मानवाधिकार चेतना का सम्मान

 respect for human rights
इस साल शांति का नोबेल पुरस्कार जिन व्यत्ति और संस्थाओं को मिला है, उनके जीवन और कार्यों को देखने से यह बात सहज ही समझ में आ जाती है कि पुरस्कार समिति ने तानाशाही के खिलाफ बोलने का अकेला विकल्प चुनने वालों के साहस को सम्मानित किया है। इसे हमारे समय की मानवाधिकार चेतना का आईना भी कहा जा सकता है।  
यह साहस तब और अधिक महत्वपूर्ण हो जाता है, जब दुनिया में बहुत सारे देश ऐसी तानाशाही में या तो जी रहे हों या उस ओर जा रहे हों, जहाँ भय, अनिश्चितता और चुप्पी ही लोगों की नियति बन जाती है। तानाशाही व्यवस्था अथवा सनक भरी सत्ताओं को ढोने वाले ऐसे देशों के नागरिक भ्रष्टाचार, केंद्रीकृत सत्ता और खोखले नारों के बोझ को पहचानते ज़रूर हैं, लेकिन निडर होकर उनके खिलाफ खड़े होने का साहस नहीं जुटा पाते। क्योंकि तानाशाही के खिलाफ खड़े होने का अर्थ है, अपनी जान जोखिम में डालना। कहना न होगा कि इस बार शांति का नोबेल यह जोखिम उठाने के साहस का सम्मान है। 
इस साल यह पुरस्कार संयुत्त रूप से बेलारूस के मानवाधिकार कार्यकर्ता एलेस बिआलियात्स्की, रूस के मानवाधिकार संगठन `मेमोरियल' और यूक्रेन के मानवाधिकार संगठन `सिविल लिबर्टीज़' को देने की घोषणा की गई है। ये व्यत्ति और संगठन युद्ध के समय रूस, यूक्रेन और बेलारूस में नागरिक समाज के साहस के प्रतीक हैं। 
खुद पुरस्कार समिति ने कहा भी है कि शांति के नोबेल पुरस्कार से सम्मानित ये व्यत्ति और संस्थाएँ अपने-अपने देशों में नागरिक समाज का प्रतिनिधित्व करने के कारण सम्मान के पात्र हैं। यह पुरस्कार इन्हें अनेक वर्षों तक सत्ता की आलोचना के अधिकार और नागरिकों के बुनियादी अधिकारों के संरक्षण के लिए काम करने के कारण दिया जा रहा है। शांति के पुरस्कार के पीछे दुनिया को युद्ध की आग से बचाने की प्रेरणा भी तो निहित है न।
 दुनिया को विश्व युद्ध की ओर धकेलने वाली सनकी ताकतों को नोबेल समिति की यह टिप्पणी नागवार गुज़रेगी कि इस बार के पुरस्कार विजेताओं ने युद्ध अपराधों और सत्ता के दुरुपयोग के मामलों के डॉक्युमेंटेशन के लिए बेहतरीन काम किया है तथा वे शांति और लोकतंत्र के लिए सिविल सोसायटी की अहमियत को दिखाते हैं।
अचरज नहीं कि बेलारूस ने बिआलियात्स्की को नोबेल पुरस्कार दिए जाने की आलोचना की है। सयाने बता रहे हैं कि बेलारूस `यूरोप की आख़िरी तानाशाह हुकूमत' है और राष्ट्रपति अलेक्ज़ेंडजर लुकाशेंको पर चुनावों में धांधली करने, विपक्ष की आवाज़ को दबाने और सिविल सोसायटी पर पाबंदियाँ लगाने जैसे आरोप लगाए जाते रहे हैं। याद रहे कि 1980 से बिआलियात्स्की (जन्म: 1962) बेलारूस में लोकतांत्रिक स्वतंत्रता और सिविल सोसायटी के महत्व के लिए आहिंसक अभियान चलाते रहे हैं। राष्ट्रीय स्तर के मानवाधिकार अभियानों का सक्रिय सदस्य होने के कारण उन्हें कई बार गिरफ़्तार किया गया है। संयुत्त राष्ट्र मानवाधिकार संगठन के अनुसार, बिआलियात्स्की एक राजनीतिक बंदी हैं, जिन्हें टैक्स चोरी का आरोप लगाकर 14 जुलाई, 2021 को गिरफ्तार किया गया था। जुलाई 2022 में अदालत ने उन पर लगे आरोपों को खारिज कर दिया, लेकिन उन्हें कस्टडी से नहीं छोड़ा गया क्योंकि उन पर सीमा पार अवैध तस्करी का भी आरोप था। दरअसल, उन्हें हिरासत में लेने की वजह, चुनावों में धांधली को लेकर बड़े पैमाने पर हुए विरोध प्रदर्शन में उनकी सक्रियता थी। उनका संगठन `वियास्ना'  बेलारूस की सरकार का कोप भाजन बना, क्योंकि वह देश में मानवाधिकार की स्थिति में सुधार के लिए काम करता है। 
इसी तरह `मेमोरियल' और `सिविल लिबर्टीज' ने क्रमशः रूस और यूक्रेन में विपरीत परिस्थितियों में भी मानवाधिकारों के लिए काम करके कीार्तिमान स्थापित किया है। सत्ता के दुरुपयोग और युद्ध अपराधों के विरोध में खड़े होने वाले इन मानवाधिकार के रक्षकों को शांति का नोबेल पुरस्कार दिया जाना सही अर्थ में मनुष्यता का सम्मान है। 000 
  
 
 
 
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