पितृदोष से मुक्ति के सरल उपाय
विक्रम पंचांग के अनुसार, पितृपक्ष भाद्रपद माह की पूर्णिमा से प्रारंभ होकर आश्विन मास की अमावस्या तिथि पर खत्म होता है। पितृपक्ष में पितरों को याद करके सम्मान प्रदान किया जाता है। पितृपक्ष में लोग पितरों की आत्मा की शांति के लिए तर्पण, पिंडदान और अन्य धार्मिक अनुष्ठान करते हैं। अधिकतर लोगों के मन में ख्याल आता है कि पितर दोष हमें कैसे लगा और इसके समाधान के लिए क्या उपाय करें।
हिन्दू धर्म में ज्योतिष शास्त्र को बहुत महत्वपूर्ण माना गया है। शास्त्रां के अनुसार, जब किसी व्यक्ति की कुंडली के लग्न भाव और पांचवें भाव में सूर्य, मंगल और शनि विराजमान होते हैं तो पितफदोष बनाका है। इसके अलावा कुंडली के अष्टम भाव में गुरु और राहु एक साथ आकर बैठते हैं तो भी पितृदोष का निर्माण होता है। जब कुंडली में राहु पेंद्र या त्रिकोण में मौजूद होता है तो पितृदोष बनता है। जब कोई व्यक्ति अपने से बड़ों का अनादर करता है या उसकी हत्या करता है, तो ऐसे व्यक्ति को भी पितृदोष लगता है।
क्या है पितृदोष
ज्योतिष शास्त्र के अनुसार, जब हमारे पूर्वजों की आत्माएं तृप्त नहीं होतीं है, तो ये पृथ्वी लोक पर रहने वाले अपने वंश के लोगों को कष्ट देती हैं। इसी को ज्योतिष शास्त्र में पितृदोष कहा गया है। हिंदू धर्म की मान्यताओं के अनुसार, हमारे पूर्वजों की आत्माएं मृत्यु लोक में अपने परिवार के सदस्यों को देखती रहती हैं, जो लोग अपने पूर्वजों का अनादर करते हैं या उन्हें कष्ट देते हैं तो इससे दुःखी दिवंगत आत्माएं उन्हें श्राप भी देती हैं। इसी श्राप को पितृदोष माना जाता है।
पितृदोष के संकेत
यदि किसी जातक की कुंडली में पितृदोष हो तो उसे अपने जीवन में कई कष्ट झेलने पड़ते हैं। पितृदोष के कारण शादी में भी बाधा आती है। ऐसे में विवाह में देरी होती है। पितृदोष के कारण वंश वृद्धि रुक जाती है। ऐसे में संतान प्राप्ति में बाधा आती है। इसके साथ ही संतान राह से भटक भी जाती है।
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पितृदोष मुक्ति उपाय
-पितरों को प्रसन्न करने के लिए पितृपक्ष में पीपल के पेड़ में काला तिल मिला दूध चढ़ाएं। अक्षत और फूल अर्पित करके पितरों की आत्मा की शांति के लिए प्रार्थना करें।
-पितृपक्ष में रोजाना शाम के समय घर की दक्षिण दिशा में सरसों के तेल का दीपक जलाएँ। इससे भी पितृदोष दूर होता है और जीवन की सभी बाधाएं दूर होने लग जाती हैं।
-आचार्य आनंद भारद्वाज
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