हैदराबाद, महाराजा अग्रसेनजी सच्चे समाजवाद के प्रवर्तक, राम राज्य की स्थापना के समर्थक एवं दानवीर थे।
उक्त उद्गार अग्रवाल समाज तेलंगाना द्वारा रजत जयंती अग्रसेन जयंती उत्सव के तहत शमशाबाद स्थित अतिथि कन्वेंशन में आयोजित श्री अग्र भागवत कथा में कथा व्यास श्री उज्जवल गर्ग ने दिये। कथा व्यास श्री उज्जवल गर्ग ने महाराजा श्री अग्रसेनजी की कथा बड़े ही रोचक ढंग से प्रस्तुत की। बीच-बीच में महाराजा के जीवन से संबंधित झांकियां प्रस्तुत की गयीं। उन्होंने महाराजा श्री अग्रसेनजी के संबंध में कहा कि महाराजा अग्रसेन एक सूर्यवंशी क्षत्रिय राजा थे। वे एक धार्मिक, शांति दूत और सभी पर प्रेम और वात्सल्य की वर्षा करते थे। हिंसा का हमेशा ही विरोध किया और बालि प्रथा को बंद करवाया। सब जीवों से प्रेम, स्नेह रखने वाले दयालु राजा थे। महाराजा अग्रसेन भगवान राम के पुत्र कुश की 34 वीं पीढ़ी के हैं। 15 वर्ष की आयु में, अग्रसेनजी ने पांडवों के पक्ष से महाभारत में युद्ध किया। वे अग्रोदय नामक गणराज्य के महाराजा थे, जिसकी राजधानी अग्रोहा थी। अग्रसेनजी को 18 संतानें हुईं, जिनसे अग्रवाल गोत्र अस्तित्व में आया। महाराजा पर माता लक्ष्मीजी की बहुत ही कृपा रही और महर्षि गर्ग के कहने पर ही पाताल लोक जाकर राजा नागराज कुमुद की बेटी माधवी के स्वयंवर में भाग लिया। हालाँकि, स्वर्ग के देवता इंद्र माधवी से शादी करना चाहते थे, लेकिन जीव के प्रति दया और करुणा के चलते माधवीजी ने अग्रसेन जी को पति रूप में चुना। बाद में जब माधवी के साथ विवाह हुआ तो यह दो अलग-अलग संप्रदायों, जातियों और संस्कृतियों का मेल था। जहां अग्रसेन सूर्यवंशी थे वहीं माधवी नागवंश की कन्या थीं।
श्री उज्जवल गर्ग ने आगे कहा कि कुछ समय बाद महाराज अग्रसेन ने अपने प्रजा जनों की खुशहाली के लिए काशी नगरी जाकर शिवजी की घोर तपस्या की और भगवान शिव ने प्रसन्न होकर उन्हें माँ लक्ष्मी की तपस्या करने की सलाह दी। माँ लक्ष्मी ने परोपकार हेतु की गई तपस्या से खुश हो उन्हें दर्शन दिए और कहा कि अपना एक नया राज्य बनाएं और क्षात्र धर्म का पालन करते हुवे अपने राज्य तथा प्रजा का पालन - पोषण व रक्षा करें। उनका राज्य हमेशा धन-धान्य से परिपूर्ण होने का आशीर्वाद दिया। महाराज अग्रसेन ने अपनी रानी माधवी के साथ सारे भारतवर्ष का भ्रमण किया। ऋषि मुनियों और ज्योतिषियों की सलाह पर नये राज्य का नाम अग्रेयगण या अग्रोदय रखा गया। अग्रोदय की राजधानी अग्रोहा की स्थापना की और यहां पर सभी सुविधाओं से लैस व्यवस्था की गई। महाराजा अग्रसेन को समाजवाद का अग्रदूत कहा जाता है क्योंकि उन्होंने नियम बनाया कि उनके नगर में बाहर से आकर बसने वाले प्रत्येक परिवार की सहायता के लिए नगर का प्रत्येक परिवार उसे एक तत्कालीन सिक्का व एक ईंट देगा ताकि सभी खुशहाल जीवन जी सकें। इस तरह महाराज अग्रसेन के राजकाल में अग्रोदय गणराज्य ने दिन दूनी-रात चौगुनी तरक्की की।
उक्त उद्गार अग्रवाल समाज तेलंगाना द्वारा रजत जयंती अग्रसेन जयंती उत्सव के तहत शमशाबाद स्थित अतिथि कन्वेंशन में आयोजित श्री अग्र भागवत कथा में कथा व्यास श्री उज्जवल गर्ग ने दिये। कथा व्यास श्री उज्जवल गर्ग ने महाराजा श्री अग्रसेनजी की कथा बड़े ही रोचक ढंग से प्रस्तुत की। बीच-बीच में महाराजा के जीवन से संबंधित झांकियां प्रस्तुत की गयीं। उन्होंने महाराजा श्री अग्रसेनजी के संबंध में कहा कि महाराजा अग्रसेन एक सूर्यवंशी क्षत्रिय राजा थे। वे एक धार्मिक, शांति दूत और सभी पर प्रेम और वात्सल्य की वर्षा करते थे। हिंसा का हमेशा ही विरोध किया और बालि प्रथा को बंद करवाया। सब जीवों से प्रेम, स्नेह रखने वाले दयालु राजा थे। महाराजा अग्रसेन भगवान राम के पुत्र कुश की 34 वीं पीढ़ी के हैं। 15 वर्ष की आयु में, अग्रसेनजी ने पांडवों के पक्ष से महाभारत में युद्ध किया। वे अग्रोदय नामक गणराज्य के महाराजा थे, जिसकी राजधानी अग्रोहा थी। अग्रसेनजी को 18 संतानें हुईं, जिनसे अग्रवाल गोत्र अस्तित्व में आया। महाराजा पर माता लक्ष्मीजी की बहुत ही कृपा रही और महर्षि गर्ग के कहने पर ही पाताल लोक जाकर राजा नागराज कुमुद की बेटी माधवी के स्वयंवर में भाग लिया। हालाँकि, स्वर्ग के देवता इंद्र माधवी से शादी करना चाहते थे, लेकिन जीव के प्रति दया और करुणा के चलते माधवीजी ने अग्रसेन जी को पति रूप में चुना। बाद में जब माधवी के साथ विवाह हुआ तो यह दो अलग-अलग संप्रदायों, जातियों और संस्कृतियों का मेल था। जहां अग्रसेन सूर्यवंशी थे वहीं माधवी नागवंश की कन्या थीं।
श्री उज्जवल गर्ग ने आगे कहा कि कुछ समय बाद महाराज अग्रसेन ने अपने प्रजा जनों की खुशहाली के लिए काशी नगरी जाकर शिवजी की घोर तपस्या की और भगवान शिव ने प्रसन्न होकर उन्हें माँ लक्ष्मी की तपस्या करने की सलाह दी। माँ लक्ष्मी ने परोपकार हेतु की गई तपस्या से खुश हो उन्हें दर्शन दिए और कहा कि अपना एक नया राज्य बनाएं और क्षात्र धर्म का पालन करते हुवे अपने राज्य तथा प्रजा का पालन - पोषण व रक्षा करें। उनका राज्य हमेशा धन-धान्य से परिपूर्ण होने का आशीर्वाद दिया। महाराज अग्रसेन ने अपनी रानी माधवी के साथ सारे भारतवर्ष का भ्रमण किया। ऋषि मुनियों और ज्योतिषियों की सलाह पर नये राज्य का नाम अग्रेयगण या अग्रोदय रखा गया। अग्रोदय की राजधानी अग्रोहा की स्थापना की और यहां पर सभी सुविधाओं से लैस व्यवस्था की गई। महाराजा अग्रसेन को समाजवाद का अग्रदूत कहा जाता है क्योंकि उन्होंने नियम बनाया कि उनके नगर में बाहर से आकर बसने वाले प्रत्येक परिवार की सहायता के लिए नगर का प्रत्येक परिवार उसे एक तत्कालीन सिक्का व एक ईंट देगा ताकि सभी खुशहाल जीवन जी सकें। इस तरह महाराज अग्रसेन के राजकाल में अग्रोदय गणराज्य ने दिन दूनी-रात चौगुनी तरक्की की।