..और अब ग्रे-ज़ोन युद्ध!

 ..and now the grey-zone war!
भारत के सेना प्रमुख जनरल मनोज पांडे की इस चेतावनी को गंभीरता से लेने की ज़रूरत है कि भारत को चीन की ओर से `ग्रे-ज़ोन वारफेयर' को लेकर सतर्क और तत्पर रहना होगा। इसे आम भाषा में `असैन्य युद्ध' कहा जा सकता है। प्रकट और परोक्ष सैन्य युद्ध और आतंकी हमलों की तुलना में ग्रे-ज़ोन युद्ध ज़्यादा सूक्ष्म है और चीन की रणनीति में इसका हिस्सा काफी अहम है। दरअसल इस तरह की लड़ाई में सैन्य कार्रवाइयों से हटकर दुश्मन देश को अलग-अलग मोर्चों पर कमजोर करने की कोशिश की जाती है। यह ऐसी लड़ाई है, जो शांति काल में भी चलती रहती है। अपने पड़ोसी देशों को उलझाए रखने के लिए चीन इसके इस्तेमाल में उस्ताद है।

सयाने बता रहे हैं कि ग्रे-ज़ोन युद्ध में कोई देश दूसरे देश के खिलाफ साइबर हमले, आर्थिक जबरदस्ती, दुष्प्रचार अभियान, चुनाव में दखल और प्रवासियों का हथियार की तरह इस्तेमाल करता है, ताकि उसे कमज़ोर और अस्थिर किया जा सके। कहना न होगा कि चीन अरसे से भारत समेत कई देशों में यह अभियान चलाए हुए है। सेना प्रमुख की यह चिंता सहज समझ में आ सकती है कि आमने-सामने की लड़ाई में हम लड़ाई के देशकाल को सीमित कर सकते हैं, लेकिन ग्रे-ज़ोन की लड़ाई का दायरा असीमित होता है। इस तरह की लड़ाई में दुश्मन देश हमेशा किसी न किसी मोर्चे पर लड़ाई लड़ते रहते हैं। यह लड़ाई किसी एक सीमा क्षेत्र में या किसी एक ही तरह से नहीं लड़ी जाती, बल्कि इसका स्वरूप अलग-अलग तरह से बदलता रहता है। इसका जवाब भी असैन्य तरीकों से ही दिया जा सकता है।

इस चालाकी भरे युद्ध के ताजा उदाहरण के रूप में चीन के उस तथाकथित असैन्य पोत की चर्चा की जा सकती है, जिसका मकसद चीन के अनुसार वैज्ञानिक अनुसंधान बताया गया, लेकिन भारत के नज़रिये से वह एक खतरनाक जासूसी जहाज़ था। चीन की इस चालबाजी के चलते श्रीलंका ने भारत की आपत्ति के बावजूद उस जहाज़ को हंबनटोटा बंदरगाह पर आने और ठहरने की अनुमति दे दी। यह भारत के खिलाफ चीन की असैन्य युद्ध कार्रवाई ही तो थी! भारतीय सेना प्रमुख चाहते हैं कि हम भी चीन की तरह सैन्य और नौसैनिक अभियानों को वैज्ञानिक और नागरिक अभियानों से जोड़ कर दुश्मन को उसी की शैली में जवाब देने की क्षमता विकसित करें। यह इसलिए भी ज़रूरी है कि आने वाला समय परंपरागत युद्ध की तुलना में ऐसे ही वैज्ञानिक और वाणिज्यिक हमलों का युग होगा।

चीन की चालाकी का एक और नमूना यह है कि वह दक्षिण चीन सागर में मछली पकड़ने वाली नौकाओं की आड़ में समुद्री फौज तैनात कर रहा है। सबको मालूम है कि चीन के मछली पकड़ने के जहाज सैकड़ों की संख्या में नियमित रूप से कई विवादित द्वीप समूहों में आते रहते हैं। ये जहाज़ पारंपरिक मछली पकड़ने के इलाकों तथा पड़ोसी राज्यों के विशेष आर्थिक क्षेत्रों (ईईजेड) का भी अतिक्रमण करते हैं। यह अवैध घुसपैठ के सहारे यथास्थिति को बदलना नहीं, तो और क्या है? ताइवान को धमकाने के लिए भी तो चीन उसके सीमावर्ती समुद्र में यही शैतानी कर रहा है। कहना न होगा कि चीन के ऐसे नागरिक-सैन्य समुद्री बलों का गठन भारत के लिए खतरे की घंटी है। इससे जुड़ी रणनीतिक और सामरिक समस्याओं का मुकाबला करने के लिए भारत को अपनी तटीय रक्षा को गंभीरता से उन्नत करने और अपने नौसैनिक बेड़े को और तेज करने की ज़रूरत है।
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