खतरनाक दौर में यूक्रेन युद्ध

 Ukraine war in dangerous times
खतरनाक दौर में यूक्रेन युद्ध
रूस-यूक्रेन युद्ध हर दिन और ज़्यादा खतरनाक होता जा रहा है। दोनों ही पक्ष युद्धविराम या शांति के लिए तनिक भी चिंतित नज़र नहीं आते। यह खबर विचलित करने वाली है कि रूस ने यूक्रेन के कई शहरों में भयंकर मिसाइल हमले शुरू कर दिए हैं। वहीं इस युद्ध के शुरू होने के बाद से पहली बार यूक्रेन की राजधानी कीव के सेंटर में लंबी दूरी वाली मिसाइलों से हमले हो रहे हैं। यूक्रेन के राष्ट्रपति वोलोदिमीर जेलेंस्की यूक्रेनवासियों से मजबूती से डटे रहने की अपील कर रहे हैं। यानी कोई भी इस विनाशलीला को बंद करने की जल्दी में नहीं है, जबकि दोनों ही पक्ष जानते हैं कि युद्ध से किसी समाधान पर नहीं पहुँचा जा सकता। लगता है, दोनों अपनी लड़ाकू प्रवृत्ति के हाथों मजबूर हैं!
युद्ध के पहले ही दिन से यथासंभव संतुलित और तटस्थ रवैया अपनाने वाले भारत पर भी इस बीच लगातार दबाव बढ़ रहा है कि वह रूस के खिलाफ खुल कर बोले। लेकिन भारत यह नहीं भूल सकता कि रूस या सोवियत संघ ने उस कठिन समय में भारत का साथ नहीं छोड़ा था, जब अमेरिका सहित सारे पश्चिमी देश पाकिस्तान के हिमायती बने हुए थे और भारत को घेरने में लगे थे। यही वजह है कि भारत के विदेश-मंत्री ने रूस की ओर से यूक्रेन पर किए गए मिसाइल हमले पर बहुत नपी-तुली टिप्पणी की है। उन्होंने साफ-साफ कहा है कि दुनिया के किसी भी कोने में इंफ्रास्ट्रक्चर को निशाना बनाना और आम नागरिकों की मौत का कारण बनना कभी भी स्वीकार करने योग्य नहीं है। उन्होंने भारत के दृष्टिकोण का खुलासा करते हुए ठीक ही कहा है कि इस संघर्ष से अब किसी का भी भला नहीं होता दिख रहा है। उन्होंने आगे कहा कि यह भयंकर संघर्ष दुनिया के एक बड़े हिस्से को नुकसान पहुँचा रहा है, क्योंकि इसकी वजह से लाखों लोगों की रोजमर्रा की ज़िंदगी पर बहुत ही गलत तरह से असर पड़ रहा है। विदेश-मंत्री ने एक बार फिर कहा कि रूस और यूक्रेन विवाद को सुलझाने के लिए कूटनीतिक और वार्ता के रास्ते पर जल्द ही वापस लौटना होगा। हालाँकि उन्होंने उम्मीद जताई है कि जंग रोकने की इस बात पर दोनों देश भी सोचेंगे, लेकिन ऐसे आसार फिलहाल तो दिखाई नहीं दे रहे। लगता है, दोनों पक्ष नाश पर आमादा हैं और विवेक की एक नहीं सुन रहे। (जब नाश मनुज पर छाता है/ पहले विवेक मर जाता है। - `दिनकर')।
ध्यान रहे कि यूक्रेन की सेना या राष्ट्रपति ने रूसी पुल पर हुए विस्फोट की जिम्मेदारी नहीं ली है, इससे यह अनुमान किया जा सकता है कि यूक्रेन और रूस के बीच कोई तीसरा पक्ष भी है, जो युद्ध को और भड़काना चाहता है। रूस ने इसे आतंकी कार्रवाई बताया है। अगर ऐसा है, तो डर है कि यह युद्ध तीसरे पक्ष में हाथों में न चला जाए! सयाने कह रहे हैं कि अगर युद्ध को रोकना है तो इस समय यूक्रेन को संयम बरतना चाहिए, ताकि दुनिया रूस पर युद्ध को रोकने का दबाव बना सके। लेकिन ऐसा होता नहीं दिखाई दे रहा।
ऐसा नहीं है कि दुनिया के देशों ने रूस को युद्ध रोकने के लिए न कहा हो। भारत के प्रधानमंत्री तो रूस के राष्ट्रपति से आमने-सामने की बातचीत में यहाँ तक कह चुके हैं कि `यह समय युद्ध का नहीं है'। उम्मीद थी कि इसके बाद यूक्रेन की ओर से शांति का कोई प्रस्ताव आता। पर ऐसा नहीं हो सका और दोनों पक्ष एक-दूसरे के प्रति कटुतम होते चले गए। लगता है कि यूक्रेन पश्चिमी देशों के बहकावे में आकर आत्मघात करने को तत्पर है। क्या यूक्रेन के राष्ट्रपति को भी कोई यह समझाएगा कि `यह समय युद्ध का नहीं है'?  
 
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