महायुद्ध होंगे साल 2019 के अाम चुनाव

हालांकि 2019 के अाम चुनावों के लिए कोई भी भविष्यवाणी सही नहीं है। लेकिन एक बात बिना किसी अाशंका के कही जा सकती है कि साल 2019 के लोकसभा चुनाव हिंदुस्तान के ही नहीं, बल्कि अाधुनिक चुनाव पद्वति के विश्व इतिहास में सबसे ज्यादा रोमांचकारी होंगे। इन चुनावों पर सिर्फ हिंदुस्तान के ही करीब 92 करोड़ मतदाताअों की  नजर नहीं होगी, बाल्कि पूरी दुनिया की नजर होगी। एक तरह से हिंदुस्तान के अाम चुनाव पर ही लोकतंत्र का दुनियावी भविष्य टिका हुअा है। इसकी कई वजहें हैं।

पूरी दुनिया में इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीन लगभग नकार दी गई है। अब तक 20 देशों में इसे पूरी तरह से और करीब 87 देशों में इसे प्रयोग के तौर पर अाजमाया गया है। लेकिन जिन देशों में इस मशीन को पूरी तरह से अाजमाया गया है, वहां लोग संतुष्ट नहीं है। लेकिन दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र हिंदुस्तान में अभी भी इस मशीन के प्रति देश के व्यापक जनमानस का विश्वास बना हुअा है। इसलिए अगर 2019 के अाम चुनाव पूरी तरह से ईवीएम के जरिये होते हैं, तो मानना पड़ेगा कि इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीन का भविष्य अभी सुरक्षित है।

ये चुनाव इसलिए भी अाम मतदाताअों से लेकर तमाम राजनीतिक पार्टियों और उनके कार्यकर्ताअों के लिए चिन्ता का सबब बन चुके हैं, क्योंकि इन चुनावों के संबंध में लोगों के दिलो-दिमाग में हजारों किस्म की कल्पनाएं और अाशंकाएं उमड़-घुमड़ रही हैं। माना जा रहा है कि यह अाम चुनाव भारत के चुनावी इतिहास का सबसे बड़ा घमासान होगा। इस चुनाव में अत्याधुनिक संचार तकनीक का इस्तेमाल होगा और इसमें पानी की तरह पैसा बहाया जायेगा।

चूंकि हिंदुस्तान की राजनीतिक पार्टियां चुनाव में खर्च की गई रकम को सही-सही नहीं बताती हैं, इसलिए चुनाव के बाद जितनी रकम खर्च होने की बात कही जाती है, अामतौर पर उससे काफी ज्यादा खर्च हुअा होता है। माना जा रहा है कि ये चुनाव अब तक के सबसे उग्र चुनाव होंगे। सत्ता पाने के लिए राजनीतिक पार्टियां हर तरह के तरीके अाजमायेंगी। माना जा रहा है कि इस बार के चुनावों में भाजपा अकेले 10 हजार करोड़ रूपये तक खर्च कर सकती है, हालांकि यह सिर्फ एक अनुमान है, कोई अधिकृत घोषणा नहीं। जहां तक अधिकृत घोषणा की बात है, तो पिछले अाम चुनाव में भाजपा ने 715 करोड़ रूपये खर्च होने की घोषणा की थी और कांग्रेस का खर्च उससे 200 करोड़ कम था। लेकिन यकीनन ये सही नहीं था।

इन चुनावों में भारत का राजनीतिक भविष्य भी तय होगा। देश की सबसे पुरानी राजनीतिक पार्टी कांग्रेस अपना पुराना वजूद बचाकर रख पायेगी या नहीं। अागामी अाम चुनाव में विपक्षी एकता के भी कुछ अकल्पनीय समीकरण देखने को मिल सकते हैं। चूंकि पिछले अाम चुनावों में जिस तरह से भाजपा को बहुमत हासिल हुअा था, उससे लग रहा था कि देश से संभवतः गठबंधन की राजनीति विदा हो रही है। लेकिन गुजरे चार सालों में देखने को मिला है कि मतदाता अभी भी स्थानीय पार्टियों पर यकीन करते हैं। कहने का मतलब यह है कि अागामी अाम चुनावों में अलग-अलग क्षेत्रों में ऐसे गठबंधनों को अाकार लेते देखा जा सकता है, जिनकी अभी कल्पना तक नहीं की जा सकती। हालांकि भाजपा अभी भी कह रही है कि वह अकेले अपने दम पर न केवल बहुमत हासिल कर लेगी, बाल्कि वह तो मिशन 350 की बात कर रही है।

लेकिन शायद यह संभव न हो। क्योंकि अब विपक्षी नेताअों को महसूस होने लगा है कि अगर भाजपा को एक और कार्यकाल मिल गया, तो उनकी हमेशा के लिए छुट्टी हो जायेगी। शायद यही डर है, जो विपक्षी पार्टियों की एकता की मजबूत बुनियाद बन रहा है। इसलिए विशेषज्ञों का मानना है कि ये चुनाव भाजपा बनाम अन्य हो सकते हैं। सवाल है कि इन अागामी लोकसभा चुनावों में सबसे ज्यादा प्रभावित करने वाले मुद्दे क्या होंगे? अगर ईमानदारी से कहा जाए तो सोशल मीडिया और इलेक्ट्रॉनिक मीडिया ने मिलकर फिलहाल जो चकाचौंध पैदा की है, उसमें देश का अाम मतदाता गुम हो गया लगता है। इसलिए विशेषज्ञ भले ही यह कहते रहें कि अागामी लोकसभा चुनाव रोजगार और भ्रष्टाचार के मुद्दे पर लड़ा जायेगा, लेकिन ऐसा होता लग नहीं रहा।

हाल में जितने भी उप-चुनाव हुए हैं, उनमें रोजगार या कोई भी व्यावहारिक समस्या मुद्दा नहीं बनी। इसलिए लगता नहीं है कि अागामी अाम चुनाव में महंगाई या रोजगार मतदाताअों का दिमाग बदलेंगे। अभी भी हमारे यहां भावनात्मक मुद्दों पर ही चुनाव होते लग रहे हैं। इसलिए यह मानना कि बढ़ती बेरोजगारी और जीएसटी की जटिलता भाजपा को चुनाव हारने पर मजबूर कर देगी, मतदाताअों से कुछ ज्यादा ही समझदार होने की उम्मीद है।

- लोकमित्र
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