यूक्रेन के 4 नए इलाकों पर रूस के कब्जे से रूस-यूक्रेन विवाद नए विस्फोटक दौर में प्रवेश कर गया है। शांति के पक्ष में होने के दावेदार भारत के लिए यह स्थिति लगातार असमंजसपूर्ण होती जा रही है। यह बात अलग है कि अपनी वीटो शक्ति के ज़ोर पर रूस संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में आने वाले किसी भी प्रस्ताव को निष्प्रभावी करने में समर्थ है। लेकिन ऐसे अवसर पर भारत विश्व के बहुमत के खिलाफ वहाँ खड़ा दिखाई देगा, जहाँ चीन खड़ा है। इसीलिए ऐसे हर अवसर पर भारत को सफाई देनी पड़ेगी कि वह रूस या यूक्रेन के पक्ष या विपक्ष में नहीं, बल्कि केवल शांति और सद्भाव के पक्ष में खड़ा है। उसे बार-बार याद दिलाना पड़ेगा कि हमारे प्रधानमंत्री ने रूस से साफ-साफ कहा है कि यह युग युद्ध का नहीं है।
अस्तु, भारत का असमंजस अपनी जगह है और रूस की यह `उपलब्धि' अपनी जगह, कि संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में यूक्रेन के चार नए इलाकों पर रूस के कब्ज़े और वहाँ जनमत संग्रह के ख़िलाफ़ अमेरिका और अलबानिया द्वारा पेश किए गए निंदा प्रस्ताव को रूस ने अपनी वीटो शक्ति का इस्तेमाल कर ख़ारिज कर दिया। 15 देशों की सदस्यता वाली सुरक्षा परिषद के 10 देशों ने रूस के कब्ज़े के ख़िलाफ़ लाये गए मसौदा प्रस्ताव पर वोटिंग की, लेकिन चीन, गेबन, भारत और बरज़ील इससे दूर रहे!
कूटनीति को कुछ देर के लिए एक किनारे रख कर सोचा जाए, तो मानना होगा कि रूस अपनी ताकत का बेजा इस्तेमाल कर रहा है। दादागिरी और किसे कहते हैं! भारत को यदि अब भी लगता है कि खुल कर रूस की निंदा करना उसके अपने राष्ट्रहित में नहीं है, तो यह निराधार भी नहीं है। अमेरिका जिस तरह पाकिस्तान को आज भी संरक्षण दे रहा है, उसे देखते हुए भारत अपनी तटस्थता छोड़ कर उसके सुर में सुर नहीं मिला सकता। भारत की इस स्थिति का कोई गलत मतलब न निकाला जाए, इसलिए उसे संयुक्त राष्ट्र में कहना पड़ा है कि यूक्रेन में हाल के घटनाक्रम को लेकर हम विचलित हैं। भारत का हमेशा से यह रुख रहा है कि लोगों की ज़िंदगी की कीमत पर वहाँ मौजूदा संकट का कोई समाधान नहीं निकल सकता। विडंबना यह है कि भारत के इस विचलित होने का या बातचीत से समाधान की गुहार का न तो रूस पर कोई असर है, न यूक्रेन पर। दोनों नए-नए पैंतरे खेल रहे हैं। गोया युद्ध न हो, खेल हो! रूस ने जनमत संग्रह करके विलय का दाँव चला, तो जवाब में यूक्रेन ने नाटो में प्रवेश की अर्जी लगा दी। हो गईं न शांति की सब संभावनाएँ धूमिल! अब कर लो बात; किससे करोगे?
संयुक्त राष्ट्र में भारत की स्थायी प्रतिनिधि रुचिरा कंबोज ने कहा कि भारत यूक्रेन में तुरंत हिंसा और लड़ाई रोकने की माँग करता है तथा, कि सिर्फ बातचीत से ही मतभेद और विवाद खत्म हो सकते हैं, भले ही वह फिलहाल कितना भी मुश्किल क्यों न लगे। मगर किसी के पास ऐसी कोई तरकीब है क्या कि एक-दूसरे से खुन्नस खाए जूझ रहे राष्ट्रपति पुतिन और राष्ट्रपति जेलेंस्की को बातचीत के लिए राजी कर सके? महाबली अमेरिका के वश में सिर्फ इतना है कि वह रूस पर नए प्रतिबंध ठोक दे और उधर यूक्रेन की पीठ थपथपा दे। सो वह यही कर रहा है। लेकिन 7 महीने से अधिक का अनुभव बताता है कि यह रास्ता शांति का नहीं, तनाव का है। 000