श्री वर्धमान स्थानकवासी जैन श्रावक संघ में श्रीमद् उत्तराध्ययन सूत्र की आराधना आरंभ

 Worship of Shrimad Uttaradhyayana Sutra begins
हैदराबाद, श्री वर्धमान स्थानकवासी जैन श्रावक संघ मारुति विधि संघ के तत्वावधान में आज डॉ. प्रतिभाजी म.सा. आदि ठाणा-6 के सान्निध्य में श्रीमद् उत्तराध्ययन सूत्र की आराधना आरंभ हुई।

संघपति संपतराज कोठारी और मंत्री सुरेंद्र कटारिया द्वारा आज यहाँ जारी प्रेस विज्ञप्ति के अनुसार, सिकंदराबाद स्थानक में 26 अक्तूबर तक चलने वाली 16 दिवसीय आराधना में डॉ. प्रतिभाजी म.सा. एवं श्रद्धाश्रीजी म.सा. ने प्रथम दिन विनय श्रृत और परिषह का श्रवण कराया। गुरु भगवंत ने कहा कि विनय मुक्ति और सिद्धि का द्वार है। साधु जीवन हो चाहे गृहस्थ जीवन, बिना विनय के सब खाली है। प्रस्तुत प्रथम अध्ययन का नाम विनय श्रृत है। इसमें साधु जीवन के योग्य विनय के सूत्रों का दिग्दर्शन कराया गया। विनय सभी सदगुणों का मूल है। यह मुक्ति मार्ग का प्रथम सोपान है। यह दूसरा आंतरिक तप है। विनय रूपी मूल के बिना सम्यक ज्ञान, सम्यक दर्शन, सम्यक चरित्र और तप रूपी पुष्प पल्लवित नहीं हो सकते। मोक्ष की प्राप्ति में विनय की भूमिका नितांत आवश्यक है। विनयवान ही आज्ञा का पालन और गुणों की अनुमोदना कर सकता है। साधु कोे भी तीर्थंकर की आज्ञा का पालन करना होता है। इस अध्ययन में विनित और अविनित के स्वभाव, व्यवहार और उसके परिणामों का निरूपण किया गया। यह औपचारिकता और सामाजिक व्यवस्था नहीं, बल्कि गुणीजनों और गुरुजनों के महान पवित्र गुणाें के प्रति सहज प्रमोद भाव है। जो गुरु और शिष्य के साथ आत्मीयता का व्यवहार स्थापित करता है।

गुरु भगवंत ने परिषह के बारे में बताते हुए कहा कि इसका अर्थ होता है साधना मार्ग में आए हुए कष्टों के समभावपूर्वक सहन करना। समभावपूर्वक कष्ट सहने से कर्मों की निर्जरा और जिनेश्वर भगवन्तों का आज्ञा पालन से मोक्ष की प्राप्ति होती है। संयम के कठोर मार्ग पर चलने वाले साधक के जीवन में परिषहों का आना स्वाभाविक है। पूर्वजन्मों के संचित पाप कर्मों के कारण ही कष्ट आते हैं। जो समभावपूर्वक कष्टों को सहन कर लेता है, उसे पुनः भविष्य में दुःखी नहीं होना पड़ता। साथ ही वह परिषह जयी बनकर शाश्वत सुखों का वरण कर लेता है। कष्ट और संकट तो साधु जीवन की कसौटी है। उनका हंसते-हंसते धैर्य और समभाव से सामना करना, अपने व्रत नियमों को सुरक्षित रखना ही उन पर विजय पाना है। इस अध्ययन में भूख-प्यास आदि 22 परिषहों पर विजय पाने का विधान है। सच्चे साधक के लिए परिषह बाधक नहीं है। इसके दबाव में आकर साधक अपनी प्रतिज्ञा के विरुद्ध आचरण नहीं करता, वह तो तटस्थ रहता है। मोक्ष प्राप्ति की अभिलाषा वाले साधक को परिषहों पर विजय पाना चाहिए।

संघ के अध्यक्ष अशोक शेरमल बोहरा की अध्यक्षता में सभा का आयोजन किया गया। मंच का संचालन महामंत्री शांतिलाल बोहरा ने किया। आज का नवकार जाप लाभार्थी मोहनलाल अशोक कुमार झाबक परिवार के पद्माराव नगर स्थित निवास पर किया गया। अहमदाबाद से पधारे अतिथि शांतिलाल पारलेचा और कमलादेवी बाफना ने गुरु भगवंत के दर्शन किए। 
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