जनता के विश्वास की डोर है डॉक्टर

भारत में 1 जुलाई को चिकित्सक दिवस मनाया जाता है। 1 जुलाई को देश के प्रख्यात चिकित्सक डॉ. विधानचंद्र रॉय का जन्मदिन और पुण्यतिथि दोनों ही हैं।
उनकी स्मृति में ही राष्ट्रीय चिकित्सक दिवस मनाया जाता है। भारत रत्न से सम्मानित विधानचंद्र रॉय देश के प्रमुख स्वतंत्रता सेनानी होने के साथ-साथ एक चिकित्सक भी थे।
अाज़ादी के बाद उन्होंने अपना सारा जीवन पीडित मानवता की चिकित्सा सेवा को समर्पित कर दिया।


डॉक्टर को  धरती का भगवान माना जाता  है। भगवान एक बार जीवन देता है, मगर  डॉक्टर हमारे अमूल्य जीवन को बार-बार बचाता है। दुनिया में ऐसे कई उदाहरण हैं, जहां डॉक्टरों ने भगवान से भी बढ़कर काम किया है। बच्चे को जन्म देना हो या किसी  को बचाना हो, डॉक्टरों की मदद हमेशा हमें मुश्किल से बचाती है। यही एक ऐसा व्यवसाय है, जहां दवा और दुअा का अनूठा संगम देखने को मिलता है। अाजकल मरीज और डॉक्टर के बीच विश्वास की भावना का अभाव होता जा रहा है, जिसके कारण अस्पतालों में अाये दिन मारपीट की घटनाएं होती हैं।

इस समस्या से निजात पाने के लिए ज़रूरी है कि मरीज डॉक्टर पर विश्वास करें, वहीं डॉक्टर का भी यह कर्तव्य है कि वह मरीज और उसके परिजनों को विश्वास में लेकर ही अपने कार्य को अंजाम दे, ताकि किसी भी अप्रिय स्थिति को टाला जा सके। छोटी-मोटी बीमारियों में डॉक्टर मरीज को कोई जांच की सलाह नहीं देता, अपितु पर्ची पर ही दवा लिख देता है। डॉक्टर मरीज को समझाता है कि दवा कैसे-कब और कितनी मात्रा में लेनी है।

दवा की पर्ची लेकर मरीज बाहर अाता है और फिर दवा घर लाकर डॉक्टर की कही बातों को याद करता है। कुछ लोग तो भूल जाते हैं कि दवा कैसे लेनी है। फिर अंदाज से ही दवा लेनी शुरू कर देते हैं, जो मरीज के लिए बेहद हानिकारक होती है। इससे उसका स्वास्थ्य बिगड़ सकता है। कुछ डॉक्टरों की पर्ची समझ में अा जाती है, तो कुछ की लिखावट समझ से परे होती है।

बहुधा एंटीबायोटिक दवाएं खाना खाने के बाद लेने की सलाह दी जाती है। मगर मरीज कई बार बिना खाना खाये ये दवाएं ले लेते हैं। इसी भांति कुछ दवाएं भूखे पेट लेने की सलाह दी जाती है। कई बार पढ़े-लिखे लोग भी दवाअों को लेने में गलती कर बैठते हैं। ऐसी स्थिति में अाम अादमी को चाहिये कि वे अच्छी तरह समझ कर ही इन दवाअों को ग्रहण करें, अन्यथा सेहत सुधरने के बजाय बिगड़ने की संभावना अधिक रहती है।

अब बात करते हैं जांचों की। यदि अापको कमर-दर्द, घुटना दर्द, पथरी का दर्द, गैस, डायबिटीज और खांसी जैसी बीमारी है, तो निश्चित रूप से डॉक्टर अापको एक्सरे, सोनोग्राफी, खून और पेशाब की जांच की सलाह देगा। डॉक्टर चाहे सरकारी हो या निजी, सरकारी डॉक्टर जांचों के लिए कहेगा तो अापकी परेशानी बजाए कम होने के बढ़ जायेगी, क्योंकि सरकारी अस्पतालों में जांच कराना इतना अासान नहीं है।

अापको भीड़ भरी लाइनों से गुज़रना होगा। अापका नम्बर कब अायेगा, यह बताने वाला कोई नहीं मिलेगा। या तो अाप बिना जांच करवाए लौट जायेंगे अथवा निजी जांच केन्द्रों पर जाकर जांच करवायेंगे और अपनी जेब खाली करेंगे। दोनों ही स्थितियां दुःखदायी है, मगर इसका कोई समुचित समाधान संभव प्रतीत नहीं होता।

बहुत से लोग सरकारी अापाधापी में नहीं पड़कर निजी चिकित्सालयों में जाते हैं, जहां अापको बैठने और इंतजार की अारामदायक सुविधा अवश्य मिलती है। मगर यहाँ अापकी जेब काटने का अच्छा अवसर डॉक्टरों को मिलता है। वे विभिन्न जांचों के नाम पर अपने अस्पताल में ही मरीज को इधर से उधर घुमाते हैं और
अच्छी-खासी राशि वसूल कर पर्ची पर दवा लिख देते हैं। ये दवाएँ अापको उसी अस्पताल के दवा स्टोर में मिलेंगी, अाप बाहर खरीदना चाहें तो कहीं नहीं मिलेंगी।

हमारे देश में दवाखाना व जांचों का यह गोरखधंधा खूब फल-फूल रहा है। ईश्वर अापको स्वस्थ रखे, इसी में अापकी भलाई है। यह तो साधारण बीमारियों की चर्चा है। यदि डॉक्टर ने अापकी बीमारी को गम्भीर बता दिया तो यह अापके लिए बेहद कष्टदायक होगा। फिर डॉक्टर रूपी भगवान अापको कैसे और कब बीमारी से निजात दिलाकर स्वस्थ करेगा, यह कोई नहीं जानता। सरकारी डॉक्टर निजी प्रेक्टिस में व्यस्त रहते हैं। सुबह-शाम मोटी फीस लेकर मरीजों को देखते हैं। सरकारी क़ानून-क़ायदे यहाँ नहीं चलते हैं। बीमार के लिए डॉक्टर ही भगवान है। इस परेशानी से निजात दिलाने की महती ज़रूरत है।

- बाल मुकुन्द ओझा
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