विनय गुण में सम्पूर्ण शिष्टाचार का समावेश : कपिलमुनिजी

 Vinay Guna includes complete courtesy: Kapil Muniji
हैदराबाद, डबीरपुरा स्थित जैन स्थानक में विराजित क्रांतिकारी संत श्री कपिलमुनिजी म.सा. ने 21 दिवसीय श्रुतज्ञान गंगा महोत्सव में भगवान महावीर की अंतिम देशना श्री उत्तराध्ययन सूत्र पर प्रवचन के दौरान कहा कि प्रभु महावीर की अंतिम वाणी जीवन को दिव्यता और भव्यता का वरदान देने वाली है। हमारे जीवन का समुचित मार्गदर्शन करने वाले उन शिक्षा सूत्रों का इसमें संकलन है जिसके श्रवण और आचरण से जीवन में सौभाग्य का निर्माण किया जा सकता है।

प्रेस विज्ञप्ति के अनुसार, म.सा. ने आगे कहा कि जीवन निर्माण के इन सूत्रों को श्रवण करने का लाभ भी उन्हीं को मिल पाता है जिसने अपने जीवन में पुण्य के सुमेरु खड़े किये हों। भगवान की वाणी से जुड़ने वाला कदम कदम पर पाप से सशंकित और भयभीत होता है। पाप का मूल अभिमान है। अभिमान से प्रेरित प्रत्येक कार्य पाप बन जाता है। जीवन के राजमार्ग में सबसे बड़ा गति अवरोधक दुर्गुण है अहंकार। इसके आने से जीवन में कठोरता, स्वार्थपरता, क्रूरता आदि बुराइयों को खुलकर पनपने का मौका मिल जाता है। जीवन के उत्थान के लिए अपने Ëदय को अहंकार से मुक्त करना बेहद जरूरी है। जब तक मन अहंकार से ग्रसित है तब तक परिवार, समाज में शांति का माहौल निार्मित करने की कल्पना निराधार है। मुनिश्री ने आगे कहा कि जहाँ संयोग है वहाँ वियोग है। संसार के प्रत्येक संयोग के ललाट पर वियोग का तिलक लगा हुआ है। संयोग से तात्पर्य है मिला हुआ। संयोग से चिपककर  तादात्म्य बना लेना अज्ञानता की निशानी है। विवेक का तकाजा यही है कि जिसे कुदरत छुड़ाये उसे स्वेच्छा से स्व विवेक के आधार पर परमार्थ के पथ पर अर्पण करके त्याग वीर, दानवीर बना जाये।

म.सा. ने आगे कहा कि भगवान महावीर ने अपनी अंतिम देशना में सबसे पहले विनय श्रुत का प्रशिक्षण दिया। विनय का मतलब सिर्फ नमना और झुकना ही नहीं, बल्कि Ëदय में उठने वाली कोमल वृत्तियों का नाम विनय है। झुकना तो स्वार्थ सिद्ध करने के लिए भी हो सकता है। विनय शब्द में जीवन के संपूर्ण शिष्टाचार का समावेश होता है। विनय एक ऐसा सग्दुण रूपी आभूषण है जिसको धारण करने से व्यत्तित्व में चमक और आकर्षण का जन्म होता है। विनय गुण से विभूषित व्यत्ति जन जन के आदर सम्मान का पात्र बन जाता है। जीवन में नैतिक और आध्यात्मिक मूल्यों की गिरावट सबसे बड़ा नुकसान है, जिसकी भरपाई करना बेहद मुश्किल काम होगा। मुनिश्री ने कहा कि विनय धर्म का सच्चा साधक वही है जो अहंकार, आग्रह और आवेश को शांत करने की दिशा में निरंतर अग्रसर है।

धर्म के जगत में प्रवेश की शर्त है कि जीवन की जरूरतों को कम किया जाए। अतिरित्त वस्तुओं का जरूरतमंद के लिए उपयोग किया जाये। वस्तु उपयोग के लिए है और व्यत्ति प्रेम करने के लिए है। मगर उल्टा हो रहा है व्यत्ति का स्वार्थवश इस्तेमाल किया जा रहा है और वस्तुओं से प्रेम करके पवित्र रिश्तों की होली जलाई जा रही है। इसके पूर्व वीर स्तुति और उत्तराध्ययन सूत्र मूल पाठ वाचन का कार्यक्रम सम्पन्न हुआ। इस मौके पर गणमान्य लोगों सहित बड़ी संख्या में श्रद्धालुगण उपस्थित थे। धर्मसभा का संचालन संघ के महामंत्री सुरेशचंद बोहरा ने किया।
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