जो दवा के नाम पे ज़हर दे..

 One who gives poison in the name of medicine.
हरियाणा की एक फर्म द्वारा बनाई गईं चार दवाओं के कारण गांबिया में 66 बच्चों की मौत हो गई। यह समाचार शोक और चिंता का विषय है। बच्चों की मौत  से उनके परिवारों को हुई पीड़ा का अंदाजा नहीं लगाया जा सकता। साथ ही ऐसी अवांछित घटनाओं से भारत की प्रतिष्ठा को भी चोट पहुँचती है।  

बताया गया है कि मेडन फार्मास्युटिकल द्वारा बनाए गए कफ सीरप में डायथिलिन ग्लाइकॉल और एथिलीन ग्लाइकॉल थे, जो मनुष्यों के लिए जहरीले होते हैं। डब्ल्यूएचओ भारत में कंपनी एवं नियामक परधिकारियों को लेकर आगे जाँच कर रहा है। इन दवाओं की निर्माता कंपनी ने इन उत्पादों की सुरक्षा और गुणवत्ता पर डब्ल्यूएचओ को अभी तक गारंटी नहीं दी है। डब्ल्यूएचओ प्रमुख ने कहा कि ये दवाएँ अब तक केवल गांबिया में पाई गई हैं, लेकिन उन्हें अन्य देशों में भी संभवत: वितरित किया गया है। इसलिए इन `घटिया' दवाओं के खिलाफ `डब्ल्यूएचओ मेडिकल परेडक्ट अलर्ट' भी जारी कर दिया गया है। डब्ल्यूएचओ द्वारा आगाह किए जाने पर केंद्रीय औषधि मानक नियंत्रण संगठन (सीडीएससीओ) ने मामले की जाँच शुरू कर दी है। 

सयाने बता रहे हैं कि किसी भारतीय कंपनी द्वारा बनाए गए किसी कफ सीरप के कारण बच्चों की मौत का यह पहला मामला नहीं है। इस साल के शुरुआत में डायथिलीन ग्लाईकॉल के कारण हिमाचल प्रदेश में 14 बच्चों की मौत हो गई थी। वह कफ सीरप एक अन्य भारतीय कंपनी द्वारा बनाया गया था। अब इसे क्या कहिएगा कि वह विशेष कफ सीरप 19 बार गुणवत्ता परीक्षण में विफल रहा, फिर भी बाजार में तब तक उपलब्ध रहा जब तक कि उससे 14 बच्चों की मौत नहीं हो गई। मौतों के बाद भी, कंपनी के खिलाफ सिर्फ यह कार्रवाई हुई कि उसका सीरप बनाने का लाइसेंस रद्द कर दिया गया! क्या घटिया दवा बेच कर लोगों की जान से खेलने वालों ने उस कार्रवाई से कोई सबक लिया होगा? 

यह ठीक हो सकता है कि हरियाणा की विवादित कंपनी को केवल निर्यात के लिए उत्पादन करने का लाइसेंस मिला हुआ था, लेकिन ऐसी घटिया दवाओं के मामले देश के भीतर भी परयः आते रहते हैं। (कुछ समय पहले ही चंडीगढ़ स्थित पोस्ट ग्रेजुएशन इंस्टिटयूट ऑफ मेडिकल एजुकेशन एंड रिसर्च में एनेस्थेटिक इंजेक्शन से पाँच मरीजों की मौत हो गई थी।)  

सयानों की मानें तो कफ सीरप में मिलावट कोई नई बात नहीं, पर यह निर्धारित मात्रा से अधिक नहीं होनी चाहिए। लेकिन दवा के उत्पादन की लागत कम करने और अपना मुनाफा बढ़ाने के लिए अगर कोई कंपनी तयशुदा मात्रा का उल्लंघन करती है, तो यह हर तरह से अनुचित और अस्वीकार्य है। इस बारे में कानून भी हैं और उनका पालन सुनिश्चित करने के लिए नियामक तंत्र भी है।  लेकिन देश में करीब 3000 दवा कंपनियाँ और 10,500 से ज्यादा मैन्युफैक्च्रिंग यूनिट हैं। कहा जा रहा है कि इन पर लगातार नजर रखने के लिए जितना बड़ा नेटवर्क और जिस स्तर की फंडिंग चाहिए, वह भारत के पास नहीं है।

गौरतलब है कि फार्मास्युटिकल सेक्टर भारत के सबसे संभावनाशील सेक्टरों में है। भारत को `दुनिया की फार्मेसी' तक कह जाता है। यह कैसे भूला जा सकता है कि दवाओं के वैश्विक कारोबार में भारत की एक तिहाई हिस्सेदारी है। कहना न होगा कि घटिया या ज़हरीली दवाओं से जुड़ी किसी भी घटना का दुनिया भर में भारत की मेडिकल इंडस्ट्री की प्रतिष्ठा पर विपरीत असर होगा। लोगों का जीवन तो दाँव पर है ही। इसलिए यह बेहद ज़रूरी है कि ऐसी घटनाओं की ज़िम्मेदारी तय की जाए। 000 
 
 
 
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