स्वागत नए-नवेले अध्यक्ष का

 welcome new president
वरिष्ठ राजनेता मल्लिकार्जुन खड़गे अपने ग्लैमरस प्रतिद्वंद्वी शशि थरूर की जमानत ज़ब्त करा कर कांग्रेस अध्यक्ष का चुनाव जीत गए। इसमें अप्रत्याशित जैसा कुछ नहीं। यह तो नामांकन के दिन से ही तय था, क्योंकि वे सोनिया गांधी और राहुल गांधी के चहेते प्रत्याशी थे। इसलिए भले ही यह कहा जा रहा हो कि सीताराम केसरी के 24 साल बाद कांग्रेस को गैर-गांधी पार्टी अध्यक्ष मिला है तो भी पार्टी, वंशवाद के भाजपाई कटाक्षों से बरी नहीं हो पाएगी, क्योंकि अधिक संभावना यही है कि नियंत्रण तो गांधी परिवार के हाथ में ही रहेगा। इसमें दो राय नहीं कि खड़गे तपे हुए और ज़मीनी नेता हैं, लेकिन देखना यह होगा कि वे किस हद तक पार्टी में अपनी चला पाते हैं! देखना यह भी होगा कि थरूर का अब क्या होगा, क्योंकि चुनाव प्रचार के दौरान कथित रूप से हाईकमान के निर्देशों पर जिस तरह उनकी उपेक्षा की गई, उसे लोकतांत्रिक भावना के अनुरूप तो नहीं ही माना जा सकता न!

इसे भी भूला नहीं जा सकता कि खड़गे गांधी परिवार की पहली पसंद नहीं थे। उन्हें तो अशोक गहलोत पर से यकीन उठ जाने के कारण मजबूरन मैदान में उतारा गया। फिर भी समझा यही जाता है कि वे परिवार के वफादार थे, हैं और रहेंगे। सयाने याद दिला रहे हैं कि कभी मजदूर नेता रहे 80 वर्षीय खड़गे का जन्म कर्नाटक के बीदर जिले के वारावत्ती इलाके में एक किसान परिवार में हुआ था। एलएलबी करके वकालत में भी उन्होंने हाथ आजमाए और 1969 में  कांग्रेस का दामन थाम कर 1972 में पहली बार कर्नाटक की गुरमीतकल असेंबली सीट से विधायक बने। खड़गे गुरमीतकल सीट से 9 बार विधायक चुने गए। इस दौरान उन्होंने गुंडूराव, एसएम कृष्णा और वीरप्पा मोइली की सरकारों में विभिन्न विभागों में मंत्री का पद भी संभाला। वह 2 बार गुलबर्गा से कांग्रेस के लोकसभा सांसद भी रहे हैं। उम्मीद की जानी चाहिए कि उनके नेतृत्व में कांग्रेस 2024 के आम चुनावों में बेहतर प्रदर्शन कर पाएगी। तब तक राहुल गांधी की पद यात्राएँ भी पार्टी को प्रतिदिन मीडिया की सुर्खी बनाए रखेंगी ही! 

अधिक संभावना यही है कि आम कांग्रेस कार्यकर्ता के लिए तो खड़गे राहुल गांधी के ही प्रतिनिधि बने रहेंगे; ठीक वैसे ही, जैसे भाजपा का हर चेहरा उसके कार्यकर्ताओं के लिए नरेंद्र मोदी का ही प्रतिनिधि है! इसीलिए यह तय है कि आगामी दिनों में भी भाजपा के निशाने पर खड़गे नहीं बल्कि राहुल गांधी और उनका परिवार ही रहने वाले हैं। भाजपा की मुसीबत यह भी होगी कि खड़गे पर तीखे प्रहार किए तो भाजपा का दलित वोट कांग्रेस की तरफ जा सकता है। 
देखना यह भी होगा कि खड़गे किस हद तक कांग्रेस की डूबती नैया के उद्धारक साबित हो पाते हैं! कम से कम उनके प्रतिद्वंद्वी रहे शशि थरूर ने तो यही उम्मीद जताई है कि यह कांग्रेस के `पुनरुद्धार' की नई शुरूआत है। (याद रहे कि थरूर बेहद चौकस लेखक भी हैं और हो सकता है कि यह बात उन्होंने व्यंग्य में कही हो!) उन्होंने इसे अपना सौभाग्य बताया है कि वे उस पार्टी के सदस्य हैं जो अपने कार्यकर्ताओं को अपना अध्यक्ष चुनने की अनुमति देती है। देखना तो यह भी होगा कि उनकी तरह अध्यक्ष के चुनाव की माँग करने वाले समूह-23 के बाकी सदस्य इस पुनरुद्धार से कितने खुश हैं! 
नए-नवेले कांग्रेस अध्यक्ष के सामने उपस्थित चुनौतियों पर चर्चा फिर कभी। आज तो `दिनकर' के शब्दों में बस इतना ही कि- 

झुके हुए हम धनुष मात्र हैं, तनी हुई ज्या पर से- 
किसी और की इच्छाओं के बाण चला करते हैं। 
 
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