हैदराबाद - यूनाइटेड नेशंस वर्ल्ड जियोस्पेशल इनफॉर्मेशन कांग्रेस के उद्घाटन सत्र को वीडियो संदेश के माध्यम से संबोधित करते हुए प्रधानमंत्री ने कहा कि प्रौद्योगिकी परिवर्तन लाती है। भारत में प्रौद्योगिकी बहिष्करण का एजेंट नहीं, समावेशिता का एक महत्वपूर्ण उपकरण है। भारत की विकास यात्रा के दो प्रबल स्तंभ प्रौद्योगिकी एवं प्रतिभा हैं।
पाँच दिवसीय द्वितीय यूनाइटेड नेशंस वर्ल्ड जियोस्पेशल इनफॉर्मेशन कांग्रेस एचआईसीसी में आरंभ हुई। कार्यक्रम का आयोजन भारत सरकार की मेजबानी में डिपार्टमेंट ऑफ इकोनामिक्स एंड सोशल अफेयर्स ऑफ दि यूनाइटेड नेशंस द्वारा किया जा रहा है। `जियो-इनैब्लिंग दि ग्लोबल विलेज-नो वन शुड बी लेफ्ट बिहाइंड' थीम पर आधारित जियोस्पेशल इनफॉर्मेशन कांग्रेस में 120 देशों के 700 से अधिक अंतरराष्ट्रीय प्रतिनिधियों सहित 2000 से अधिक प्रतिभागी हिस्सा ले रहे हैं। यह आयोजन सतत विकास लक्ष्यों के कार्यान्वयन और निगरानी का समर्थन करने के लिए एकीकृत भू-स्थानिक सूचना बुनियादी ढाँचे और ज्ञान सेवाओं के महत्व पर प्रतिबिंबित करते हुए पर्यावरण और जलवायु जैसी चुनौतियों के समाधान तलाशेगा। साथ ही डिजिटल रूपांतरण और तकनीकी विकास द्वारा जीवंत अर्थव्यवस्था को उत्प्रेरित करेगा। जानकारी देते हुए बताया गया प्रथम जियोस्पेशल इनफॉर्मेशन कांग्रेस का आयोजन 2018 में चीन में हुआ था।
प्रधानमंत्री ने वीडियो संदेश में थीम की सराहना करते हुए कहा कि इस संदर्भ को भारत द्वारा पिछले कुछ वर्षों में उठाए गए कदमों में देखा जा सकता है। भारत यह सुनिश्चित करने का प्रयास कर रहा है कि विकास यात्रा में कोई पीछे न रहे। विभिन्न योजनाओं को उल्लखित करते हुए उन्होंने कहा कि हम अंत्योदय विजन पर काम कर रहे हैं, जिसका लक्ष्य अंतिम व्यक्ति को भी सशक्त बनाना है। प्रधानमंत्री ने समावेश और प्रगति को प्रोत्साहन देने में भू-स्थानिक प्रौद्योगिकी की भूमिका पर प्रकाश डालते हुए कहा कि भारत ने भू-स्थानिक प्रौद्योगिकी के लाभों को साझा करने में उदाहरण स्थापित किया है। पीएम गतिशक्ति मास्टर प्लान भू-स्थानिक प्रौद्योगिकी द्वारा संचालित किया जा रहा है। भू-स्थानिक प्रौद्योगिकी समावेश और प्रगति को नए आयाम प्रदान कर रही है। स्वामित्व योजना के अंतर्गत ग्रामीण संपत्तियों का नक्शा बनाने के लिए ड्रोन का उपयोग किया जा रहा है। इससे ग्रामवासियों के पास संपत्ति स्वामित्व के स्पष्ट प्रमाण उपलब्ध हो रहे हैं।
प्रधानमंत्री ने कहा कि युवा राष्ट्र भारत दुनिया के शीर्ष स्टार्टअप हब में शामिल है। वर्ष 2021 के बाद से यूनिकॉर्न स्टार्टअप की संख्या लगभग दोगुनी हो गई। नवाचार करने की स्वतंत्रता महत्वपूर्ण स्वतंत्रताओं में एक है। इसे भू-स्थानिक क्षेत्र के लिए भी सुनिश्चित किया गया है। भू-स्थानिक डेटा का संग्रह, उत्पादन और डिजिटलीकरण अब लोकतांत्रिक हुआ है। इस तरह के सुधारों के साथ ड्रोन क्षेत्र को बढ़ावा देने और निजी भागीदारी के लिए अंतरिक्ष क्षेत्र को खोलने के अलावा भारत में 5जी की शुरुआत हुई। प्रधानमंत्री ने कहा कि कोविड-19 महामारी के दौर में दुनिया में सभी को साथ लेकर चलने के लिए एक जाग्रत पहल की आवश्यकता थी। संकट के समय एक-दूसरे की मदद करने के लिए संस्थागत दृष्टिकोण की आवश्यकता है। संयुक्त राष्ट्र जैसे वैश्विक संगठन संसाधनों को अंतिम व्यक्ति तक ले जाने का मार्ग प्रशस्त कर सकते हैं। वैश्विक भू-स्थानिक उद्योग हितधारकों, नीति-निर्माताओं तथा अकादमिक क्षेत्र के प्रतिनिधियों से परिपूर्ण यह सम्मेलन ग्लोबल विलेज की परिकल्पना को नए आयाम प्रदान करने में सहायक सिद्ध होगा। प्रधानमंत्री ने कहा कि इस प्रकार के सम्मेलन भू-स्थानिक प्रौद्योगिकी की अनंत संभावनाओं को रेखांकित करते हुए सतत शहरी विकास, आपदा प्रबंधन और शमन, जलवायु परिवर्तन, वन प्रबंधन, जल प्रबंधन, मरुस्थलीकरण को रोकना और खाद्य सुरक्षा जैसे महत्वपूर्ण क्षेत्रों में विकास पर चर्चा करने के प्रभावी मंच बन सकते हैं।
केंद्रीय विज्ञान और प्रौद्योगिकी मंत्री डॉ. जितेंद्र सिंह ने कहा कि भारत भू-स्थानिक तकनीक को अपनाने वाला प्रमुख देश है। भू-स्थानिक अर्थव्यवस्था के वर्ष 2025 तक 12.8 प्रतिशत की वृद्धि दर से 63,000 करोड़ रुपये को पार करने की संभावना है। साथ ही स्टार्टअप्स के माध्यम से दस लाख से अधिक लोगों के लिए रोजगार सृजन की उम्मीद है। भू-स्थानिक क्षेत्र में विकसित प्रौद्योगिकियों ने कई परिवर्तनकारी परिवर्तन लाए हैं। इसके चलते देश में एक इंच भूमि का भी मानचित्रण करते हुए भूमि सुधारों के लिए ठोस बैकअप प्रदान किया जा सकता है। भारतीय सर्वेक्षण, भारतीय भूवैज्ञानिक सर्वेक्षण, नेशनल एटलस और थीमैटिक मैपिंग ऑर्गनाइजेशन, नेशनल इनफॉर्मेटिक्स सेंटर, इसरो जैसे राष्ट्रीय संगठनों ने कई जीआईएस आधारित पायलट परियोजनाओं को अपशिष्ट संसाधन प्रबंधन, वानिकी, शहरी नियोजन जैसे अन्य कई डोमेन मेें भू-स्थानिक प्रौद्योगिकी के अनुप्रयोगों को प्रदर्शित करने के लिए लागू किया है। भारतीय भू-स्थानिक पारिस्थितिकी तंत्र का लोकतंत्रीकरण घरेलू नवाचार वो प्रोत्साहन देगा। यह आत्मनिर्भर भारत की परिकल्पना को साकार कर भारतीय कंपनियों को वैश्विक मानचित्रण पारिस्थितिकी तंत्र की प्रतिस्पर्धा करने में सक्षम करेगा। ग्रामीण विकास मंत्रालय ने नक्शे की 21 डेटा परतों का उपयोग कर 45 लाख किलोमीटर से अधिक ग्रामीण सड़कों की मैपिंग की है। इसमें जल निकायों, हरित क्षेत्रों, भूखंडों और प्रशासनिक उद्देश्यों के लिए आवश्यक अन्य संरचनाओं के बारे में जानकारी का डिजिटलीकरण किया गया है। मंत्रालय द्वारा लगभग 2.6 लाख ग्राम पंचायतों को मानचित्रण और डिजिटलीकरण की योजना के तहत कवर किया गया।
भारत सरकार के विज्ञान एवं तकनीक विभाग के सचिव डॉ. श्रीवारी चंद्रशेखर ने स्वागत वक्तव्य देते हुए भू-स्थानिक और संबद्ध नीतियों व रणनीतिक कार्यान्वयन पर प्रकाश डाला। अंतरिक्ष विभाग के सचिव डॉ. एस. सोमनाथ ने कहा कि भारतीय भू-स्थानिक सूचना प्रणाली बहुत समृद्ध और विविध है, जो देश की जरूरतों और माँगों के अनुरूप है। यूएन-जीजीआईएम, यूनाइटेड नेशंस स्टैटिस्टिक्स डिवीजन निदेशक स्टीफन श्वेनफेस्ट तथा को-चेयर इनग्रिज वांडेन बर्गे ने जियोस्पेशल इनफॉर्मेशन कांग्रेस के उद्देश्यों पर चर्चा की। अवसर पर जियोस्पेशल इनक्यूबेटर, सोलार कैलकुलेटर, भूनिधि पोर्टल, नेशनल टोपनीमी डेटाबेस का अनावरण किया गया। साथ ही `इंडियन एक्सपीरियंस इन अलाइनिंग विद आईजीआईएफ' विषयक रिपोर्ट जारी की गई। सत्र का संचालन भारत सरकार के विज्ञान एवं तकनीकि विभाग के परामर्शदाता डॉ. डी. दत्ता ने किया। कार्यक्रम का समापन विभाग की वैज्ञानिक डॉ.शुभा पांडेय के धन्यवाद ज्ञापन से हुआ।