्यधिक यूजर फ्रेंडली कंप्यूटरों तथा डिस्प्ले के डिजाइन कैसे बनाएं?
अंतरिक्ष में किए गए ये सभी प्रयोग निश्चित तौर पर आने वाले समय में अंतरिक्ष विज्ञान की दुनिया में काफी लाभकारी होंगे। ये प्रयोग परिणाम सभी अंतरिक्ष वैज्ञानिकों और स्पेस इंजीनियरों की अगली पीढ़ी को प्रेरित करने के साथ आगामी अभियानों के लिए संदर्भ सामग्री बनेंगे। प्रयोगों से प्राप्त ज्ञान पृथ्वी पर स्वास्थ्य, औषधि, जैव प्रौद्योगिकी और नई सामग्री के विकास में सहायक बनेगा।
जहां तक भारत की बात है, इससे भारतीय अंतरिक्ष यात्रियों के प्रशिक्षण, मिशन डिजाइन और संचालन में व्यावहारिक सुधार को दिशा मिलेगी। मिशन ने भारत के वैज्ञानिकों और तकनीशियनों को अंतरराष्ट्रीय स्तर की प्रयोगशाला में काम करने और अत्याधुनिक अंतरिक्ष तकनीक से रूबरू होने का बहुत बढ़िया अवसर दिया। इससे मिली सीख स्वदेशी अंतरिक्ष कार्यक्रमों की गुणवत्ता और फलस्वरूप आत्मनिर्भरता बढ़ायेगी।
मानव अंतरिक्ष मिशन में निवेश का राष्ट्रीय महत्व
भले मिशन दूसरों का था पर इस बहाने हमें मानव सहित अंतरिक्ष उड़ान के लिए आवश्यक प्रशिक्षण, सुरक्षा प्रोटोकॉल, अभियान योजना जैसी आवश्यक प्रक्रियाओं का प्रत्यक्ष अनुभव मिला। इस मिशन में हिस्सा लेने के चलते अंतरिक्ष क्षेत्र में अंतरराष्ट्रीय साझेदारियां और मजबूत हुईं, भविष्य में संयुक्त अनुसंधान, तकनीकी आदान-प्रदान और सहयोग के कई नए रास्ते खुलेंगे। भविष्य में अंतरिक्ष आधारित तकनीक, चिकित्सा, कृषि, दूरसंचार और रक्षा क्षेत्रों में भी इसका अप्रत्यक्ष लाभ होगा।
अंतरिक्ष में मानव भेजने से जुड़े जोखिमों, आपातकालीन प्रक्रियाओं और स्वास्थ्य संबंधी चुनौतियों को समझने का व्यावहारिक अनुभव ऐसे मिशनों से ही मिलेगा। इस मद में 550 करोड़ रुपये का निवेश भारत के लिए दीर्घकालिक दृष्टि से तर्कसंगत है, इससे गगनयान जैसे स्वदेशी मानव अंतरिक्ष मिशनों की सफलता की नींव मजबूत हुई है। वैश्विक वैज्ञानिक प्रगति के लिए भारत की प्रतिबद्धता को पहचान और पुख्ता हुई।

इससे अंतरिक्ष अनुसंधान की क्षमता में वृद्धि होगी, तो देश अत्याधुनिक स्पेस टेक्नोलॉजी में और आगे जायेगा। अब अंतरराष्ट्रीय अंतरिक्ष समुदाय में भारत की उपस्थिति ज्यादा प्रभावशाली होगी। यह मिशन भारत को वैश्विक अंतरिक्ष विज्ञान समुदाय में अग्रणी स्थान दिलाने और भविष्य की पीढ़ियों के लिए प्रेरणा स्रोत बनने में सहायक बनेगा ऐसा तय है। मानव अंतरिक्ष उड़ान कार्यक्रमों में निवेश करना केवल वैज्ञानिक उपलब्धि नहीं बल्कि तकनीकी, औद्योगिक और राष्ट्रीय प्रतिष्ठा के लिए भी आवश्यक होता है।
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