`आइटम' नहीं है कोई लड़की

 The girl is not an item
मुंबई की एक विशेष अदालत ने  नाबालिग लड़की को `आइटम' कहने पर आरोपी कारोबारी को 18 महीने की जेल की सज़ा सुनाई है। कहा जाता है कि साहित्य समाज का दर्पण होता है, लेकिन इस बात से भी इन्कार नहीं किया जा सकता कि माननीय अदालतें भी बहुत बार समाज को आईना दिखाने का काम करती हैं। कभी-कभी वे समाज के चेहरे ही नहीं, मन के भी घिनौनेपन का प्रत्बििंब सामने रख देती हैं। यह फैसला भी ऐसी ही सामाजिक-मानसिक विकृति को खोल कर सामने रखता है। यह विकृति है- स्त्री जाति को आइटम, माल, सौदा, चीज़ या उपभोग की सामग्री समझने की घिनौनी मानसिकता। माना कि मानव सभ्यता के विकास के दौरान दुनिया भर में ऐसे दौर गुज़रे हैं, जब पुरुष सत्तात्मक व्यवस्था होने के कारण स्त्री को बेचने, खरीदने, चुराने और भोगने की वस्तु में तब्दील कर दिया गया, लेकिन ऐसे हर दौर को आज सभ्यता के बजाय असभ्यता और अशिष्टता का दौर माना जाता है। शिक्षा और संस्कार का उद्देश्य ही है, मनुष्य को पशुता के स्तर से उठा कर मनुष्यता की दीक्षा देना- `मनुर्भव'। इस दीक्षा का एक मूल मंत्र यह भी है कि सारी सृष्टि की जननी होने के कारण स्त्री मातृशत्ति का प्रतीक है और सब प्रकार से आदरणीय तथा पूज्य है। लोकतंत्र और मानवाधिकार का भी तकाजा यही है कि स्त्री को भी समाज में वे सारी आज़ादियाँ नैसार्गिक रूप से मिलनी चाहिए, जो पुरुष को परप्त हैं। क्योंकि जन्म से स्त्री होने का अर्थ यह नहीं हो सकता कि स्त्री को मनुष्य ही न समझा जाए। लेकिन हमारे समय और समाज का यह दुर्भाग्य है कि आज भी पुरुष स्ति्रयों को मनुष्य नहीं, संपत्ति समझते हैं। यह मामला इसी दूषित मनोवृत्ति से जुड़ा है।  

गौरतलब है कि डिंडोशी स्पेशल पोक्सो कोर्ट के जज एस.जे. अंसारी ने अंधेरी पूर्व निवासी अबरार एन. खान को 2015 में किए गए इस अपराध के लिए डेढ़ साल कैद की सजा सुनाई है। विशेष न्यायाधीश ने किसी महिला को `आइटम' कह कर संबोधित करने को `महिलाओं को यौन तरीके से वस्तु के रूप में' संबोधित करना माना। समाज को माननीय न्यायमूार्ति की इस बात पर ध्यान देना होगा कि इस तरह के अपराधों और अवांछित व्यवहार को देखते हुए महिलाओं की रक्षा के लिए कठोरता से निपटने की आवश्यकता है।

 हुआ यों था कि जुलाई 2015 में मिनीर स्कूल से अकेले लौट रही थी कि तभी खान, जो अपनी बाइक पर बैठा था, उसने उसे रोक लिया। नहीं रुकने पर उसके पीछे गया, उसके बाल खींचे और कहा- `क्या आइटम, किधर जा रही हो? ऐ आइटम, सुन ना आइटम, तुम कहाँ जा रही हो? ओह, आइटम, मेरी बात सुनो।'  लड़की ने इस व्यवहार का कड़ा विरोध किया। इस पर, खान, जो उस समय बमुश्किल 18 वर्ष का था, उसने उसे गाली देना शुरू कर दिया और दावा किया कि वह उसे नुकसान नहीं पहुँचा सकती- `तू मेरा क्या उखाड़ लेगी?' इस पर लड़की ने पुलिस कंट्रोल नंबर पर कॉल किया। जब पुलिस टीम वहाँ पहुँची, तो खान और उसके दोस्त भाग गए थे। लड़की और उसके परिवार की शिकायत पर खान को गिरफ्तार कर लिया गया और बाद में रिहा कर दिया गया, क्योंकि उसने अग्रिम जमानत हासिल कर ली थी। खान का कहना था (जैसा कि ऐसे मामलों में आम तौर पर कहा जाता है) कि उसे झूठे मामले में फँसाया जा रहा है, क्योंकि लड़की के परिवार को उनकी बेटी के साथ उसकी दोस्ती पसंद नहीं थी। लेकिन लड़की ने खुलासा किया कि कैसे खान उसे लगातार परेशान करता था और आते-जाते अश्लील फब्तियाँ कसता था।

 विशेष अदालत ने खान की हरकतों को लड़की को परेशान करने और उसके साथ दुष्कृत्य (यौन उत्पीड़न) के इरादे का सूचक माना। न्यायाधीश महोदय ने खान को डेढ़ साल कारावास की सजा सुनाते हुए जो कहा, वह समूचे समाज के आँख-कान खोलने वाला कड़वा सच है। उन्होंने कहा कि ऐसे अपराधों से सख्ती से निपटने की जरूरत है क्योंकि महिलाओं को अनुचित व्यवहार से बचाने के लिए ऐसे सड़कछाप रोमियो को सबक सिखाने की जरूरत है। कहना न होगा कि ऐसे अदालती सबक को विभिन्न माध्यमों से बहु-प्रचारित भी किया जाना चाहिए, ताकि ऐसे गुंडा तत्वों को हतोत्साहित किया जा सके। लेकिन माध्यमों को टीआरपी बटोरने वाले सियासती हड़बौंग से फुरसत मिले, तो वे समाज के प्रति अपनी ज़िम्मेदारी के बारे में सोचें!
 
 
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