ईडी को चुनौती का मतलब!

 Meaning of challenge to ED!
झारखंड के मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन का प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) के समन के जवाब में खुलेआम यह चुनौती देना चिंताजनक है कि हिम्मत है तो गिरफ्तार करके दिखाएँ! सोरेन और उनके सलाहकार जानते हैं कि यदि ईडी के समन पर उपस्थित न हो पाने का उपयुत्त और पर्याप्त कारण हो, तो उससे अगली तारीख माँगी जा सकती है। इसलिए उन्होंने अपने वकील के जरिए इस आशय की चिट्ठी ईडी को भिजवा भी दी। लेकिन इसे उन्होंने अपर्याप्त समझा और अपनी हेकड़ी दिखाने के लिए अपने समर्थकों को जमा करके किसी संगठित गिरोह के सरगने की तरह ईडी को चिढ़ाने और धमकाने जैसा अवांछनीय नाटक किया। 

गौरतलब है कि ईडी ने झारखंड के मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन को अवैध खनन और मनी लॉाÅन्ड्रग मामले में पूछताछ के लिए  बुलाया था। लेकिन वे भड़क गए। गिरफ्तार करने की चुनौती देते हुए उन्होंने आरोप लगाया कि झारखंड सरकार को दिल्ली से गिराने की साजिश हो रही है। बेशक यह भी एक पक्ष है कि इन दिनों प्रवर्तन निदेशालय सहित कई एजेंसियों के नाजायज इस्तेमाल के आरोप केंद्र सरकार पर लगाए जा रहे हैं। ऐसे आरोपों पर इन एजेंसियों और केंद्र सरकार का यही जवाब रहता है कि जो कुछ हो रहा है, वह उचित प्रक्रिया के तहत ही हो रहा है। इसलिए आपसे उम्मीद की जाती है कि आप जाँच में सहयोग करें। यदि जाँच में आपके खिलाफ कुछ न पाया गया, तो आप बेदाग माने जाएँगे। लेकिन प्रवर्तन निदेशालय को पक्षपातपूर्ण बता कर जिस प्रकार का आचरण किया गया है, उसे शायद उद्दंडता भी कहा जा सकता है। राजनैतिक खेल तो वह है ही। उपस्थित होने के लिए निर्धारित दिन, इसी प्रयोजन से राज्य में सियासी हलचल के बीच सुबह से ही मुख्यमंत्री आवास पर झारखंड मुत्ति मोर्चा के कार्यकर्ताओं का जमावड़ा शुरू हो गया था। उन्हें संबोधित करते हुए ही मुख्यमंत्री ने ये बातें कहीं। सयाने बता रहे हैं कि ऐसा पहली बार हुआ है कि प्रवर्तन निदेशालय को किसी ने इस तरह सीधी चुनौती दी है। हेमंत सोरेन ने केंद्र सरकार पर हमला बोलते हुए कहा कि यह झारखंड सरकार को गिराने की केंद्र सरकार की साजिश है। उन्होंने ईडी के साथ सीबीआई, न्यायपालिका और राजभवन को भी लपेटा और कहा कि इन्हें लगता है कि ये जेल भेजेंगे तो हम डर जाएँगे। साथ ही यह धमकी भी दे डाली कि अगर हम अपनी पर उतर जाएँ, तो इन्हें मुँह छिपाने की जगह नहीं मिलेगी। 

मुख्यमंत्री के संबोधन से एक सवाल यह भी उठ खड़ा हुआ है कि क्या जन-समर्थन का अर्थ गैर-कानूनी कार्यों के लिए भी बेशर्त समर्थन होता है? होना तो यह चाहिए कि ऐसा कोई आरोप लगने पर जनप्रतिनिधि को जनता के सामने अपनी निर्दोषता साबित करने के लिए कानून का साथ देना चाहिए। लेकिन इसके उलट सोरेन ने जनता के समर्थन का दावा करते हुए यह आह्वान किया कि- उनकी राजनीति की रोटी को जला देना है, जो यह सेंकने की कोशिश कर रहे हैं। बेहद चतुराई से मुख्यमंत्री ने झारखंड की जनता के आदिवासी सेंटीमेंट को भी भड़काने की कोशिश की। उन्होंने चेतावनी दी कि अब इस राज्य में `बाहरियों' का नहीं, झारखंडियों का राज चलेगा। साथ ही, घोषित हो चुके चुनाव के मद्देनज़र गुजरात के आदिवासियों से भी अपील की कि इस चुनाव में भाजपा को वोट न दें। कहने की ज़रूरत नहीं कि ये सब बातें वे खुद को बचाने के लिए कर रहे हैं, क्योंकि अगर उन पर लगे आरोप साबित हो गए, तो उनकी सत्ता और विधायकी, दोनों चले जाने का अंदेशा है।
 
अंततः यह भी कि केंद्र सरकार को भी विभिन्न जाँच एजेंसियों को विरोधी दल की सरकारों को गिराने के कथित प्रयासों से परहेज करना चाहिए। वरना इन एजेंसियों की प्रतिष्ठा और विश्वसनीयता धूमिल होने का खतरा है। 000
 
Comments System WIDGET PACK